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Saturday, November 03, 2018

केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा 2018। भाग1 KEDARNATH , BADRINATH YATRA 2018. PART1

                ॐ नमः शिवाय। जय बद्री विशाल।

इस उद्घघोस के साथ मैं अपनी केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा का वर्णन शुरू कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि यह यात्रा वर्णन आप को पसंद आये तथा भविष्य में इस यात्रा पर जाने वालों को इस ब्लॉग के माध्यम से कुछ मार्गदर्शन मिल सके तो मेरा यह ब्लॉग लिखना सफल हो जायेगा।

इस यात्रा की रुपरेखा यात्रा शुरू होने के तीन चार महीने पहले ही मेरे दिमाग में बन गई थी, लेकिन जाने के लिए कोई साथी नहीं मिल रहा था। कई साल पहले की गई अमरनाथ जी की यात्रा से मुझे ये अनुभव हुआ था कि ऐसी दुर्गम यात्राओं मे कम से कम एक साथी का होना, एक और एक ग्यारह की कहावत को सही मायनों में चरितार्थ करता है। यात्रा में किसी साथी के होने की उलझन से बाहर निकलने में, मुझे दिल्ली वाले मित्र राजन का साथ मिला। राजन जो पहले दिल्ली में कार्यरत था अब उसका स्थानांतरण देहरादून में हो गया है। वह इस यात्रा में मेरे साथ जाने को तैयार हो गया। इसी बीच एक दिन तिवारी जी जिनका जिक्र मैंने अपने वैष्णो देवी वाले ब्लॉग में किया है, से मिलना हुआ। उन्होंने और उनके दो मित्रो राजीव जी और अजय जी ने इस यात्रा पर हमारे साथ जाने की हामी भर दी और यात्रा पर जाने की तारीख तय हो गई। यात्रा से कुछ दिन पहले एक और मित्र गौतम तिवारी ने भी इस यात्रा में अपनी रूचि दिखाई और उनकी भी ट्रैन की टिकट काट ली गई।

 तय यह हुआ की मैं अपने दुकान के काम से लुधियाना जाऊँगा और वही से तिवारी जी और उनके दोनों मित्रो के साथ ऋषिकेश की ट्रेन पकड़ लूंगा। राजन देहरादून से एक गाड़ी बुक कर के ऋषिकेश पहुँच कर हमें रिसीव कर लेगा और गौतम भी सीधे ऋषिकेश में ही हमें मिलेगा। इस यात्रा के शुरुआत के लिए 7 अकटुबर 2018 का दिन निश्चित कर लिया गया। पर परिस्थितियॉ ऐसी बनी की मैं 6 तारीख को ही देहरादून पहुँच गया। वहाँ जाने पर राजन ने बताया कि वह इस यात्रा में हमारे साथ नहीं जा पायेगा क्योकि 8 तारीख को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी इन्वेस्टर समिट के लिए देहरादून आ रहे है और उसका बैंक की भी इस समिट में भाग लेगा, इसलिए उसका ब्रांच में रहना बहुत जरुरी है। मैं देहरादून में था तो मैंने गौतम को भी देहरादून आने को कह दिया।

 मेरे पास दिन भर का समय था इसलिये मैंने मसूरी घूमने का प्लान बना लिया और  देहरादून के पर्वतीय बस अड्डे से बस पकड़ कर मसूरी पहुँच गया। मसूरी देहरादून से मात्र  पैंतीस किलोमीटर दूर है और बस से एक तरफ का किराया 60 रूपये है। वैसे तो मैं इसके पहले दो बार मसूरी जा चूका था, पर दोनों बार गन हिल नहीं जा पाया था। इस बार ये सोच कर गया था कि गनहिल तो जरूर जाना है। गनहिल मसूरी के माल रोड से 400 फिट ऊपर एक पहाड़ी है। आजादी के पहले यहाँ एक बड़ी सी बन्दुक रहती थी, जिसे हर रोज दोपहर में एक निश्चित समय पर फायर किया जाता था।  मसूरी के लोग बन्दूक की फायरिंग के समय से अपनी घड़ी के समय का मिलान करते थे। मसूरी के बस अड्डे से लगभग दो किलोमीटर दूर गनहिल जाने के लिए रोपवे मिलती है। मैं घूमते घामते वहाँ पहुँच गया और गनहिल जाने के लिए रोपवे का टिकट ले लिया। टिकट शायद 75 या 100 रूपये का था। जब मै रोपवे की ट्रॉली में बैठा तो मैं पूरी ट्राली का इकलौता यात्री था, और पूरी ट्रॉली में अकेले ही बैठ कर गनहिल पहुँच गया।

