Thursday, April 25, 2019

केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा2018 भाग 6 KEDARNATH, BADRINATH YATRA 2018 PART 6

 इस यात्रा को शुरुआत से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

जोशीमठ से विष्णुप्रयाग जाने वाली सड़क  एक दम खड़ी ढलान वाली थी। अब तक हम ऊंचाई पर जा रहे थे, पर अचानक से अब हम नीचे उतरने लगे, ऊपर से नीचे देखने पर ऐसा लग रहा था कि हम पाताल लोक में जा रहे है। ड्राइवर ने हमें बताया कि पहले यह रास्ता बहुत ही पतला हुआ करता था। ऊपर से नीचे जाने और नीचे से ऊपर आने वाले वाहनों को बारी बारी से छोड़ा जाता था। यहाँ गौतम ने अपना तर्क दिया की विष्णु भगवान का निवास स्थान छिरसागर, पहाड़ से नीचे ही तो होगा इसिलिये ये रास्ता नीचे की तरफ जा रहा है। पर ऐसा नहीं है, बद्रीनाथ धाम की ऊंचाई (3300 मीटर) जोशीमठ की ऊंचाई ( 1875 मीटर ) से बहुत अधिक है। हम अपने आस पास के नजारो का आनंद लेते हुए विष्णु प्रयाग पहुँच चुके थे।

विष्णु प्रयाग उत्तराखंड के पाँच प्रयागों में से एक है। यहाँ के घाट भी अन्य प्रयागों की भांति ही दिखते है। अलकनंदा नदी जो की चौखम्बा के ग्लेशियरों से निकल कर माना में सरस्वती नदी को अपने में समाहित कर बद्रीनाथ से होते हुए विष्णुप्रयाग पहुचती है और  नीति पास से आने वाली धौलीगंगा के साथ मिल कर प्रयाग का निर्माण करती है।
विष्णु प्रयाग से आगे बढ़ने पर सड़क की ऊंचाई में थोड़ा थोड़ा इजाफ़ा होने लगता है। विष्णुप्रयाग से गोविंदघाट तक का रास्ता अलकनंदा की तंग घाटी से हो कर गुजरता है और रास्ता ठीक ठाक सा ही है ना तो ज्यादा बढ़िया और ना तो ज्यादा टूटा फूटा। विष्णुप्रयाग से लगभग दस किलोमीटर पर गोविंदघाट है जो एक छोटा सा क़स्बा है। यह हेमकुंड साहब  और फूलों की घाटी जाने वालों के लिए एक पड़ाव का काम करता है।

हेमकुंड साहब सिख समुदाय का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है पर यहाँ बहुत से हिन्दू श्रद्धालु भी जाते है। हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी जाने के लिए पहले घांघरिया जाना पड़ता है, और वहाँ से 9 किलोमीटर का ट्रैक करके हेमकुंड साहिब पहुंचा जा सकता है। इसी तरह फूलो की घाटी जाने के लिए भी पहले घांघरिया और वहाँ से 3 किलोमीटर का ट्रैक करके फूलो की घाटी का आनंद लिया जा सकता है। आपको बताते चले की गोविंदघाट से घांघरिया जाने के लिए शुरुआती 4 किलोमीटर तक जीप की सुविधा है पर उसके आगे 11 किलोमीटर पैदल ही जाना पड़ता है।

 गोविंदघाट में कई छोटे बड़े होटल भी है और  एक गुरुद्वारा भी है। यहाँ एक चेकपोस्ट भी है। हमारी गाड़ी को भी चेकपोस्ट पर थोड़ी देर के लिए रोक दिया गया था। हमारा ड्राइवर गाड़ी से उतर कर चेकपोस्ट तक गया और एंट्री करवा के वापस आ गया। यहाँ से तंग घाटी धीरे धीरे चौड़ी होने लगती है। गोविन्द घाट से आगे बढ़ने पर हम एक ऐसी जगह पहुँच गए जहाँ सड़क का नामो निशान ही नहीं था और यहाँ ऊपर से लगातार पत्थर गिरते रहते है। ड्राइवर ने हमें बताया कि यहाँ बहुत सी गाड़ियाँ फस जाती है, पर बद्रीनाथ की कृपा से हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ और हमने वो बौल्डरो वाला पैच सुरक्षित पार कर लिया।

