इस यात्रा को शुरुआत से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
जोशीमठ से विष्णुप्रयाग जाने वाली सड़क एक दम खड़ी ढलान वाली थी। अब तक हम ऊंचाई पर जा रहे थे, पर अचानक से अब हम नीचे उतरने लगे, ऊपर से नीचे देखने पर ऐसा लग रहा था कि हम पाताल लोक में जा रहे है। ड्राइवर ने हमें बताया कि पहले यह रास्ता बहुत ही पतला हुआ करता था। ऊपर से नीचे जाने और नीचे से ऊपर आने वाले वाहनों को बारी बारी से छोड़ा जाता था। यहाँ गौतम ने अपना तर्क दिया की विष्णु भगवान का निवास स्थान छिरसागर, पहाड़ से नीचे ही तो होगा इसिलिये ये रास्ता नीचे की तरफ जा रहा है। पर ऐसा नहीं है, बद्रीनाथ धाम की ऊंचाई (3300 मीटर) जोशीमठ की ऊंचाई ( 1875 मीटर ) से बहुत अधिक है। हम अपने आस पास के नजारो का आनंद लेते हुए विष्णु प्रयाग पहुँच चुके थे।
विष्णु प्रयाग उत्तराखंड के पाँच प्रयागों में से एक है। यहाँ के घाट भी अन्य प्रयागों की भांति ही दिखते है। अलकनंदा नदी जो की चौखम्बा के ग्लेशियरों से निकल कर माना में सरस्वती नदी को अपने में समाहित कर बद्रीनाथ से होते हुए विष्णुप्रयाग पहुचती है और नीति पास से आने वाली धौलीगंगा के साथ मिल कर प्रयाग का निर्माण करती है।
विष्णु प्रयाग से आगे बढ़ने पर सड़क की ऊंचाई में थोड़ा थोड़ा इजाफ़ा होने लगता है। विष्णुप्रयाग से गोविंदघाट तक का रास्ता अलकनंदा की तंग घाटी से हो कर गुजरता है और रास्ता ठीक ठाक सा ही है ना तो ज्यादा बढ़िया और ना तो ज्यादा टूटा फूटा। विष्णुप्रयाग से लगभग दस किलोमीटर पर गोविंदघाट है जो एक छोटा सा क़स्बा है। यह हेमकुंड साहब और फूलों की घाटी जाने वालों के लिए एक पड़ाव का काम करता है।
हेमकुंड साहब सिख समुदाय का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है पर यहाँ बहुत से हिन्दू श्रद्धालु भी जाते है। हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी जाने के लिए पहले घांघरिया जाना पड़ता है, और वहाँ से 9 किलोमीटर का ट्रैक करके हेमकुंड साहिब पहुंचा जा सकता है। इसी तरह फूलो की घाटी जाने के लिए भी पहले घांघरिया और वहाँ से 3 किलोमीटर का ट्रैक करके फूलो की घाटी का आनंद लिया जा सकता है। आपको बताते चले की गोविंदघाट से घांघरिया जाने के लिए शुरुआती 4 किलोमीटर तक जीप की सुविधा है पर उसके आगे 11 किलोमीटर पैदल ही जाना पड़ता है।
गोविंदघाट में कई छोटे बड़े होटल भी है और एक गुरुद्वारा भी है। यहाँ एक चेकपोस्ट भी है। हमारी गाड़ी को भी चेकपोस्ट पर थोड़ी देर के लिए रोक दिया गया था। हमारा ड्राइवर गाड़ी से उतर कर चेकपोस्ट तक गया और एंट्री करवा के वापस आ गया। यहाँ से तंग घाटी धीरे धीरे चौड़ी होने लगती है। गोविन्द घाट से आगे बढ़ने पर हम एक ऐसी जगह पहुँच गए जहाँ सड़क का नामो निशान ही नहीं था और यहाँ ऊपर से लगातार पत्थर गिरते रहते है। ड्राइवर ने हमें बताया कि यहाँ बहुत सी गाड़ियाँ फस जाती है, पर बद्रीनाथ की कृपा से हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ और हमने वो बौल्डरो वाला पैच सुरक्षित पार कर लिया।
