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Tuesday, May 15, 2018

त्रिउंड ट्रेक TRIUND TREK भागसूनाग में चहलकदमी

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होटल में शिफ्ट होने के बाद हम नहा धो के तैयार हो चूके थे और बड़ी जोरो की भूख भी लग रही थी। हम होटल के बाहर निकले और खाने के लिए एक अच्छी जगह ढूढने लगे।मैक्लोडगंज के टैक्सी स्टैंड के पास पराठों की दुकान दिखाई दी। जिन्होंने कुछ कुर्सियां बाहर खुले में डाल रखी थी। टैक्सी स्टैंड के ठीक नीचे धर्मशाला से आने वाली सड़क है, जिसके पास ही बस स्टैंड है। यहाँ काफी गाड़िया आती जाती दिखती रहती है।
हम बाहर ही बैठ गए और आराम से पहाड़ी हवा और पहाड़ो के नजारो का आनंद लेते हुए दो दो पराठो और चाय पर हाथ साफ करने लगे। दिन के करीब ग्यारह बज चुके थे और हमारा अगला लक्ष्य त्रियुंड था।

 टैक्सी वालो से पूछताछ करने पर पता चला की त्रियुंड जाने के लिए सुबह का समय अच्छा होता है। क्योंकि ट्रैकिंग के लिए पाँच से छः घंटे लग जाते है।अगर हम ग्यारह बजे निकलते तो हमें वहां पहुचने में ही शाम हो जाती फिर रात को ऊपर ही रुकना पड़ता। त्रियुंड में रात में काफी ठण्ड पड़ती है। तापमान पाँच डिग्री से भी कम हो जाता है। सर्दियों में तो वहां बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है, और तापमान माइनस में चला जाता है। खैर हम उस हिसाब के गर्म कपडे ले के नहीं आये थे, तो हमने ये फैसला किया कि त्रियुंड के लिए कल सुबह निकलेगे और आज भागसूनाग चलते है।

भागसूनाग मैक्लोडगंज से ढाई km. दूर  एक जगह है जहां भागसूनाग का मंदिर और मंदिर के ऊपर एक या डेढ़ km. पैदल चलने के बाद एक झरना है जो देखने लायक है। पेट पूजा हो चुकी थी सो हम भागसूनाग की तरफ पैदल ही निकल पड़े। अगर कोई पैदल न जाना चाहे तो टैक्सी भी मिलती है। पैदल जाने में करीब एक घंटा लगता है। बाकी आप की स्पीड पर निर्भर है। लगभग इतना ही समय वापस आने में में भी लगता है। करीब आधे km चलने के बाद हम मैक्लोडगंज से बाहर निकल गए। यहाँ से भागसूनाग का झरना थोड़ा थोड़ा दिखने लगता है। सुहाने मौसम में प्राकृतिक नजारो का आनंद लेते हुए हम भागसूनाग के नजदीक पहुच गये। भागसूनाग मंदिर से आधा km पहले बहुत सारे होटल है। जो सैलानी शहर की भीड़ भाड़ से दूर रहना चाहते है ये जगह उनके लिए अतिउत्तम है। मंदिर से कुछ दूर पहले ही सारी गाड़िया रोक दी जाती है। यहाँ से पैदल ही जाना होता है।

 हम भी मंदिर की तरफ बढ़ चले रस्ते में एक बहुत बड़ा स्विमिंग पूल बनाया गया है जिसमे झरने का पानी आता रहता है। मन किया कि यहाँ नहाया जाये पर पानी को हाथ से छूते ही जैसे करंट लग गया। बहुत ही ठंडा पानी था। तो मेरा नहाने का विचार जाता रहा। वैसे भी मैं कितना नहाता हूँ मेरे घर वाले अच्छे से जानते हैं। स्विमिंग पूल से आगे कई दुकाने और रेटोरेन्ट भी है जहाँ आप कुछ खा पी सकते है। हमारी तो पेट पूजा पहले से हो गई थी। 