अब सड़क की ऊँचाई में तीव्र वृद्धि होनी शुरू हो गई। एक एक मोड़ हमें दस से पंद्रह फुट ऊपर ले जा रहे थे। यह सड़क केवल बद्रीनाथ ही नहीं जा रही थी बल्कि उससे भी आगे घस्तोली तक जा रही थी, रास्ते में खड़े मील के पत्थर कम से कम यही बता रहे थे। मेरे हिसाब से घस्तोली माना पास पर कही होगा। जहां जाने के लिए परमिट, शिपकी ला जाने के लिए परमिट के मिलने जितना ही कठिन है। अर्थात आम लोगो का माना पास जाना माना है । अब शाम का समय हो चला था और वातावरण में थोड़ी ठण्ड भी बढ़ गई थी। शाम के लगभग साढ़े चार बज चुके थे और हम भगवान विष्णु के धाम बद्रीनाथ में पहुँच चुके थे।

 सारे सहयात्री तुरंत ही कोई कमरा लेकर आराम के मूड में आ चुके थे। तभी मैंने उनको माना गांव के बारे में बताया जो बद्रीनाथ से महज तीन या चार किलोमीटर की दूर है। ये गांव हिंदुस्तान के आखिरी गांव का रुतबा रखता है। यह सुन कर सभी लोग उसी वक्त माना जाने के लिए तैयार हो गए पर पता नहीं हमारे ड्राइवर को क्या हो गया वो माना जाने के लिए मना करने लगा। वो कहने लगा की माना जाने की पहले कोई बात नहीं हुई थी और इसके अलग से पैसे लगेंगे। पर तिवारी जी और अन्य सहयात्रियों के समझाने और न समझने पर दुत्कारने पर वो मान गया। फिर क्या था पंद्रह मिनट में ही हम माना गांव के गेट पर थे।

गाड़ी से उतर कर सभी ने अपने अकड़े हुए शरीर को सीधा किया और फोटो खींचने में लग गए। हम पूरा गांव तो नहीं देख पाए पर गांव में एक आध किलोमीटर का चक्कर जरूर लगा आये। गांव में कुछ एक छोटी मोटी दुकाने थी, रोजमर्रा की वस्तुएं बिक रही थी और हाँ सबसे जरुरी चीज चाय भी। हम हिंदुस्तान के आखिरी चाय की दुकान पर नहीं जा पाए, क्योकि अब दिन ढलने लगा था और सभी लोग कल की, की गई केदारनाथ की यात्रा तथा आज सुबह से ही गाड़ी में बैठे रहने से काफी थक गए थे। अब हमें इस बात की जल्दी थी की हमें एक अदद कमरा मिल जाये जिसमे हम आराम कर सके। इसलिए हमने बद्रीनाथ की वापसी की राह पकड़ ली और कुछ ही देर में हम बद्रीनाथ में थे।


  • मंदिर के समीप ही एक परमार्थ लोक नाम का आश्रम है। यह आश्रम काफी बड़ा है, पर हमें यहाँ कोई कमरा नहीं मिला। इसी आश्रम के बगल में ही एक बेरी वाला अतिथि भवन है जिसमे हमें 1200 रुपयों में दो कमरे मिल गए कमरे काफी बड़े और साफ सुथरे थे। रहने की व्यवस्था होने के बाद यह तय हुआ की इसी समय बद्रीनाथ के दर्शन कर लेते है क्योंकि अगले दिन शाम को साढ़े छः बजे देहरादून से तिवारी जी और उनके दो मित्रो राजीव जी और अजय जी की लुधियाना के लिए ट्रेन थी जिसके लिए हमें सुबह जल्दी ही निकलना भी था। तिवारी जी तो नहा धोकर तैयार हो अजय जी और राजीव जी के कमरे में चले गए अब नहाने की बारी मेरी और गौतम जी की थी पर पानी को हाथ लगाते ही मुझे नहाने शब्द से ही डर लगने लगा । मौसम की ठंडक को देखते हुए, शायद गौतम का भी यही विचार रहा होगा, क्योंकि उसने कहा कि केवल शिखा को स्नान कराने से भी स्नान का पुण्य मिल जाता है। बस फिर क्या था, हमने शिखा स्नान किया और तैयार हो कर कमरे से बाहर आ गए।