अब सड़क की ऊँचाई में तीव्र वृद्धि होनी शुरू हो गई। एक एक मोड़ हमें दस से पंद्रह फुट ऊपर ले जा रहे थे। यह सड़क केवल बद्रीनाथ ही नहीं जा रही थी बल्कि उससे भी आगे घस्तोली तक जा रही थी, रास्ते में खड़े मील के पत्थर कम से कम यही बता रहे थे। मेरे हिसाब से घस्तोली माना पास पर कही होगा। जहां जाने के लिए परमिट, शिपकी ला जाने के लिए परमिट के मिलने जितना ही कठिन है। अर्थात आम लोगो का माना पास जाना माना है । अब शाम का समय हो चला था और वातावरण में थोड़ी ठण्ड भी बढ़ गई थी। शाम के लगभग साढ़े चार बज चुके थे और हम भगवान विष्णु के धाम बद्रीनाथ में पहुँच चुके थे।
सारे सहयात्री तुरंत ही कोई कमरा लेकर आराम के मूड में आ चुके थे। तभी मैंने उनको माना गांव के बारे में बताया जो बद्रीनाथ से महज तीन या चार किलोमीटर की दूर है। ये गांव हिंदुस्तान के आखिरी गांव का रुतबा रखता है। यह सुन कर सभी लोग उसी वक्त माना जाने के लिए तैयार हो गए पर पता नहीं हमारे ड्राइवर को क्या हो गया वो माना जाने के लिए मना करने लगा। वो कहने लगा की माना जाने की पहले कोई बात नहीं हुई थी और इसके अलग से पैसे लगेंगे। पर तिवारी जी और अन्य सहयात्रियों के समझाने और न समझने पर दुत्कारने पर वो मान गया। फिर क्या था पंद्रह मिनट में ही हम माना गांव के गेट पर थे।
गाड़ी से उतर कर सभी ने अपने अकड़े हुए शरीर को सीधा किया और फोटो खींचने में लग गए। हम पूरा गांव तो नहीं देख पाए पर गांव में एक आध किलोमीटर का चक्कर जरूर लगा आये। गांव में कुछ एक छोटी मोटी दुकाने थी, रोजमर्रा की वस्तुएं बिक रही थी और हाँ सबसे जरुरी चीज चाय भी। हम हिंदुस्तान के आखिरी चाय की दुकान पर नहीं जा पाए, क्योकि अब दिन ढलने लगा था और सभी लोग कल की, की गई केदारनाथ की यात्रा तथा आज सुबह से ही गाड़ी में बैठे रहने से काफी थक गए थे। अब हमें इस बात की जल्दी थी की हमें एक अदद कमरा मिल जाये जिसमे हम आराम कर सके। इसलिए हमने बद्रीनाथ की वापसी की राह पकड़ ली और कुछ ही देर में हम बद्रीनाथ में थे।
- मंदिर के समीप ही एक परमार्थ लोक नाम का आश्रम है। यह आश्रम काफी बड़ा है, पर हमें यहाँ कोई कमरा नहीं मिला। इसी आश्रम के बगल में ही एक बेरी वाला अतिथि भवन है जिसमे हमें 1200 रुपयों में दो कमरे मिल गए कमरे काफी बड़े और साफ सुथरे थे। रहने की व्यवस्था होने के बाद यह तय हुआ की इसी समय बद्रीनाथ के दर्शन कर लेते है क्योंकि अगले दिन शाम को साढ़े छः बजे देहरादून से तिवारी जी और उनके दो मित्रो राजीव जी और अजय जी की लुधियाना के लिए ट्रेन थी जिसके लिए हमें सुबह जल्दी ही निकलना भी था। तिवारी जी तो नहा धोकर तैयार हो अजय जी और राजीव जी के कमरे में चले गए अब नहाने की बारी मेरी और गौतम जी की थी पर पानी को हाथ लगाते ही मुझे नहाने शब्द से ही डर लगने लगा । मौसम की ठंडक को देखते हुए, शायद गौतम का भी यही विचार रहा होगा, क्योंकि उसने कहा कि केवल शिखा को स्नान कराने से भी स्नान का पुण्य मिल जाता है। बस फिर क्या था, हमने शिखा स्नान किया और तैयार हो कर कमरे से बाहर आ गए।
बाहर आने पर पता चला की तिवारी जी एंड कंपनी का कोई अता पता नहीं है, इस स्थिति में हमें लगा की सभी लोग बद्रीनाथ के दर्शनों के लिए चले गए है, तो हमने भी बिना समय गवाये मंदिर की तरफ कुच कर दिया। आधे रास्ते में ही तिवारी जी और उनके साथी हमें वापस आते दिखाई पड़ गए, मामला यह था कि यह लोग कुछ जलपान करने के लिए चले गए थे और अब वापस कमरे में नहाने के लिए जा रहे थे। यहाँ से तिवारी जी हमारे साथ हो लिए और अजय जी को बोल दिया गया कि आप लोग सीधे मंदिर में हमसे मिलें। भूख तो हम लोगो को भी काफी लगी हुई थी गुप्तकाशी में खाई हुई रोटियाँ पेट में कही लुप्त हो चुकी थी तो हमने एक रेस्टुरेंट की तीन सीटों पर कब्ज़ा जमा लिया और जलेबी से शुरुआत करने के बाद पकौड़ो तथा चाय को अपने उदर में स्थान दिया।