गनहिल मसूरी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। ऊपर अनेक टूरिस्ट घूम रहे थे और ऊपर से मसूरी के विहंगम नजारो का लुफ्त उठा रहे थे। गनहिल पर खाने पीने की अनेको दुकाने थी। मैंने भी एक दुकान में चाय पी। इस दुकान के पीछे भी बैठने की जगह थी, तो मैं टहलते हुए वहाँ पहुँच गया और वहाँ के नजारो को देख कर दंग रह गया। वहाँ से मसूरी कि सबसे ऊंची चोटी लाल टिब्बा और उसके पीछे सुदूर में विराट हिमालय की बर्फीली चोटियाँ दिखाई दे रही थी, जिन्हें बादल कभी ढक लेते और कभी हमें उन चोटियों की सुंदरता को निहारने के लिए अपना रास्ता बदल देते। गनहिल पर एक जगह कुछ दूरबीनें लगी हुई थी जिसका शुल्क चुका के कोई भी इन बर्फीली चोटिओं का दीदार अच्छी तरह से कर सकता था। यही पास में ही शनि देवता का मंदिर भी था, इसी मंदिर में हनुमान जी की भी मूर्ति स्थापित है। मैने भी मंदिर में जा कर भगवान् के दर्शन किये और अगले दिन से शुरू होने वाली केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा के सकुशल पूरा होने का आशीर्वाद माँगा।

 इसी बीच गौतम का फोन आया की वो देहरादून से 50 किलोमीटर दूर है और एक डेढ़ घंटे में देहरादून पहुँच जायेगा। गनहिल और वहाँ से दिखाई पड़ने वाले नजारो का भरपूर लुफ्त लेने के बाद मैं गनहिल से नीचे उतर आया और बस अड्डे की तरफ जाने लगा, तभी मेरा ध्यान सड़क के किनारे के एक स्मारक ने खींच लिया। इस स्मारक का नाम शहीद स्मृति स्थल था। मैं अपने आप वहाँ खिंचा चला गया। यह स्थल  उत्तराखंड राज्य बनाने के संघर्ष में  जो लोग शहीद हो गए, उन की स्मृति में बनाया गया है। मैं थोड़ी देर तक वहाँ बैठा रहा, कुछ समय बाद  मुझे याद आया कि गौतम देहरादून पहुँचने वाला होगा और मुझे उसे रिसीव करने देहरादून के बस अड्डे जाना था। मैं तुरंत ही मसूरी के बस अड्डे पर भागा और बस पकड़ कर वापस देहरादून आ गया। मेरे देहरादून पहुँचने के कुछ देर बाद गौतम भी देहरादून पहुँच गया ।

राजन के जान पहचान का एक ट्रेवेल एजेंट था, जिससे मैंने बात की तो उसने एक इंनोवा गाड़ी देहरादून से केदारनाथ और केदारनाथ से बद्रीनाथ होते हुए देहरादून तक के लिए 17000 रुपयों में उपलब्ध करवा दी। इसमे तेल, पार्किंग, ड्राइवर का खर्च इत्यादि सारे खर्चे सम्मिलित थे। लुधियाना में तिवारी जी से बात करके मैंने गाड़ी की बुकिंग करवा दी और गाड़ी को सबेरे साढ़े छः बजे राजन के घर पर भेजने को कह दिया। शाम को राजन, गौतम और मैं देहरादून में घूमते रहे। राजन को हमारे साथ न जाने का बहुत अफ़सोस हो रहा था पर परिस्थितियॉ ही ऐसी बन गई की वो चाह के के भी नहीं जा पा रहा था।