बाहर आने पर पता चला की तिवारी जी एंड कंपनी का कोई अता पता नहीं है, इस स्थिति में हमें लगा की सभी लोग बद्रीनाथ के दर्शनों के लिए चले गए है, तो हमने भी बिना समय गवाये मंदिर की तरफ कुच कर दिया। आधे रास्ते में ही तिवारी जी और उनके साथी हमें वापस आते दिखाई पड़ गए, मामला यह था कि यह लोग कुछ जलपान करने के लिए चले गए थे और अब वापस कमरे में नहाने के लिए जा रहे थे। यहाँ से तिवारी जी हमारे साथ हो लिए और अजय जी को बोल दिया गया कि आप लोग सीधे मंदिर में हमसे मिलें। भूख तो हम लोगो को भी काफी लगी हुई थी गुप्तकाशी में खाई हुई रोटियाँ पेट में कही लुप्त हो चुकी थी तो हमने एक रेस्टुरेंट की तीन सीटों पर कब्ज़ा जमा लिया और जलेबी से शुरुआत करने के बाद पकौड़ो तथा चाय को अपने उदर में स्थान दिया।

बद्रीनाथ धाम में काफी चहल पहल दिखाई पड़ रही थी, अनेक प्रकार की सजी धजी दुकाने श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। यहाँ हर प्रकार के रेस्टुरेंट और रहने के लिए कई वैराइटी के आश्रम, लॉज और होटल मौजूद है। जहाँ केदारनाथ में रहने और खाने पीने के काफी कम विकल्प है वही बद्रीनाथ में हर प्रकार की सुख सुविधा उपलब्ध है। कह सकते है जैसे देव वैसा उनका धाम। भोले नाथ फक्कड़ घुमक्कड़ देव के रूप में जाने जाते है उन्ही के अनुरूप केदारनाथ धाम में आधुनिक सुख सुविधा का नितांत आभाव है वही भगवान विष्णु पालनहार के रूप में जाने जाते है और उनके धाम में हर प्रकार की व्यवस्था उपलब्ध है। शायद इसका एक कारण यहाँ पहुँचने की सुगमता भी है।

पेट पूजा के बाद हमारे कदम मंदिर की तरफ बढ़ चले। मंदिर से सटे ही अलकनंदा नदी बह रही थी जिस पर एक पुल बना हुआ है। पुल पार करते ही तप्त कुंड है जिसमे बारहो महीने गर्म पानी आता रहता है। यहाँ श्रद्धालुओं के नहाने की भी व्यवस्था है। तप्त कुंड के गर्म पानी के वजह से  वातावरण में धुंध सी छायी हुई थी। कुछ सीढ़ियाँ चढ़ कर हम मंदिर के प्रांगण में पहुँच गए और यहाँ पर शुरू हुआ फोटो खींचने खिंचाने का लंबा दौर। मंदिर के प्रांगण में भक्तों की भारी भीड़ उपस्थित थी जो  रंग बिरंगी लाइटो से सजे हुए बद्रीनाथ जी के मंदिर को अलपक निहार रहे थे।

 जब हम मंदिर तक पहुंचे मंदिर के कपाट बंद थे और थोड़ी देर में ही शयन आरती के लिए खुलने वाले थे। इसी बीच अजय जी और राजीव जी भी आ गए। सभी ने अपनी अपनी श्रद्धानुसार प्रसाद लिया और कपाट खुलने पर मंदिर के अंदर प्रवेश किया। मंदिर में भगवान विष्णु की शालिग्राम की मूर्ति स्थापित है जो काले रंग की है। ऑफ सीजन होने के वजह से हमने खूब इत्मीनान से दर्शन किये और भगवान बद्रीनाथ जी का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त किया। मुख्य मंदिर के अलावा प्रांगण में अनेक देवी देवताओं की मूर्तियां भी है जिन पर हमने अपने शीश नवाये। मंदिर प्रांगण में ही शंकराचार्य जी का भी एक मंदिर है और इस मंदिर के बगल में ही मुख्य पुजारी जो दक्षिण भारत से आते है और उन्हें रावल कहा जाता है, का आवास भी है।

भगवान बद्रीनाथ के दर्शनों के उपरांत अब हम बद्रीनाथ के बाजार में आ गए थे और भोजन करने के लिए उपयुक्त जगह की तलाश कर रहे थे तभी हमारी नजर मिश्रा जी के होटल पर पड़ी और उनके भोजनालय का मेनू हमारी अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा था तो हमने उनके भोजनालय पर भोजन करने को प्राथमिकता दी। रात के लगभग 9 बजने वाले थे मौसम काफी ठंडा हो गया था, भोजन के पश्चात पीने को गर्म पानी भी यहाँ उपलब्ध था पर पानी का ग्लास हाथ में लेते ही पानी का रंग रूप देख कर पानी पीने की इच्छा जाती रही। दरअसल ये पानी तप्त कुंड का था जो देखने में गंदला सा था। पर सभी को ये पानी पीता देख मैंने भी दो ग्लास पानी पी लिया क्योकि अगर रात में प्यास लगती तो गर्म पानी कही नहीं मिलने वाला था और इतनी ठण्ड में ठंडा पानी पीया ही नहीं जाता।

