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Monday, July 02, 2018

वैष्णो देवी की यात्रा 2018 Vaishno Devi Yatra 2018

                            ।। जय माता दी।।
कहते है कि जब माता का बुलावा आता है तो माता किसी न किसी बहाने से अपने भक्तों को बुला ही लेती हैं।

माता रानी की कृपा से लगातार पिछले सात आठ सालों से उनके दर्शनों का सौभाग्य मुझे मिलता रहा है। इन सालो में मुझे माता रानी के दरबार में जाने की प्रेरणा गोरखपुर निवासी एवं लुधियाना में कार्यरत श्री लल्लन तिवारी जी से मिली जो स्वयं माता जी के अनन्य भक्त और बड़े ही सात्विक विचारो वाले व्यक्ति है। हम एक साल में एक बार या ज्यादा से ज्यादा दो बार माता के दर्शनों के लिए जा पाते है पर तिवारी जी पर माता की कुछ विशेष कृपा ही कही जाएगी की पचास साल से ज्यादा की अवस्था होने के बाद भी वह हर महीने, जी हाँ आपने सही पढ़ा हर महीने यानी की साल में बारह बार माता के दरबार में उनके दर्शनों के लिए जाते रहते है।
उनका यह क्रम पिछले कई सालों से लगातार चला आ रहा है। मैंने अपनी पिछली सात आठ यात्राएं उन्ही के साथ की थी। पर ये निरंतरता किसी कारणवश जारी नहीं रह सकी। और साल 2017 में मैं माता के दरबार में नहीं जा पाया। साल 2018 के शुरुआत में मैंने अपने मित्र गौतम तिवारी जी के साथ कटरा जाने की योजना बनाई पर वो भी परवान नहीं चढ़ सकी।

इसी बीच 27 मार्च 2018 को दुकान के काम से मुझे दिल्ली जाना पड़ा। 28 मार्च की सुबह को मैं दिल्ली के गांधीनगर मार्किट में जा पंहुचा पर वहां जाने पर पता चला की मार्किट तो बंद है। दरअसल उस दिन पूरी दिल्ली सिलिंग के विरोध में बंद थी। और ज्यादा पूछताछ करने पर पता चला की 29 तारीख को महावीर जयंती है और उसके कारण मार्किट कल भी बंद रहेगा। मैंने मन ही मन में कहा कि अब तो बुरे फसे दो दिन दिल्ली में रुक कर मैं क्या करूँगा। इसी उधेड़बुन में एक ढेड़ घंटे बीत गए । मैं वही पास में एक चाय की दुकान में बैठ कर चाय पीने लगा और सोचने लगा की मुझे दिल्ली किसी व्यापारी को फ़ोन करके आना चाहिए था ताकी वो मुझे इस बंदी के बारे में बता देता और मैं दो दिन बाद आता। तभी मेरी नजर दुकान पर लगे माता वैष्णो देवी के फोटो पर गई तो मन में विचार आया की माता रानी के दर्शन के लिए इससे अच्छा अवसर हो ही नहीं सकता। यहाँ दिल्ली में  दो दिन बेकार बैठने से तो अच्छा है की मैं माता के दरबार में हाजिरी ही लगा आऊ।

मैंने तुरंत ही अपने मोबाइल पर दिल्ली से कटरा जाने और वहां से आने के लिए ट्रेन के टिकट देखना शुरू कर दिया। मुझे जाने के लिए किसी ट्रेन में आरक्षण नहीं मिला पर किस्मत से कटरा से दिल्ली वापस आने की टिकट उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस में मिल गई जो शाम को सात बजे कटरा से चल कर सबेरे छः बजकर पैतालीस मिनट पर दिल्ली पहुंच जाती है। दोपहर के बारह बज रहे थे तो मैंने मार्किट में ही खाना खा लिया और कश्मीरी गेट बस अड्डे के लिए निकल गया। ढेड़ बजे मै बस अड्डे पर था और कटरा या जम्मू जाने वाली बस को ढूंढने लगा। बस अड्डे पर घूमते घूमते मैं एक टिकट काउंटर पर पहुँच गया जहाँ से पठानकोट, जम्मू और कटरा की बसे मिलती है। वहाँ जम्मू जाने वाली एक बस खड़ी थी। मैंने बस के अंदर झाँक के देखा तो बस यात्रियो से खचाखच भरी हुई थी। भीड़ देख कर मेरी उस बस में जाने की हिम्मत ही नहीं पड़ी। वापस टिकट काउंटर पर जाने पर पता चला की अगली बस जो कटरा तक की है एक घंटे बाद जायेगी। मैंने दूसरी बस के टिकट एडवांस में ले लिए। दिल्ली से कटरा तक का किराया 650 रूपये था।अब मेरे पास कोई काम नहीं था तो मैं वही बैठ कर बस का इंन्तजार करने लगा।

