Friday, November 09, 2018

केदारनाथ, बद्रीनाथ यात्रा 2018 भाग 2। KEDARNATH,BADRINATH YATRA 2018 PART 2

इस यात्रा विवरण को शुरू से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।

पराठों से पेट भरने के बाद हम अपने सफर पर फिर बढ़ चले। अब हमारा रास्ता ऊँचे ऊँचे पहाड़ो के बीच से हो कर गुजर रहा था। पतित पावनी माँ गंगा भी हमारे रास्ते के साथ ही बह रही थी। कभी कभी हम नदी से दूर चले जाते तो कभी कभी नदी के एक दम पास हो जाते। गंगा नदी नागिन की तरह इठलाती बलखाती अपने टेढ़े मेढ़े रास्ते पर स्वछंद बहती जा रही थी और हम उसके किनारों का अनुसरण करते अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे, मानो माँ गंगा स्वयं हमें रास्ता दिखा रही हो। हम एक के बाद एक पहाड़ो को पार करते चले जा रहे थे पर पहाड़ थे के खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। प्रकृति का यह विराट और अनंत स्वरुप देख कर हम आश्चर्यचकित थे और उस विधाता के आगे नतमस्तक भी जिसने ये सब बनाया था।



कुछ ही देर में हम एक ऐसी जगह पहुँच गए जहाँ एक तरफ बसों की लंबी लाइन लगी हुई थी। रास्ता पहले से ही टू लेन था पर यहाँ तो बसों की वजह से सिंगल लेन का हो गया था। थोड़ी देर जाम की स्थिति बनी रही। बाद में पता चला की इस जगह का नाम तीन धारा है और यहाँ इस रूट की लगभग सभी बसें यात्रियों के नाश्ते और भोजन के लिए रुकती है। हमारा तो पेट पहले से ही भरा था तो हमें यहाँ रुकने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। करीब बीस मिनट बाद दोपहर के लगभग 1 बजे  हम उत्तराखंड के पहले प्रयाग देवप्रयाग में थे।

देवप्रयाग में सड़क नदी से काफी ऊंचाई से गुजरती है पर नीचे अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम और संगम स्थल पर बना खूबसूरत सीढ़ियों युक्त घाट सड़क से साफ साफ दिखाई पड़ता है। भागीरथी नदी गंगोत्री से निकलती है और अलकनंदा नदी बद्रीनाथ से यही पर इन दोनों नदियों के मिलने के बाद जो धारा आगे बढ़ती है उसे सारा संसार गंगा नदी के नाम से जानता है। हमने अपने गाड़ी के ड्राइवर को बोल कर यहाँ गाड़ी रुकवाई और देवप्रयाग की खूबसूरती को अपनी आँखों और कैमरों में कैद करने लगे। मन तो कर रहा था कि नीचे संगम तक जाये पर वहाँ तक जाने और आने में काफी समय लगता जो हमारे पास काफी कम मात्रा में था तो हमने इस नज़ारे को ऊपर से ही देख कर संतोष कर लिया और पुनः अपने पूर्व निर्धारित मार्ग पर अग्रसर हो गए।

जहाँ देवप्रयाग ऋषिकेश से 74 किलोमीटर की दूरी पर है वही देवप्रयाग से श्रीनगर 39 किलोमीटर की दूरी पर है। श्रीनगर  उत्तराखंड का एक बड़ा और काफी चहल पहल वाला शहर है। यह अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ है और टिहरी गढ़वाल जिले के अंतर्गत आता है। श्रीनगर की औसत ऊँचाई समुंद्र तल से 560 मीटर की होने के कारण यहाँ का मौसम बिलकुल मैदानों वाला ही है। जब हम श्रीनगर पहुँचे तो मौसम काफी गर्म था। श्रीनगर में हमें गर्मा गरम समोसे बिकते दिखाई दिए पर रास्ते पर काफी भीड़ भाड़  होने की वजह से हम गाड़ी नहीं रुकवा पाये और और वो गरमा गरम समोसे हमारी आँखों से ओझल हो गए और हम चाह के भी कुछ नहीं कर सके। सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि आगे जो भी समोसे की दुकान मिलेगी वहाँ गाड़ी रोक ली जायेगी और समोसे खा के ही आगे प्रस्थान किया जायेगा। पर देखते ही देखते श्रीनगर पार हो गया और हमें समोसे दिखे ही नहीं।