देहरादून मुझे बहुत ही शांत जगह लगी और वहाँ का मौसम भी बहुत अच्छा लगा न ज्यादे गर्मी न ज्यादे ठंडी। चारो तरफ छितिज पर पहाड़ नजर आ रहे थे। देहरादून की दूरी दिल्ली से 285 किलोमीटर, ऋषिकेश से 45 किलोमीटर, हरिद्वार से 53 किलोमीटर और सहारनपुर से 69किलोमीटर की है। यहाँ का रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरो से जुड़ा हुआ है। यहाँ एक हवाई अड्डा भी है जिसका नाम जॉली ग्रांट है।

देहरादून में रात होने तक तफरी करने के बाद हम राजन के घर आ गए और खाना खा कर कुछ पुरानी कॉलेज की बाते करते सो गए। सुबह 6 बजे के घड़ियाल की आवाज सुन कर मैं उठ गया और गौतम को भी जगा दिया। हम जल्दी से तैयार हो गए और गाड़ी का इंतजार करने लगे। सात बजने को आया पर गाड़ी का कोई अता पता नहीं था। मैंने ट्रेवेल एजेंट को फ़ोन लगाया तो उसने बताया कि ड्राइवर को आप लोगो का घर नहीं मिल रहा है। हमने उससे ड्राइवर का नंबर लिया और ड्राइवर से बात करके उसे अपना पता समझा दिया। दस मिनट में गाड़ी घर के सामने थी। हमने भारी मन से राजन से विदा ली और उनके साथ न चलने का अफ़सोस  जाहिर करते हुए गाड़ी में बैठकर ऋषिकेश की तरफ निकल पड़े। अब हमें  साढ़े आठ बजे तक ऋषिकेश के रेलवे स्टेशन पहुँचाना था, ताकी हम तिवारी जी एंड कंपनी को रिसिव कर सके जो हेमकुंड एक्सप्रेस से आ रहे थे। देहरादून से ऋषिकेश जाने के दो रास्ते है एक रास्ता हाईवे से हो कर जाता है, जो अब फोर लेन में तब्दील हो रहा है। और दूसरा एक जंगल से होकर गुजरता है। हमें देर हो रहा थी तो हमने जंगल वाला रास्ता चुना इस रास्ते की सड़के टू लेन की थी पर अच्छी हालात में थी, और सुबह सुबह जंगल की ताजी हवा लेते हुए और हरे भरे पेड़ो को निहारते हुए हम कब ऋषिकेश पहुँच गए ये हमें पता ही नहीं चला।

सवा आठ बजे हम ऋषिकेश के रेलवे स्टेशन के बाहर खड़े थे। हमारा ड्राइवर संजय जो एक ठिगने कद का हँसमुख स्वभाव वाला आदमी था, उसने हमसे कहा जब तक ट्रेन नहीं आती तब तक चाय पी लें, पर हमारा मन नहीं था । हमने उसे चाय पीने भेज दिया और हम स्टेशन में ही चहल कदमी करने लगे। ठीक साढ़े आठ बजे ट्रैन प्लेटफॉर्म पर आ लगी और कुछ ही देर में तिवारी जी और उनके दोनों मित्र हमारे साथ थे। आपस में सबका परिचय होने की औपचारिकता के बाद हम गाड़ी में बैठ गए और 'बाबा केदारनाथ की जय' के उद्घोष के साथ हमारी यात्रा शुरू हो गई।

स्टेशन से बाहर निकल कर हमने ड्राइवर को बता दिया की किसी अच्छी जगह देखकर गाड़ी रोकना जहाँ हमें कुछ खाने पीने को मिल जाये। लेकिन उसके हिसाब से वह अच्छी जगह पता नहीं कहाँ थी। हम गंगा जी के किनारे किनारे चलते रहे ।रास्ते में रामझूला और लक्ष्मण झूला भी दिखाई दिया पर हम कही रुके नहीं क्योकि हमारा लक्ष्य सोनप्रयाग पहुँचना था। जो ऋषिकेश से 212 किलोमीटर की दूरी पर है। धीरे धीरे हमने ऋषिकेश शहर को पार कर लिया। शहर के बाहर निकलते ही चार धाम आल वेदर रोड के निर्माण कार्य से हमारा सामना हुआ। चारधाम यात्रा के सुचारु रूप से चलते रहने और यात्रियों कि सुविधा के लिए सड़क को चार लेन की करने की यह एक महत्वकांक्षी योजना है। इस कार्य के वजह से सारे रास्ते हमें धुल और मिट्टी का सामना करना पड़ा। और कही कही जाम से भी हमारा पाला पड़ा। इन सब के बारे में बाद में चर्चा करेंगे।