कश्मीरी गेट बस अड्डे से उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर राज्यो के लिए बसे हर समय उपलब्ध रहती है। पहले यहाँ से उत्तर प्रदेश की भी बसे  मिलती थी पर अब उन बसों को आनंद विहार बस अड्डे पर शिफ्ट कर दिया गया है। एक घंटे के इंन्तजार के बाद मेरी बस टिकट काउंटर के पास आ कर खड़ी हो गई। सभी यात्री बस में बैठने लगे तो मैं भी बस में चढ़ गया और अपनी खिड़की वाली सीट पर कब्ज़ा जमा लिया। बस तक़रीबन तीन बजे खुल गई। दिल्ली से कटरा की कुल दुरी 640  km है।बस का चालक एक सरदार था जिसने थोड़ी देर में ही बस को हवा से बातें कराना शुरू कर दिया। मेरी बस दिल्ली से चल कर केवल अम्बाला और जालंधर में ही रुकी वो भी बहुत कम समय के लिए ।

रात के ग्यारह बजे के आस पास हम पठानकोट पहुँच चुके थे। वहाँ पहुँच के ड्राइवर महोदय को हम बेचारे भूखे यात्रियो पर दया आई और उन्होंने बस को एक लुटेरे टाइप के ढाबे पर रोक दिया। इस ढाबे का थर्ड क्लास खाना खा के और फर्स्ट क्लास बिल का भुगतान करके हम वापस बस में बैठ गए। रात में करीब ढेड़ बजे हमारी बस जम्मू पहुँच गई। लगभग सारी सवारियां यही उतर गई केवल चार पांच लोग ही कटरा जाने वाले थे जो बस में बैठे रहे। मैंने मौके का फायदा उठाके जिस तरफ तीन सवारियां बैठती है उन सीटों पर अपना बिस्तर लगा लिया और चादर तान के सो गया। मैंने सोचा यहाँ से कटरा जाने में दो घंटे तो लगेंगे ही। तब तक सो लिया जाये। पर उस तूफानी रफ़्तार वाले ड्राइवर ने मेरे प्लान पर पानी फेरते हुए रात के ढाई बजे ही बस को कटरा पंहुचा दिया।

कटरा में बस से उतरते ही होटल वालो के दलालों की भीड़ ने मुझे घेर लिया और होटल लेने को पूछने लगे। मैंने उनसे बताया कि मुझे केवल तीन घंटे के लिए होटल चाहिए और मेरा बजट 200 या ज्यादे से ज्यादे 250 रूपये का है तो वो भीड़ तुरंत ही छट गई। अब मैंने अपने चारों तरफ देखना शुरू किया। मैं कटरा बस स्टैंड वाले चौराहे पर खड़ा था इक्का दुक्का लोग ही नजर आ रहे थे। एक दो प्रसाद बेचने वाली दुकाने भी खुली हुई थी। चौराहे से त्रिकुटा पर्वत की तरफ देखने पर कतारों में लाइटे दिखाई पड़ रही थी जो माता के भवन की तरफ जाने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। कुल मिला के बहुत ही शानदार नजारा था। बस स्टैंड के पास ही माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड का एक विश्राम गृह है जो एक दम सड़क से लगे हुए है। मैं वहाँ तिवारी जी के साथ कई बार जा चूका था तो मैं सीधे वहाँ चला गया।