श्रीनगर से कुछ आगे जाने पर अलकनंदा नदी पर एक 330 मेगावाट  बिजली बनाने का डैम बना हुआ है। हम डैम को देखते हुए जा ही रहे थे की एक समोसे की दुकान दिखाई दी। तिवारी जी के आदेश पर गाड़ी रुक गई और कुछ की पलों में गाड़ी के सभी मुसाफिर उस समोसे की छोटी सी दुकान पर थे, पर ऐसा लग रहा था कि समोसा खाना हमारी किस्मत में नहीं था क्योंकि समोसे एकदम ठन्डे थे और पता नहीं कब के बने हुए थे। जिस स्पीड से हम उस दुकान पर पहुंचे थे उससे दोगुनी स्पीड से हम अपनी गाड़ी में पहुंच गए और समोसे खाने का विचार अपने दिमाग से निकल कर डैम को निहारते हुए आगे बढ़ चले।

डैम से करीब 9 या 10 किलोमीटर रुद्रप्रयाग की तरफ बढ़ने पर माँ धारी देवी का मंदिर है। पहले यह मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे था पर श्रीनगर डैम के बनने के बाद यह मंदिर डैम के पानी में डूब गया। लोग बताते है कि जिस दिन पुराने मंदिर से धारी देवी की मूर्ति को हटाया गया उसी रात माता धारी देवी के प्रकोप से केदारनाथ में भीषण तबाही मच गई थी। अब यह एक संयोग मात्र है अथवा हकीकत ये तो भगवान् ही जाने पर केदारनाथ की घटना के बाद जिस जगह पर पुराना मंदिर था उसी जगह काफी ऊंचाई पर एक नया मंदिर बना कर उसमें माता धारी देवी की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। मुझे इस मंदिर और इससे जुड़ी कहानी पहले से ही पता थी तो मैंने मंदिर के पास गाड़ी रुकवाई और सबके साथ माता के दर्शनों को चल दिया। सड़क से मंदिर तक जाने के लिए काफी नीचे नदी की तरफ उतारना पड़ता है। उतरने में तो बहुत ही मजा आया पर ये सोच कर की इतना ही ऊपर चढ़ना भी पड़ेगा सबकी हालत खराब हो गई।

अलकनंदा नदी में पिलर डाल कर उसके ऊपर एक चबूतरा बनाया गया है और उस चबूतरे पर एक मंदिर बना कर माता की मूर्ति स्थापित की गई है। मंदिर में बहुत भीड़ भाड़ नहीं थी और हमने काफी इत्मीनान से माता के दर्शन किये। मंदिर से लगा हुआ एक लोहे का झूला पुल है जो नदी के उस तरफ धारी गांव को जाता है। उत्तराखंड में जो भी बड़े डैम बन रहे है उनमें काफी गांव विस्थापित किये जाते है पर सरकार उन गांव वालों से किये गए वादे भूल जाती है। इसकी बानगी नीचे दिए फोटो में मिलेगी की किस प्रकार 2013 में विस्थापित धारी गांव के लोगो को अभी तक उनका हक नही मिल पाया है। यही हाल कमोबेश टिहरी डैम के विस्थापितों का भी है। सरकार को इन सब बातों पर ध्यान जरूर देना चाहिए।