बद्रीनाथ धाम में काफी चहल पहल दिखाई पड़ रही थी, अनेक प्रकार की सजी धजी दुकाने श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। यहाँ हर प्रकार के रेस्टुरेंट और रहने के लिए कई वैराइटी के आश्रम, लॉज और होटल मौजूद है। जहाँ केदारनाथ में रहने और खाने पीने के काफी कम विकल्प है वही बद्रीनाथ में हर प्रकार की सुख सुविधा उपलब्ध है। कह सकते है जैसे देव वैसा उनका धाम। भोले नाथ फक्कड़ घुमक्कड़ देव के रूप में जाने जाते है उन्ही के अनुरूप केदारनाथ धाम में आधुनिक सुख सुविधा का नितांत आभाव है वही भगवान विष्णु पालनहार के रूप में जाने जाते है और उनके धाम में हर प्रकार की व्यवस्था उपलब्ध है। शायद इसका एक कारण यहाँ पहुँचने की सुगमता भी है।
पेट पूजा के बाद हमारे कदम मंदिर की तरफ बढ़ चले। मंदिर से सटे ही अलकनंदा नदी बह रही थी जिस पर एक पुल बना हुआ है। पुल पार करते ही तप्त कुंड है जिसमे बारहो महीने गर्म पानी आता रहता है। यहाँ श्रद्धालुओं के नहाने की भी व्यवस्था है। तप्त कुंड के गर्म पानी के वजह से वातावरण में धुंध सी छायी हुई थी। कुछ सीढ़ियाँ चढ़ कर हम मंदिर के प्रांगण में पहुँच गए और यहाँ पर शुरू हुआ फोटो खींचने खिंचाने का लंबा दौर। मंदिर के प्रांगण में भक्तों की भारी भीड़ उपस्थित थी जो रंग बिरंगी लाइटो से सजे हुए बद्रीनाथ जी के मंदिर को अलपक निहार रहे थे।
जब हम मंदिर तक पहुंचे मंदिर के कपाट बंद थे और थोड़ी देर में ही शयन आरती के लिए खुलने वाले थे। इसी बीच अजय जी और राजीव जी भी आ गए। सभी ने अपनी अपनी श्रद्धानुसार प्रसाद लिया और कपाट खुलने पर मंदिर के अंदर प्रवेश किया। मंदिर में भगवान विष्णु की शालिग्राम की मूर्ति स्थापित है जो काले रंग की है। ऑफ सीजन होने के वजह से हमने खूब इत्मीनान से दर्शन किये और भगवान बद्रीनाथ जी का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त किया। मुख्य मंदिर के अलावा प्रांगण में अनेक देवी देवताओं की मूर्तियां भी है जिन पर हमने अपने शीश नवाये। मंदिर प्रांगण में ही शंकराचार्य जी का भी एक मंदिर है और इस मंदिर के बगल में ही मुख्य पुजारी जो दक्षिण भारत से आते है और उन्हें रावल कहा जाता है, का आवास भी है।
भगवान बद्रीनाथ के दर्शनों के उपरांत अब हम बद्रीनाथ के बाजार में आ गए थे और भोजन करने के लिए उपयुक्त जगह की तलाश कर रहे थे तभी हमारी नजर मिश्रा जी के होटल पर पड़ी और उनके भोजनालय का मेनू हमारी अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा था तो हमने उनके भोजनालय पर भोजन करने को प्राथमिकता दी। रात के लगभग 9 बजने वाले थे मौसम काफी ठंडा हो गया था, भोजन के पश्चात पीने को गर्म पानी भी यहाँ उपलब्ध था पर पानी का ग्लास हाथ में लेते ही पानी का रंग रूप देख कर पानी पीने की इच्छा जाती रही। दरअसल ये पानी तप्त कुंड का था जो देखने में गंदला सा था। पर सभी को ये पानी पीता देख मैंने भी दो ग्लास पानी पी लिया क्योकि अगर रात में प्यास लगती तो गर्म पानी कही नहीं मिलने वाला था और इतनी ठण्ड में ठंडा पानी पीया ही नहीं जाता।