भोजन के बाद तिवारी जी, अजय जी और राजीव जी  बाजार की तरफ निकल गए पर मुझे और गौतम को ठण्ड लग रही थी तो हमने अतिथि भवन की तरफ जाना ही उचित समझा। भोजनालय से कमरे तक की दूरी लगभग 500 मीटर की रही होगी इतनी दूरी तय करने में गौतम की तबियत अचानक से बिगड़ने लगी और उसे ठण्ड के मारे कंपकपी सी आने लगी। कमरे में पहुंचते ही मैंने उसके ऊपर दो कंबल और दो रजाइयां डाल दी, करीब पंद्रह मिनट के बाद उसके हालात में सुधार आया। तब तक तिवारी जी भी आ गए थे। उनको इस ठण्ड से जरा सा भी प्रभाव नहीं पड़ रहा था यह उनकी अच्छी फिटनेस लेवल को दर्शा रहा था।

इस घटना के बाद रात में कोई दिक्कत नहीं हुई और रात आराम से कट गई। सुबह सभी लोग जल्दी उठ गए और दैनिक क्रियाओं से निवृत हो कर तैयार हो गए। मैंने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो वहाँ का नज़ारा देखता ही रह गया। नर नारायण पर्वत की घाटी , नीलकंठ पर्वत की गोद में स्थित बद्रीनाथ धाम की छटा, दिन के उजाले में अलौकिक प्रतीत हो रही थी। सूर्य की पहली किरण नीलकंठ के बर्फीले शिखर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी थी, जिससे सफ़ेद बर्फ सुनहरी हो गई थी, और ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो ये किरणे पर्वत शिखर पर आग लगा देंगी।

अब मेरा ध्यान  अपने आस पास की खाली पड़ी जमीन पर पड़ा, जमीन पर उगी घास पर बर्फ की पतली सी परत पड़ी हुई थी। फिर मेरी नजर हमारे गाड़ी पर गई जिसके सामने और पीछे की कांच पर बर्फ की एक परत जमी हुई थी। अब मुझे समझ में आ गया था कि रात में इतनी ठण्ड क्यों लग रही थी। अतिथि गृह का हिसाब किताब निबटा कर हम भारी मन से गाड़ी में बैठ गए। हमारी दो धाम यात्रा संपन्न हो चुकी थी। अब हमें वापस अपने घर पहुँचना था। वापसी में हम जोशीमठ ,चमोली, कर्णप्रयाग और फिर रुद्रप्रयाग होते हुए शाम साढ़े पांच बजे देहरादून पहुँच गए। 

अब बात करते है इस यात्रा में किये गए खर्चे की, सभी लोगो ने मिल कर 25000 रूपये खर्च किये जिसमे गाड़ी का किराया 17000 रूपये था। बाकी के 8000 रुपयों में 7अकटुबर 2018 से 10 अकटुबर 2018 तक रहना खाना इत्यादि खर्चे हुए थे। देहरादून पहुँचने के बाद  हमारे सम्मिलित पैसो में से  700 रूपये बच गए थे जिसे हमने ड्राइवर को इनाम के रूप में दे दिया। इस प्रकार प्रति व्यक्ति 5000 रुपयों का खर्चा आया।
         
                        ।। ॐ नमः शिवाय ।।
                        ।। जय बद्री विशाल ।।


माना गांव

माना गांव से दिखता मिलिट्री कैंप

माना गांव

माना गांव का एक प्रहरी

माना गांव की एक दुकान

माना गांव की एक निवासी

बोर्ड जहाँ से माना गांव दिखाई पड़ने लगता है

बद्रीनाथ धाम और तप्त कुंड से उठता भाप

जय हो बद्रीविशाल

आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर

बद्रीनाथ मंदिर के सीढ़ियो के नीचे लिखी कुछ पंक्तियॉ

हमारा कमरा

गाड़ी के शीशे पर पड़ी बर्फ

हमारा ठिकाना

ज़ूम करके देखने पर सूर्य की पहली किरण पर्वत शिखर पर दिखाई देगी

परमार्थ लोक

घास में पड़ी बर्फ

एक सुन्दर नज़ारा

विष्णु प्रयाग

विष्णु प्रयाग
अन्य यात्रायें:-







Thursday, February 28, 2019

केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा 2018 भाग5 KEDARNATH, BADRINATH YATRA 2018 PART 5