ऊपर सड़क तक आने में हम सबके पसीने छूट गए तो तरो ताजा होने के लिए हमने एक दुकान से कोल्ड ड्रिंक और चिप्स ले लिए। इसी बीच बातो ही बातों में हमारे ड्राइवर ने बताया की 2013 में केदारनाथ की विनाशलीला के समय वो भी गौरीकुंड में यात्रिओ को ले के गया था पर उसकी किस्मत अच्छी थी की वो सही सलामत लौट आया था। हमारे ग्रुप के साथी राजीव जी जो लुधियाना के है उन्हें चाय का बहुत ही शौक है। उन्होंने खुद अपने हाथों से उसी दुकान में हमारे लिए बढ़िया सी चाय बनाई। चाय सचमुच में बहुत ही बढ़िया बनी थी। चाय पी कर हमारी सारी थकान छू मंतर हो गई। दुकानवाले और राजीव जी की पैसो को लेकर कुछ अनबन हो गई पर थोड़े से विवाद के बाद मामला सुलझा लिया गया। ये सब होने में दोपहर के करीब 3 बज गए। अभी हमने आधा रास्ता ही तय किया था। ये निश्चित किया गया कि अब कही और रुकना नहीं है, सीधे सोनप्रयाग में ही रुका जायेगा।

धारी देवी मंदिर से रुद्रप्रयाग जो उत्तराखंड का दूसरा प्रयाग तथा जिला मुख्यालय है। यहाँ पर मन्दाकिनी नदी जो केदारनाथ से आती है और अलकनंदा नदी जो बद्रीनाथ से आती है का संगम होता है। यहाँ से श्रीनगर की तरफ बढ़ने पर पर मन्दाकिनी नदी का अस्तित्व अलकनंदा नदी में विलीन हो जाता है और ये नदी अलकनंदा के नाम से ही जानी जाती है। यहाँ भी हमने ऊपर सड़क से ही संगम का नजारा लिया और मजेदार बात ये है कि उत्तराखंड के पांचों प्रयाग एक जैसे ही दिखाई पड़ते है। कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा। रुद्रप्रयाग ऋषिकेश से 142 किलोमीटरकी दूरी पर है और रुद्रप्रयाग से सोनप्रयाग की दूरी 73 किलोमीटर की है। यह स्थान समुद्र तल से 895 मीटर की औसत ऊंचाई पर स्थित है। यही से रास्ता दो भागों में विभाजित हो जाता है एक रास्ता केदारनाथ की तरफ तो दूसरा बद्रीनाथ की तरफ चला जाता है। रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ की दूरी 155 किलोमीटर की है।

रुद्रप्रयाग से अगस्तमुनि पहुँचने में हमें तक़रीबन सवा घंटा लगा। मुझे अगस्तमुनि काफी समृद्ध क़स्बा लगा यह रुद्रप्रयाग से 23 किलोमीटर की दूरी पर है। जब हम यहाँ पहुंचे तब शाम का समय था और सड़क पर काफी चहल पहल दिखाई पड़ रही थी। यहाँ से 17 किलोमीटर दूर कुंड नाम की जगह है जहाँ से एक रास्ता गुप्तकाशी होते हुए केदारनाथ की तरफ चला जाता है तो दूसरा रास्ता ऊखीमठ जहाँ केदारनाथ जी का शीतकालीन मंदिर स्थित है कि तरफ चला जाता है। कुंड के बाद रास्ता काफी ख़राब स्थिति में था। जगह जगह फोर लेन का काम जोर शोर से चल रहा था। कई जगह हमें रास्ता खुलने का इंतजार करना पड़ा। अब मुझे लग रहा था कि सोनप्रयाग पहुँचते पहुंचते रात हो जायेगी। रास्ते में धुल का भयंकर गुबार उठ रहा था। बड़े बड़े पत्थर जेसीबी मशीनों से पहाड़ो को तोड़ कर गिराए जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मानो ये मशीने प्रकृति का विनाश कर के ही दम लेंगी। पर जहाँ विनाश होता है वही विकास भी होता है। फोर लेन बन जाने के बाद इस जगह लोग बाग आसानी से पहुँच जाया करेंगे जिससे यहाँ के लोगो की आमदनी बढ़ेगी और यहाँ का पलायन भी शायद रुक जाएगा।

