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Monday, May 14, 2018

त्रिउंड ट्रेक TRIUND TREK मैक्लोडगंज मिनी तिब्बत

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सुबह का समय और सामने धौलाधार के हसीन नज़ारे मन कर रहा था कि वहीँ बैठे बैठे ये नजारा देखता रहूँ। धर्मशाला काँगड़ा जिले के अंतरगत आता है। दिल्ली से धर्मशाला की दूरी तक़रीबन 480 km. है और उचाई 1450 मीटर।
यहाँ से मैक्लोडगंज करीब छः या सात km. दूर है और ऊँचाई लगभग 2080 मीटर है। अब हमें मैक्लोडगंज जाना था,जिसके लिए बस स्टैंड के पास अनेक छोटी गाड़ियां जैसे वैन और आल्टो खड़ी थी। हमने उनसे मैक्लोडगंज जाने का किराया पुछा तो उन्होंने 600 रुपये बताये जो हमारे बजट को बिलकुल भी सुट नहीं करता था। तभी मेरी नजर एक खटारा सी मिनी बस पर गई जो मैक्लोडगंज जा रही थी। बस फिर क्या था हम भी लटक लिए ।

 बस यात्रियों से खचाखच भरी पड़ी थी। किसी तरह  मुझे बैठने की  जगह  मिल पाई, पर राजन को बस में खड़े हो कर ही बाकी की दूरी नापनी पड़ी। टिकट कण्डक्टर को भी लोगो के टिकट कटाने में बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा। मैं खुश था कि कहाँ 600 रूपये टैक्सी वाले मांग रहे थे और यहाँ 40 रुपये में दोनों लोग मैक्लोडगंज जा रहे है। धर्मशाला से मैक्लोडगंज का रास्ता काफी सुंदर था। हम लोग ऊपर जा रहे थे तो नीचे देखने पर धर्मशाला पहाड़   की तलहटी में बसा हुआ बहुत ही मनोरम लग रहा था। रास्ते में सड़क के दाहिनी तरफ एक बहुत पुराना चर्च दिखाई दिया जो शायद कोई टूरिस्ट स्पॉट था। बाद में मुझे पता चला की ये 1852 मे बना हुआ St. john in the Wilderness church है। ये चर्च सन 1905 में आये काँगड़ा घाटी में जोरदार भूकंप में भी डटा रहा था।  एक घंटे से कम  समय में ही हम मैक्लोडगंज के बस स्टैंड पर खड़े थे।

 मैक्लोडगंज मिनी तिब्बत जैसा है। चीन के द्वारा तिब्बत पर कब्ज़ा करने के कारण तिब्बत से दलाई लामा और उनके कुछ अनुवाई तिब्बत से भाग कर अरुणांचल प्रदेश के रास्ते भारत में चले आये। भारत सरकार ने उन्हें पूरा सपोर्ट किया और इन लोगो को मैक्लोडगंज में बसा दिया।आज मैक्लोडगंज में तिब्बती लोगो की आबादी अच्छी खासी है बाकी में पहाड़ी,नेपाली और पंजाबियों की आबादी है। यहाँ एक बात बता दूं कि दलाई लामा को 1989 में शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है।

  सुबह के करीब 8 बज चुके थे अब हमें एक होटल चाहिए था जहाँ हम अपना सामान रख सके और शरीर से आ रही नेचर कॉल को बाहर का रास्ता दिखा सके। मैं तो वही पास में बने टिकट काउंटर के बेंच पर बैठ गया और राजन  होटल का पता लगाने के लिए चला गया। आधे घंटे के बाद राजन  एक होटल  में रुकने का प्रस्ताव ले कर मेरे पास आया। होटल एकदम मैंन मार्किट में ही था जहाँ से कही भी घूमने जाने के लिए आसानी थी और खाने पीने की अच्छी दुकाने भी थी।पर होटल थोड़ा महंगा था। खैर रात भर यात्रा करने के कारण शरीर थका हुआ लग रहा था तो मैंने भी सोचा चलो महंगा हो या  सस्ता एक दिन की ही तो बात है। अगले पंद्रह मिनट में हम होटल के रूम में आराम फरमा रहे थे।
आगे:- त्रिउंड ट्रेक TRIUND TREK भागसूनाग में चहलकदमी
मैं और राजन जी
मेन चौक पर एक गोम्पा
होटल का कमरा

हमारे मित्र राजन जी पोज देते हुए

मैक्लोडगंज में सड़क के किनारे

धर्मशाला में सुबह सुबह

3 comments:

  1. वैसे भी 600 rs धर्मशाला से mcleodganj के देना तो गलत ही होता...बहुत बसे है जाने के लिए....सही शुरुआत,।।।

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    1. जी हाँ प्रतिक जी हम यात्रा के शुरुआत में ही ठगे जाते पर बच गए।

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