थोड़ी ही देर में हम मंदिर में थे। इस मंदिर की एक कहानी है जो मंदिर के बाहर लिखी हुई है। कहा जाता है कि द्वापर युग  में भाग्सू नामक एक दैत्य राजा था। जिसके राज्य में सूखा पड़ गया। उसने प्रतिज्ञा की कि वह अपने राज्य में पानी जरूर लायेगा। वो पानी की तलाश में नाग डल ( झील को डल कहते है) पहुँच गया जो नाग देवता के राज्य का एक हिस्सा था।भाग्सू ने अपने मायावी कमंडल में पूरे झील का पानी भर लिया और वापस चल पड़ा। इस मंदिर की जगह पर रात हो गई तो वो वह यहाँ रुक गया। जब नाग देवता को इस बात का पता चला तो वो भाग्सू को ढूढ़ते हुए इस जगह पहुच गए। दोनों में लड़ाई होने लगी जिससे कमंडल का पानी गिर गया और बहने लगा लड़ाई में नाग देवता विजयी हुए।तब भाग्सू  ने
नाग देवता से प्रार्थना की कि इस पानी को बहने दिया जाये ।नाग देवता ने उसकी विनती स्वीकार कर ली और कहा इस जगह को पहले तुम्हारे फिर मेरे नाम से जाना जायेगा। इसी लिए इस जगह को भागसूनाग कहा जाने लगा।

मंदिर में दर्शन के बाद हम झरने की तरफ चल पड़े रास्ता काफी चढाई वाला है। काफी भीड़ भाड़ थी। बहुत से लोग झरने से आते पानी में पत्थरो पर बैठ कर सेल्फी ले रहे थे। हम ऊपर चढ़ते गए एक km की खड़ी चढाई के बाद हम झरने के मुहाने पर पहुच गए ।दूर से देखने पर झरना छोटा दिखता था पर पास पहुँचाने पर झरने की हाहाकारी आवाज धड़कनो को बढ़ा रही थी। झरने के पास भी खाने पीने की दुकानें थी। कुल मिला के घोर व्यवसायिकता का बोल बाला था। और लोग पानी एवं कोल्ड ड्रिंक की बोतलों का कूड़ा फैलाते दिख रहे थे। यहाँ नहाना मना था फिर भी पंजाब के कुछ गबरू नहाते हुए दिखाई दे रहे थे। कुल मिला के जगह बहुत अच्छी लगी पर ऐसा ही चलता रहा तो अच्छी रहा पायेगी या नहीं ये भागसूनाग ही जाने।

एक डेढ़ घंटे झरने का आनंद लेने के बाद हम वापस मैक्लोडगंज में आ गये। शाम हो गई थी और हमें दलाई लामा टेम्पल जाना था पर पता लगा की वो अब तक बंद हो गया होगा। इसलिए हमने वहा जाने का विचार छोड़ दिया। हम मार्किट में घूमने लगे और दो बार मोमो खाई। पहाड़ो पर मोमो खाने का मजा ही अलग है। क्योंकि ये पहाड़ी डिश ही तो है। हम होटल के रिसेप्शन पर पहुचे ही थे की वहां के कर्मचारी ने बताया कि होटल की छत पर रॉक कॉन्सर्ट का आयोजन किया गया है। जो फ्री ऑफ़ कास्ट है केवल वहां खाने के पैसे देने होंगे।

हमें भी तो रात का खाना खाना ही था। हमने सोचा यही खाते है। रात को जब हम छत पर पहुचे तो वहां मैक्लोडगंज के लोकल कलाकारों द्वारा कंसर्ट का आयोजन किया गया था। हमने खाने का आर्डर दे दिया और कंसर्ट का आनंद लेने लगे। दो तीन घंटो के कंसर्ट ने दिन भर की थकावट को मिटा दिया।हम खाना खा के अपने रूम में आ गए और सोने की तैयारी करने लगे। सुबह जल्दी उठ कर त्रियुंड जो जाना था।
आगे:-त्रिउंड ट्रेक TRIUND TREK मैक्लोडगंज से त्रिउंड


मंदिर से झरने तक का रास्ता दाई तरफ राजन 

यही से झरने के लिए चढाई सुरु होती है

ऊपर जो पानी की पतली लकीर दिख रही है वही झरने का मुहाना है

पसीने से लथपथ झरने के पास

राजन जी झरने का मजा लेते हुए

फुर्सत के पल

अभी भी गर्मी लग रही है

शाम को मार्किट में

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