भोजन के बाद तिवारी जी, अजय जी और राजीव जी बाजार की तरफ निकल गए पर मुझे और गौतम को ठण्ड लग रही थी तो हमने अतिथि भवन की तरफ जाना ही उचित समझा। भोजनालय से कमरे तक की दूरी लगभग 500 मीटर की रही होगी इतनी दूरी तय करने में गौतम की तबियत अचानक से बिगड़ने लगी और उसे ठण्ड के मारे कंपकपी सी आने लगी। कमरे में पहुंचते ही मैंने उसके ऊपर दो कंबल और दो रजाइयां डाल दी, करीब पंद्रह मिनट के बाद उसके हालात में सुधार आया। तब तक तिवारी जी भी आ गए थे। उनको इस ठण्ड से जरा सा भी प्रभाव नहीं पड़ रहा था यह उनकी अच्छी फिटनेस लेवल को दर्शा रहा था।
इस घटना के बाद रात में कोई दिक्कत नहीं हुई और रात आराम से कट गई। सुबह सभी लोग जल्दी उठ गए और दैनिक क्रियाओं से निवृत हो कर तैयार हो गए। मैंने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो वहाँ का नज़ारा देखता ही रह गया। नर नारायण पर्वत की घाटी , नीलकंठ पर्वत की गोद में स्थित बद्रीनाथ धाम की छटा, दिन के उजाले में अलौकिक प्रतीत हो रही थी। सूर्य की पहली किरण नीलकंठ के बर्फीले शिखर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी थी, जिससे सफ़ेद बर्फ सुनहरी हो गई थी, और ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो ये किरणे पर्वत शिखर पर आग लगा देंगी।
अब मेरा ध्यान अपने आस पास की खाली पड़ी जमीन पर पड़ा, जमीन पर उगी घास पर बर्फ की पतली सी परत पड़ी हुई थी। फिर मेरी नजर हमारे गाड़ी पर गई जिसके सामने और पीछे की कांच पर बर्फ की एक परत जमी हुई थी। अब मुझे समझ में आ गया था कि रात में इतनी ठण्ड क्यों लग रही थी। अतिथि गृह का हिसाब किताब निबटा कर हम भारी मन से गाड़ी में बैठ गए। हमारी दो धाम यात्रा संपन्न हो चुकी थी। अब हमें वापस अपने घर पहुँचना था। वापसी में हम जोशीमठ ,चमोली, कर्णप्रयाग और फिर रुद्रप्रयाग होते हुए शाम साढ़े पांच बजे देहरादून पहुँच गए।
अब बात करते है इस यात्रा में किये गए खर्चे की, सभी लोगो ने मिल कर 25000 रूपये खर्च किये जिसमे गाड़ी का किराया 17000 रूपये था। बाकी के 8000 रुपयों में 7अकटुबर 2018 से 10 अकटुबर 2018 तक रहना खाना इत्यादि खर्चे हुए थे। देहरादून पहुँचने के बाद हमारे सम्मिलित पैसो में से 700 रूपये बच गए थे जिसे हमने ड्राइवर को इनाम के रूप में दे दिया। इस प्रकार प्रति व्यक्ति 5000 रुपयों का खर्चा आया।
।। ॐ नमः शिवाय ।।
।। जय बद्री विशाल ।।
माना गांव |
माना गांव से दिखता मिलिट्री कैंप |
माना गांव |
माना गांव का एक प्रहरी |
माना गांव की एक दुकान |
माना गांव की एक निवासी |
बोर्ड जहाँ से माना गांव दिखाई पड़ने लगता है |
बद्रीनाथ धाम और तप्त कुंड से उठता भाप |
जय हो बद्रीविशाल |
आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर |
बद्रीनाथ मंदिर के सीढ़ियो के नीचे लिखी कुछ पंक्तियॉ |
हमारा कमरा |
गाड़ी के शीशे पर पड़ी बर्फ |
हमारा ठिकाना |
ज़ूम करके देखने पर सूर्य की पहली किरण पर्वत शिखर पर दिखाई देगी |
परमार्थ लोक |
घास में पड़ी बर्फ |
एक सुन्दर नज़ारा |
विष्णु प्रयाग |
विष्णु प्रयाग |
अन्य यात्रायें:-