इस यात्रा को शुरुआत से पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

आज दिनांक 9/10/2018 को सोनप्रयाग में सुबह पांच बजे हम सो के उठे, हमने ड्राइवर को रात में ही बता दिया था कि हम कल बहुत सवेरे ही बद्रीनाथ के लिए निकलेंगे तो वो भी गाड़ी की साफ़ सफाई करके तैयार हो गया था। हम लगभग छः, साढ़े छह बजे सोनप्रयाग से निकल पड़े। हमने अभी तक नाश्ता भी नहीं किया था। सबके सहमति से तय हुआ था कि गुप्तकाशी में थोड़ी देर रुक कर नाश्ता या भोजन ले लिया जाएगा। सोनप्रयाग से गुप्तकाशी तक का रास्ता बहुत ही बुरी दशा में था। हम हिचकोले खाते आगे बढ़ रहे थे, तभी सड़क के किनारे एक हेलिपैड दिखा और उस पर एक हेलीकाप्टर भी खड़ा था। केदारनाथ जाने के लिए फाटा में कई हेलिपैड है, जहाँ से केदारनाथ जाया जा सकता है। ये हेलीपैड उनमे से ही एक था। हमने वहाँ हेलीकाप्टर की कुछ तस्वीरें खींची और आगे बढ़ चले।

 थोड़ी देर बाद हम गुप्तकाशी में थे। गुप्तकाशी में रहने और खाने की अच्छी व्यवस्था है। हम भी एक ढाबे में गए और देखा की गरमा गरम रोटिया सिक रही थी, तो हमने नाश्ता करने का विचार छोड़ सीधा भोजन करने को प्राथमिकता दी। कल हमने पुरे दिन और पूरी रात मिला कर केवल एक प्लेट मैग्गी और कुछ आलू की पकौड़ियां ही खाई थी। भूख के मारे पेट में चूहे ट्रैकिंग कर रहे थे। ढाबे वाला धीरे धीरे खाना परोस रहा था, अब हमसे और इंतजार नहीं किया जा रहा था, तो हमने उससे जल्दी से खाना परोसने को कहा तब उसके हाथों में थोड़ी फुर्ती आयी और सेकेंडो में खाने की थालियां हमारे सामने थी। हमने भी खूब छक के खाना खाया। खाना भी बहुत स्वादिष्ट था, नहीं भी होता तो भी चलता। भूखे पेट सब कुछ अच्छा लगता है।

 इसी बीच मेरी नजर ढाबे के दिवाल पर लगे एक पोस्टर की तरफ पड़ी जिसमे एक लड़की के बारे में लिखा था कि वो 2013 के हादसे में खो गई थी और अगर किसी को उसके बारे में कोई भी जानकारी हो तो उसके घरवालों को बताया जाये। उस पोस्टर में घरवालो का नंबर भी दिया गया था। इस पोस्टर को देख कर मुझे यह लगा की भले ही 2013 की विनाशलीला को गुजरे कई साल हो गए है पर उसमे जो लोग ग़ुम हो गए थे उनको उनके घरवाले आज भी ढूंढ़ रहे है। मैंने मन ही मन सोचा वाह रे भोले बाबा तेरी भी लीला बड़ी ही विचित्र है किसी से रुष्ठ होते हो तो उसका विनाश कोई रोक नहीं सकता और प्रसन्न होते हो तो उसका कल्याण हो कर ही रहता है।