विश्राम गृह में कमरे भी है और एक हाल भी है। कमरों का किराया 600 रूपये है और हॉल में रुकने का किराया मात्र 40 रूपये है। मुझे तो केवल फ्रेश होकर नहाना था तो मुझे कमरे या हॉल की कोई जरूरत नहीं थी मैं विश्राम गृह के अंदर गया और देखा की हॉल को तोड़ दिया गया था और उसकी जगह नया निर्माण हो रहा था। बाहर सो रहे कर्मचारी को मैंने जगाया और उससे नहाने और फ्रेश होने के बारे में पूछा। तो उसने बताया कि कमरा ले लो हॉल तो टूट चूका है अब नया बन रहा है। मैंने उससे कहा कि मुझे यहाँ रुकना नहीं है बस नहाना है तो उसने सामने बाथरूम की तरफ इशारा कर दिया और कहा कि चालीस रूपये लगेंगे। मैंने कहा ठीक है पर अपना सामान कहा रक्खूं। उसने अपने बिस्तर के पास सामान रखने को कहा और सो गया। ये मुझे कुछ ठीक नहीं लगा क़ि मैं यहाँ सामान रख के बाथरूम में जाऊ और पीछे से कोई मेरा सामान ही न ले उड़े। पर कोई चारा नहीं था तो मैंने पास पड़े पैसे और मोबाइल बाथरूम में साथ ले जाने का निर्णय  लिया। मैं जब नहा के बाहर निकला तो देखा कि चौकीदार घोड़े बेच के सो रहा था। पर मेरा सामान सुरक्षित पड़ा था। मैंने अपना सामान उठाया और विश्राम गृह से बाहर चला आया।

सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे और मैं नहा धोकर माता के दरबार में जाने को तैयार खड़ा था। पर दो  समस्याऐ अभी भी थी। पहली यात्रा पर्ची कटवानी थी जो सुबह 5 बजे के बाद ही मिलती दूसरी मेरे पास एक बड़ा बैग था जिसे ढो कर ऊपर ले जाना मुझे अनावश्यक लगा। विश्राम गृह के बाहर ही एक क्लाक रूम था जो 6बजे के बाद खुलने वाला था। टाइम पास करने के लिए मैं प्रसाद की एक दुकान में चला गया वहाँ  तीन लड़के थे जिन्होंने मुझे बैठने के लिए एक कुर्सी भी दे दी। उन्ही से बातें करते करते कब पांच बज गए कुछ पता ही नहीं चला। पांच बजे मैं यात्रा पर्ची लेने के लिए लाइन में लग गया और मुझे साढ़े पांच बजे तक यात्रा पर्ची मिल गई। पर्ची लेने के बाद मैं एक चाय की दुकान पर गया और वहां मक्ख़न लगे पाव खाये और चाय पी। साढ़े छः बजे क्लाक रूम खुला और मैं सामान को क्लाक रूम में जमा करा कर माता रानी के दरबार की तरफ निकल पड़ा।

कटरा से माता के भवन की दुरी। लगभग 13 किलोमीटर की है। इस दुरी को  पैदल, पालकी या घोड़े पर बैठ कर पूरी की जा सकती है। इसके अलावा हेलीकाप्टर से भी जाने की सुविधा भी उपलब्ध है जिसका एक तरफ का किराया 1100 रूपये है। वैष्णों माता के बारे में अनेक कहानियां और मान्यताये है। जो आप सब सुधि पाठको ने कई बार पढ़ी और सुनी होंगी। तो मैं भी उस तरफ न जा कर अपनी यात्रा पर आता हूं। कटरा से एक किलोमीटर पर बाणगंगा है, वही पर एक चेक पोस्ट है, जहाँ पर सभी श्रद्धालुओं की सुरक्षा जांच होती है।  बाणगंगा पहुँचने के बाद चढ़ाई शुरू हो जाती है जो भवन तक बनी रहती है। बाणगंगा से कुछ आगे जाने के बाद चरण पादुका आता है। रास्ते में खाने पीने एवं प्रसाद की अनेको दुकाने मिलती रहती है। इसके अलावा श्राइन बोर्ड की खाने पीने की दुकानें भी हर दो तीन किलोमीटर पर मिलती रहती है। पानी पीने के प्याऊ तो हर आधे किलोमीटर पर मिलते रहते है। यात्रियो की सुविधा के लिए जगह जगह शौचालय भी बने है।  पूरे रास्ते की सड़के काफी अच्छी बनी हुई है और सड़कों के ऊपर छाया का भी इंतजाम है।