फ़िलहाल हमें बड़े जोरो की भूख लगी थी पर ड्राइवर को अच्छी जगह मिल ही नहीं रही थी वह बस हमें दिलासा दे रहा था कि अच्छी जगह आगे है, ऐसा लग रहा था कि मोदी जी कह रहे हो 'अच्छे दिन आने वाले है'। रास्ते में सड़क के दोनों तरफ राफ्टिंग करने के लिए आने वालो की गाड़ियां लगी हुई थी। सैलानियो की काफी भीड़ भाड़ थी। कुछ गाड़ियों पर राफ्ट भी लदी हुई थी। ऋषिकेश के पास शिवपुरी राफ्टिंग के लिए बहुत ही प्रसिद्ध जगह है। अब हम शिवपुरी में थे। यहाँ राफ्टिंग कराने वालो की बहुत सी दुकानें थी, जहाँ से कोई भी राफ्टिंग का शुल्क जमा कर के राफ्टिंग के लिए जा सकता था। ये दुकान वाले अपनी गाड़ियो में लोगो को ले कर गंगा नदी तक जाते है, और लोगो को गंगा नदी में राफ्टिंग का आंनद दिलाते है। इसी बीच तिवारी जी को सेल्फी के भूत ने पकड़ लिया और गाड़ी में बैठे बैठे कभी अकेले तो कभी ग्रुप सेल्फी का दौर चल पड़ा। बाद में इन्हे फेसबुक पर अपलोड करने का काम मुझे करना पड़ा।

देखते ही देखते शिवपुरी भी पार हो गई पर 'अच्छे दिन नहीं आये', अरे लिखने में गलती हो गई 'अच्छी जगह नहीं आई'। भूख के मारे हमें ऐसा लगने लगा हमारे पेट में चूहे राफ्टिंग कर रहे है। खैर थोड़ी देर बाद वो अच्छी जगह आ ही गई। यहाँ हमने आलू के परांठे और दही खाई तथा गर्मा गर्म चाय पी। यहाँ आके हमें पता चला की  हमारा ड्राइवर अच्छी जगह पर इतना जोर क्यूँ दे रहा था। ये होटल वाला हमारे ड्राइवर की पहचान का था और ड्राइवर को यहाँ फ्री में खाना और साथ में कुछ न्योछावर भी मिला। पेट पूजा होने के बाद हमने अपना आगे का सफर फिर शुरू किया।

अगला भाग :- केदारनाथ, बद्रीनाथ यात्रा 2018 भाग 2।                            

मेरी कुछ अन्य यात्रायें:-
त्रियुंड ट्रेक
खीरगंगा ट्रेक
वैष्णो देवी की यात्रा 2018
लद्दाख डायरी

पाँच पथिक, सबसे आगे तिवारीजी,बीच वाली सीट पर आपके दाहिने तरफ मैं, बायीं तरफ गौतम, पीछे की सीट पर दाहिनीं तरफ अजय जी और बायीं तरफ राजीव जी।

रोप वे की तारे। नीचे से ऊपर तक, ज़ूम करके देखे।

लाल शटर के अंदर टिकट घर।

रोप वे की ट्राली।

गनहिल पर, शनि देव मंदिर।

गनहिल की दुकानें।

गनहिल से दिखता मसूरी का विहंगम नज़ारा।

गनहिल पर लगी दूरबीनें।

रोप वे का रास्ता, ऊपर से नीचे की ओर।

शहीद, जिन्होंने उत्तराखंड बनाने में अपने जान की आहुति दे दी।      

शहीद स्मृति स्थल।

ऋषिकेश का रेलवे स्टेशन।

गनहिल से दीखता लाल टिब्बा।







3 comments:

  1. भाई बाहर फ़ोटो अलग लगा है और अंदर देखा तो अभी तो मसूरी ऋषिकेश ही पहुचे है...अगले भाग का wait रहेगा

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  2. वाह शानदार यात्रा वृतांत

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