भोजन करते करते मुझे केदारनाथ के चमत्कार की एक कथा याद पड़ गई जो मैंने किसी से सुनीं थी, उस कथा को मैं यहाँ संक्षेप बताने का प्रयास कर रहा हूँ। एक बार भोले बाबा का  एक सच्चा भक्त केदारनाथ धाम के दर्शनों के लिए अपने घर से चला, उस समय मोटर गाड़िया नहीं चलती थी तो वो पैदल ही बाबा से भेंट करने की इच्छा अपने ह्रदय में ले के चल दिया। उसे अपने घर से केदारनाथ तक पहुंचने में कई महीने लग गए और जिस दिन वो मंदिर तक पहुंचा उसी दिन मंदिर के कपाट आगामी छः महीनो के लिए बंद हो चुके थे, और मंदिर के सभी पुजारी और महंत केदारनाथ से  नीचे उतर रहे थे। उस व्यक्ति ने पुजारीयो से बहुत विनती की और उनके हाथ पाव जोड़े की उसको कपाट खोल के भोलेनाथ के दर्शन करवा दें। उसने पुजारीयो को बताया कि वो कई महीनो से भोले बाबा के दर्शनों की इच्छा ले के पैदल सफर करता हुआ यहाँ तक पहुंचा है और उसके लिए पुनः यहाँ आना संभव नहीं होगा, पर पुजारीयो ने उसकी एक नहीं सुनी और वो उसे गिड़गिड़ाता छोड़ नीचे की तरफ प्रस्थान कर गए। वो व्यक्ति बड़ा ही दुखी हो के मंदिर की सीढियो पर बैठ कर रोने लगा और अपने भाग्य को कोसने लगा की मंदिर तक पहुंच कर भी उसे भोलेनाथ के दर्शन नहीं हुए। तभी वहाँ एक चरवाहा उसके पास आया और उससे उसके रोने का कारण पूछने लगा। रोते हुए आदमी ने उसे अपनी पूरी कहानी सुना दी।

उसकी कहानी सुनने के बाद उस चरवाहे ने उससे कहा कि पुजारीओं में से कुछ उसके जान पहचान के भी है और वह उन पुजारीयो से  विनती करके उन्हें कल मंदिर तक ले आएगा और उसे भोलेनाथ के दर्शन अवश्य करवाएगा। तब तक तुम यही रुको और रात में यही सो जाना और जब तुम सुबह जागोगे तो भगवान केदारनाथ के दर्शन अवश्य करोगे, ऐसा कह कर वो व्यक्ति चला गया। इन सब बातों से भोलेनाथ के दर्शनों के लिए आये हुआ यात्री को बड़ा संबल मिला और वो खाना वगैरा बना खा के वही पास के एक चबूतरे पर सो गया। सुबह जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा की पुजारीयो और अनेक भक्तो का हुजूम मंदिर की तरफ बढ़ा चला आ रहा है और मंदिर के कपाट खोले जा रहे हैं। वो जल्दी से मंदिर के कपाट की तरफ भागा और पुजारीयो को उसके लिए मंदिर के कपाट खोलने के लिए आभार प्रकट करने लगा। मंदिर के पुजारियो ने उसे बड़े आश्चर्य से देखा और कहा कि तुम तो वही व्यक्ति हो न जो छः महीने पहले यहाँ आये था। दरअसल वो यात्री भोलेनाथ की कृपा से छः महीने तक बर्फ़बारी के बीच  भूख, प्यास और ठण्ड से विरक्त सोता रहा था। और छः महीने बाद जब भोलेनाथ के कपाट पुनः खुले तब उसकी नींद खुली और वो चरवाहा जो उस यात्री से मिला था वो साक्षात् शिव ही थे। अब ये सिर्फ एक कहानी है अथवा इसमे कुछ सत्य है ये तो भोलेनाथ ही जाने।

पेट पूजा होने के बाद अब हमारी गाड़ी बद्रीविशाल के दर्शनों के लिए बढ़ चली। कुंड तक तो रास्ता वही था जिस रास्ते हम आये थे पर कुंड से हमने बद्रीनाथ जाने के लिए ऊखीमठ, चोपता, गोपेश्वर मार्ग से होते हुए जाना था। कुंड से ऊखीमठ आठ किलोमीटर और ऊखीमठ से चोपता इक्कतीस किलोमीटर दूर है।। हमारी गाड़ी का ड्राइवर हमें ऊखीमठ स्थित भोलेनाथ नाथ के मंदिर  पर ले गया। जब सर्दियों में केदारनाथ धाम  बर्फ से ढक जाता है और मंदिर के कपाट आगामी छः महीनो के लिए बंद हो जाता है तब भोलेनाथ की पूजा ऊखीमठ स्थित इसी मंदिर में होती है। हम मंदिर के अंदर नहीं गए और बाहर से भोलेनाथ को नमन कर चोपता की तरफ बढ़ चले।