मैंने भी ।। जय माता दी ।। का उद्दघोष कर बाणगंगा से आगे बढ़ना शुरू कर दिया। शुरुआत में तीखी चढ़ाई है जो साँस फुला देती है। बाद में शरीर इसका अभ्यस्त हो जाता है। मुझे आज शाम की ट्रेन पकड़नी थी तो मैं थोड़ी जल्दबाजी में था। मैंने सोच लिया जब तक थकुंगा नही तब तक चलते ही रहूँगा। सामान के नाम पर मेरे पास केवल पानी की एक बोतल थी। जिससे समय समय पर एक दो घुट पानी पीते पीते मैं मस्ती से चला जा रहा था। ये मेरी पहली अकेली यात्रा थी लेकिन रास्ता जाना पहचाना था इसलिए कोई भी असुविधा नहीं हो रही थी। उल्टा इसका अपना फायदा भी था। अगर कोई साथ जाता है तो उसे भी साथ लेकर जाना पड़ता है और अगर वो बंदा जल्दी थकने वाला हो तो उसके साथ के चक्कर में काफी समय बर्बाद होता है। इस यात्रा में मेरे लिए समय काफी मायने रखता था क्योंकि शाम को मुझे ट्रेन भी पकड़नी थी।

 सुबह के साढ़े आठ बजे थे और मै वहाँ पहुँच गया था जहाँ से अर्द्धकुवारी और भवन को जाने का नया रास्ता 'हिमकोटी वाला रास्ता' का जंक्शन है। मैं कटरा से लगभग पांच किलोमीटर आ चुका था और मैंने कही भी कोई ब्रेक नहीं लिया था। अर्द्धकुवारी में एक काफी संकरी गुफा है जिसमे माता ने भैरवनाथ से छुपकर नौ महीने निवास किया था। मैं अर्द्धकुवारी कई साल पहले जा चूका हूँ। वैसे भी अर्द्धकुवारी के दर्शनों के लिए काफी समय लगता है तो मैंने नया वाला रास्ता 'हिमकोटी वाला' पकड़ लिया। इस रास्ते पर घोड़े और खच्चर वालो को जाने की मनाही है, इससे ये रास्ता काफी साफ़ सुथरा रहता है। इसी रास्ते पर बैट्री वाली गाड़ियाँ भी चलती है जो बुजुर्ग, बीमार और छोटे बच्चो के लिए उपलब्ध है। जिसका एक निश्चित शुल्क है जो शायद 200 या 250 रूपये है। माता के भवन जाने के लिए एक और रास्ता बन रहा है जो बाणगंगा से ही अलग हो जाता है। उस मार्ग का नाम ताराकोट मार्ग है। जिस समय मैं गया था उस समय ये मार्ग बन तो गया था पर श्रद्धालुओं के लिए अभी खुला नहीं था। पर अब जिस समय मैं ये ब्लॉग लिख रहा हूँ ये मार्ग श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है।

 मैंने आधा रास्ता पार कर लिया था वो भी बिना कही रुके। इसलिए मैने हिमकोटी के रास्ते पर दस मिनट का एक ब्रेक लिया और एक फ्रूटी पी कर आगे बढ़ चला। रास्ते के जो दृश्य थे वो बहुत ही मनोरम थे एक तरफ ऊँचे पहाड़ तो दूसरी तरफ गहरी घाटी, जहाँ से नीचे देखने पर कटरा साफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था। बीच बीच में हेलीकाप्टर की गड़गड़ाहट भी सुनाई पड़ती थी। हेलीकाप्टर कटरा से सांझी छत नाम की जगह पर जाता है जहाँ से भवन की दूरी चार किलोमीटर रह जाती है। तीन चार साल पहले मैं और तिवारी जी हेलीकाप्टर से सांझी छत से कटरा गए थे। इस हेलीकाप्टर की यात्रा में तीन मिनट ही लगे थे और हम ऊपर से नीचे कटरा पहुँच गए थे।