ऊखीमठ से चोपता तक का रास्ता घने जंगल से हो के गुजरता है। चोपता घुम्मकड़ो की दुनियां का बहुत ही मशहूर ठिकाना है जहाँ से पंच केदारों में से एक तुंगनाथ जी जाने के लिए ट्रेकिंग की शुरुआत होती है। तुंगनाथ पूरी दुनिया में भगवान शिव के सबसे ऊंचाई वाली जगह पर स्थित मंदिर के कारण भी जाना जाता है। तुंगनाथ से कुछ ऊपर जाने पर चंद्रशिला चोटी है, जहाँ से दूर तक पसरी हिमालय की बर्फीली चोटियो का दीदार किया जा सकता है। चोपता पहुँच कर मुझे लगा की काश एक दिन का समय हमारे पास और होता तो लगे हाथ तुंगनाथ और चंद्रशिला का ट्रैक भी कर लेते पर हमें हर हाल में आज बद्रीनाथ पहुचना ही था तो हमने गाड़ी में से ही चोपता को अलविदा कहा और गोपेश्वर की तरफ बढ़ चले।

रास्ते में सगर और मंडल गांव भी मिले जहाँ से पंच केदारों में से सबसे दुर्गम माने जाने वाले केदार रुद्रनाथ जी के लिए ट्रैकिंग की शुरुआत होती है। चोपता से गोपेश्वर की दुरी सैंतीस किलोमीटर की है। गोपेश्वर चमोली जिले के अंतरगत आता है और काफी बड़ा नगर होने के साथ ही जिला मुख्यालय भी है। गोपेश्वर के बाद हमारी अगली मंजिल चमोली थी जो  गोपेश्वर से छः किलोमीटर दूर है। चमोली से बाहर निकल कर हम जोशीमठ वाले मार्ग पर चल रहे थे की एक ढाबे को देख कर हमने गाड़ी रुकवाई और वहाँ गरमा गरम पकौडियॉ खाई और चाय पी गई। चमोली से जोशीमठ पचपन  किलोमीटर दूर है और हमारा अगला लक्ष्य भी वही था। चमोली से जोशीमठ तक हम लगातार ऊँचाई पर चले जा रहे थे। रास्ते में एक दो जगह भूस्खलन भी हुआ था। और सड़क पर मलबा बिखरा पड़ा था। जेसीबी मशीनों द्वारा मलबा हटाने के बाद ही हम आगे बढ़ पाये।

 जोशीमठ से तेरह किलोमीटर पहले एक पावर प्रोजेक्ट ने हमारा ध्यान आकर्षित किया। बाद में पता चला की यह तपोवन विष्णुगाड हाइड्रोपावर प्लांट है जिसमे 540mw बिजली बनाने की क्षमता है। यहाँ से ऊंचाई में काफी इजाफा होने लगता है और मौसम के मिजाज में भी बदलाव साफ दिखाई पड़ने लगता है। जोशीमठ की तरफ बढ़ते हुए सड़क के किनारे वृद्ध बद्री मंदिर जाने का रास्ता दिखाई दिया पर समयाभाव के कारण हम वहाँ नहीं जा सके। सर्पीले रास्तो से होते हुए और बारिश की महीन रिमझिम फुहारों के बीच हम कब जोशीमठ पहुँच गए हमें पता ही नहीं चला।

जोशीमठ की ऊंचाई समुद्र तल से 1875 मीटर की है। जोशीमठ स्कीइंग की दुनिया  में  प्रसिद्ध औली जाने का के लिए एक प्रवेश द्वार की भांति है। जोशीमठ से औली जाने के लिए सड़क मार्ग के अलावा रोप वे की भी सुविधा है। औली जिसकी ऊंचाई 2500 मीटर से लेकर 3050 मीटर की है, सर्दियो में स्कीइंग करने वाले लोगो से गुलजार रहता है। यहाँ के पहाड़ो के ढाल स्कीइंग के लिए सर्वथा उपयुक्त है। औली की इन्ही खासियत के कारण केवल अपने देश से ही नहीं वरन विदेशो से भी काफी लोग यहाँ स्कीइंग करने आते है।

मन तो बहुत था कि इतनी दूर आये है तो औली भी घूमते चले पर हम अपने समय चक्र से ऐसे बंधे थे की हमें आज शाम तक बद्रीनाथ पहुचना ही था, तो हमने औली को दूर से टाटा बॉय बॉय किया और पुनः अपने पूर्व निर्धारित मार्ग पर चलना शुरू कर दिया। 
                                 
अन्य यात्रायें :-

 फाटा में हेलिपैड

गुप्तकाशी

गुप्तकाशी की सड़के।

ज़ूम करने पर बोर्ड के पीछे दिखता केदारनाथ पर्वत।

अलकनंदा नदी

ढाबे के पीछे से गुजरती अलकनंदा।

चारधाम परियोजना का कार्य जोर शोर से चलता हुआ।

विष्णुगाड परियोजना के लिए जाती सड़क।

Thursday, January 17, 2019

केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा2018 भाग 4 KEDARNATH, BADRINATH YATRA 2018 PART 4