सुबह के सवा दस बजे मैंने माता के दरबार में अपनी हाजिरी लगा दी अर्थात भवन पहुँच गया। वहाँ जाकर सबसे पहले मैंने अपनी यात्रा पर्ची की जांच कराई और प्रसाद की दुकान से माता को चढ़ाने के लिए प्रसाद ले लिया। कभी कभी प्रसाद खत्म हो जाता है तो बेकार में इंन्तजार करना पड़ता है।  सुरक्षा की दृष्टि से भवन के अंदर पर्स, बेल्ट,मोबाइल इत्यादि वस्तुएं ले जाने की मनाही है।पर ये प्रतिबन्ध रुपयों पर नहीं है। मोबाइल, जुते चप्पल और अन्य सामान सुरक्षित रखने के लिए श्राइन बोर्ड द्वारा निशुल्क लॉकर की व्यवस्था की गई है। मैंने भी जल्दी से एक लाकर ले लिया और अपना सारा सामान उसमे रख माता के दर्शनों के लिए चल पड़ा।

 मैं जिस दिन पंहुचा था उसके एक या दो दिन पहले ही नवरात्र बीता था। पर उस दिन भी काफी भीड़ भाड़ थी। मैं भी एक हाथ में माता की भेंट लेकर लाइन में लग गया। भवन के अंदर की सुरक्षा व्यवस्था काफी सख्त है। कई चरणों में हमारी सुरक्षा जांच हुई। एक जगह सभी श्रद्धालुओं द्वारा लाये गए नारियल ले लिए जा रहे थे और बदले में एक टोकन दिया जा रहा था। भवन के अंदर चलते चलते एक ऐसी जगह आई जहाँ पर प्राचीन गुफा स्थित  है। इस गुफा के रास्ते श्रद्धलुओं को तब जाने दिया जाता है जब भीड़ भाड़ बहुत कम होता है क्यों की यह गुफा काफी संकरी है। इस गुफा के रास्ते माता के दर्शनों का सौभाग्य मुझे आज तक दो बार ही मिल पाया है। एक बार जब मैं छोटा था और अपने माता पिता के साथ यहाँ आया था। तब माता के दर्शनों के लिए यही एक मात्र रास्ता हुआ करता था और दूसरी बार तीन चार साल पहले तिवारी जी के सानिध्य में। उस साल कश्मीर में बाढ़ आई थी तो काफी कम संख्या में यात्री माता के दर्शन के लिए आये थे।

प्राचीन गुफा के थोड़ा ऊपर दो कृत्रिम गुफाएं बनाई गई है जिनसे हो कर एक बार में काफी ज्यादा श्रद्धालु आराम से माता के दर्शन कर पाते है। गुफा के अंदर माता की कोई मूर्ती नहीं है बल्की वहाँ तीन पिंडिया हैं। मैं भी कृत्रिम गुफा के मुहाने पर पंहुचा ही था कि पता लगा की माता के भोग का समय हो गया है।  खैर एक घंटे के बाद फिर से हमारी लाइन आगे बढ़ने लगी। और वो पल नजदीक आ रहा था जिसके लिए मैं इतनी दूर से आया था। मेरी बारी आने पर मैंने माता के दर्शन किये और उनके द्वारा दिए गए  आशीर्वाद को महसूस करते हुए गुफा के बाहर आ गया । बाहर आ कर टोकन के बदले में मुझे एक नारियल दिया गया। और प्रसाद के रूप में मिश्री के टुकड़े और एक जस्ते का सिक्का जिस पर माता की फोटो छपी थी, मिली। भवन से बाहर निकलते निकलते दोपहर के एक बज गए थे और मुझे जोरो की भूख भी लग गई थी। मैंने वहाँ एक डोसा खाया और लाकर के पास जा के अपना सामान ले आया।