इस यात्रा को शुरुआत से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

केदारनाथ बेस कैंप तक पहुंचने के बाद गौतम और मैं वही बैठ कर आराम करने लगे। गौतम ने मुझसे कहा कि तुम आगे बढ़ो मैं धीरे धीरे मंदिर तक चला आऊंगा। लेकिन मैंने भी सोच लिया था कि अब चाहे कितनी भी देर हो जाये मंदिर तक तो हम साथ में ही जायेंगे। मैंने वही पास की एक दुकान से  बिस्किट का एक पैकेट लिया और चाय बनवाई। चाय बिस्किट खाके हमारे थके शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया और अब हम आगे बढ़ने को तैयार हो गए थे।  चाय बिस्किट और थोड़े आराम के बाद मैंने समय देखा तो दोपहर के तीन बजने वाले थे और तीन बजे मंदिर के कपाट बंद होने का समय भी था, पुनः शाम को पांच बजे कपाट खुलते।

Tuesday, November 27, 2018

केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा 2018 भाग 3 KEDARNATH, BADRINATH YATRA 2018 PART 3

इस यात्रा को शुरुआत से पढ़ने के लिए  यहाँ क्लिक करें।


रात में जल्दी सो जाने के कारण, सुबह होने के पहले ही रात में करीब दो बजे मेरी नींद खुल गई। मैंने दुबारा सोने की कोशिश की पर मुझे नींद नहीं आई, तब मैंने सोचा की बाथरूम तो एक ही है सभी लोग एक साथ उठेंगे तो फ्रेश होने और नहाने में दिक्कत होगी। मुझे अब नींद नहीं आ रही थी तो मैं बाथरूम में गया और फ्रेश हो कर ब्रश भी कर लिया।

Friday, November 09, 2018

केदारनाथ, बद्रीनाथ यात्रा 2018 भाग 2। KEDARNATH,BADRINATH YATRA 2018 PART 2

इस यात्रा विवरण को शुरू से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।

पराठों से पेट भरने के बाद हम अपने सफर पर फिर बढ़ चले। अब हमारा रास्ता ऊँचे ऊँचे पहाड़ो के बीच से हो कर गुजर रहा था। पतित पावनी माँ गंगा भी हमारे रास्ते के साथ ही बह रही थी। कभी कभी हम नदी से दूर चले जाते तो कभी कभी नदी के एक दम पास हो जाते। गंगा नदी नागिन की तरह इठलाती बलखाती अपने टेढ़े मेढ़े रास्ते पर स्वछंद बहती जा रही थी और हम उसके किनारों का अनुसरण करते अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे, मानो माँ गंगा स्वयं हमें रास्ता दिखा रही हो। हम एक के बाद एक पहाड़ो को पार करते चले जा रहे थे पर पहाड़ थे के खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। प्रकृति का यह विराट और अनंत स्वरुप देख कर हम आश्चर्यचकित थे और उस विधाता के आगे नतमस्तक भी जिसने ये सब बनाया था।

Saturday, November 03, 2018

केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा 2018। भाग1 KEDARNATH , BADRINATH YATRA 2018. PART1

                ॐ नमः शिवाय। जय बद्री विशाल।

इस उद्घघोस के साथ मैं अपनी केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा का वर्णन शुरू कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि यह यात्रा वर्णन आप को पसंद आये तथा भविष्य में इस यात्रा पर जाने वालों को इस ब्लॉग के माध्यम से कुछ मार्गदर्शन मिल सके तो मेरा यह ब्लॉग लिखना सफल हो जायेगा।

Friday, September 14, 2018

लद्दाख डायरी, लेह और आस पास Ladakh Diary, leh and around

इस यात्रा को शुरुआत से पड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।


दो दिन की रोमांचक और थका देने वाली यात्रा के बाद लेह की रात बहुत ही आरामदायक बीती और रात को अच्छी नींद भी आई। सुबह जब हम उठे तो काफी अच्छा महसूस कर रहे थे। हमारे मित्र राहुल जी जिनकी तबियत सरचू में ख़राब हो गई थी वो भी अब ठीक ठाक दिखाई पड़ रहे थे। होटल में गर्म पानी से नहाने के बाद हम सभी लद्दाख के नयनाभिराम दृश्यो को अपनी आँखों और अपने कैमरों में कैद करने को तैयार थे।