 भवन से भैरो बाबा के मंदिर की दूरी ढेड़ km की है। वहाँ जाने का मेरा मन बिलकुल नहीं हुआ तो मैने वापसी की राह पकड़ ली। वैसे मैं भैरवनाथ मंदिर कई बार जा चुका हूँ। वापसी के रास्ते में बहुत से बन्दर दिखाई दिए जिनमे से तो कुछ यात्रियो का प्रसाद ही छीन ले रहे थे। किसी तरह बंदरो से अपने प्रसाद को बचाते हुए मैं उनसे दूर निकल आया। वापसी का पूरा रास्ता उतराई का है। दोपहर का समय होने की वजह से बड़ी गर्मी हो रही थी लेकिन लोगो का आना जाना लगा हुआ था। जब आखिर के दो या तीन km रह गए थे तब मेरे पैरों ने भी जबाब देना शुरु कर दिया। एक दो जगह छोटे छोटे ब्रेक लेकर शाम के चार बजे तक मैं कटरा के बस स्टैंड पर पहुँच गया था।

 ट्रेन पकड़ने के लिए अब भी मेरे पास तीन घंटे थे तो मैं वही एक रेस्टोरेंट में बैठ गया। रेस्टोरेन्ट में ए. सी. लगा था इसकी वजह से बाहर की गर्मी से राहत मिल रही थी। मैं दो घंटे वही बैठा रहा बीच बीच में एक आध खाने की वस्तुएं माँगा के धीरे धीरे खाता रहा। छः बजे के करीब क्लाक रूम से अपना बैग ले कर मैं कटरा रेलवे स्टेशन पहुँच गया। प्लेटफार्म पर उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस लगी हुई थी। मैं अपने डिब्बे में चला गया । मेरी ऊपर वाली बर्थ थी तो मैंने अपना आसन वहाँ पर लगाया और लेट गया। ट्रेन अपने निर्धारित समय पर खुल गई। थोड़ी देर बाद थकावट के कारण मुझे नींद आने लगी और मै सो गया। सुबह जब आँख खुलीं तो मैं दिल्ली में था।
                               (समाप्त)

अन्य यात्राएँ:-




रात के 2.30 बजे सामने त्रिकुटा पर्वत (रात के समय मोबाइल से ली गई फोटो है। इसलिए फोटो साफ नहीं आई है।)

बाणगंगा चेकपोस्ट

चेकपोस्ट पर मैं

भवन पर दर्शनों के बाद

माता का भवन और दाहिने तरफ में रोपवे जो अभी बन रहा है

निर्माणाधीन रोपवे ये यहाँ से पता नहीं कहाँ तक बन रहा है। अगर कोई जानता है तो कृपया कमेंट में बताये।

यात्रा पर्ची जाँच कक्ष उसके ठीक बगल में लॉकर रूम

वापसी में रास्ते का दृश्य

कटरा रेलवे स्टेशन के बाहर

खूबसूरत कटरा स्टेशन

अब वापस चले।

6 comments:

  1. Jai Mata Di..... Mata Rani ke darbaar tak jaane ka atyant sunder Aur sajeev chitran kiya hai apne.... Aisa lag Raha hai maano Mai Mata Rani ke darbaar me Swayam darshan Kar Sayre hoon.... Mata Rani aapki safalata Aur Samriddhi de... Jai Mata di

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    1. अगर आप को ऐसा लगता है तो मेरा ब्लॉग लिखना सफल हो गया।

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  2. Dubara darshan ho gya...bahut achha...jai mata di

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  3. Ati sunder varnan. Aisa lag raha karunakar bhai ki apki lekhni se barambar mata vaishno devi ke darshano ka punya mil raha hai. Jai mata di.

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  4. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद

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  5. Nice blog & information!
    Visit following to know more about -
    Vaishno Devi Mandir Photos
    http://punyadarshan.com/vaishno-devi-mandir-photos/

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