कुंड से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर गुप्तकाशी है जो एक औसत दर्जे का क़स्बा है। जिन यात्रियो को गौरीकुंड से केदारनाथ तक की यात्रा पैदल या खच्चरों पर नहीं करनी होती है उनके लिए फाटा से हेलीकॉप्टर की सुविधा उपलब्ध है। मैंने एक स्थानीय से पता किया तो मालूम पड़ा की फाटा से केदारनाथ आने और जाने का किराया 6300 रुपये है। फाटा कुंड से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। फाटा से सोनप्रयाग मात्र 16 किलोमीटर दूर है पर ख़राब रास्ता और अँधेरा हो जाने के कारण हमें सोनप्रयाग पहुंचने में बहुत समय लग गया। सोन प्रयाग से कुछ पहले सीतापुर नाम की जगह है। यहाँ बहुत सारे होटल है जो यात्री समय से सोनप्रयाग या गौरीकुंड नहीं पहुँच पाते है वो यही रुक जाते है। हमारा ड्राइवर भी तगड़े कमीशन के चक्कर में  हमें यही ठहराने वाला था पर हमारे जोर देने पर वो हमें रात होने के बावजूद सोनप्रयाग ले गया।

जब तक हम सोनप्रयाग पहुँचे अँधेरा हो गया था और करीब रात के 7 बजने वाले थे। हमने सोचा की यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन करवा कर हम आज रात गौरीकुंड में रुकेंगे और सुबह जल्दी केदारनाथ के लिए निकल लेंगे, पर जब हम रजिस्ट्रेशन काउंटर पर पहुंचे तो पता चला की काउंटर शाम के 6 बजे बंद हो जाता है। एक बार फिर हमारे ग्रुप के तेज तर्रार साथी राजीव जी ने कमान अपने हाथों में ली और पता नहीं कौन सा मंत्र फुक कर रजिस्ट्रेशन काउंटर खुलवा दिया। अब क्या था धड़ाधड़ हम लोगो ने अपना अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया। अब गौरीकुंड जाने की बारी थी जो सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर दूर है।

सोनप्रयाग में गाड़ियो से सम्बंधित एक नियम है कि अगर गाड़ी आपकी अपनी यानि निजी है तो आप उसे सोनप्रयाग से गौरीकुंड ले जा सकते है। पर अगर गाड़ी किराये की है तो वो सोनप्रयाग में ही खड़ी रहेगी। सोनप्रयाग से गौरीकुंड जाने के लिए आपको दूसरी गाड़ी में जाना होगा जो शेयर टैक्सी के रूप में चलती है। आम तौर पर इसका एक आदमी का किराया 20 रूपये है और एक गाड़ी में पंद्रह लोगों को बैठाते है। हमने एक गाड़ी वाले से बात की तो उसने कहा कि रात हो गई है 600 रूपये लगेंगे। हमारे हिसाब से 15 लोग × 20 ₹ = 300 होने चाहिए थे। हमने उसे काफी समझाया पर वो टस से मस न हुआ। तब हमने सोचा आज यही रुक जाते है कल सवेरे गौरीकुंड चल चलेंगे। पता नहीं वहाँ रात में कोई रुकने की जगह मिले न मिले। हमने सोनप्रयाग में ही एक कमरा 400 में ले लिया जिसमे हम पांच लोग आराम से सो सकते थे। सोनप्रयाग का मौसम काफी ठंडा था। हमने ऊनी कपड़े पहन लिए और जहाँ हमारा कमरा था उसी के नीचे एक ढाबा था। ठण्ड की वजह से हमने उसी ढाबे पर खाना लिया। यहाँ ढाबे वाले ने खाने में मिर्ची ज्यादे डाल दी थी, बाकी लोगों को खाने में ज्यादा तकलीफ तो नहीं हुई पर हमारे राजीव जी को इतना तीखा खाने में काफी दिक्कत हुई। खाना खाने के बाद हम कमरे में आ कर लेट गए। तय हुआ की सबेरे पांच बजे तक हमें सोनप्रयाग से गौरीकुंड के लिए निकल जाना है। दिन भर की हिचकोलों भरी यात्रा के बाद हमें रात के साढ़े आठ बजे ही भयंकर नींद आने लगी थी। थोड़ी देर दिन भर की यात्रा के बारे में बात करते करते सभी सो गए।

आगे:- केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा 2018 भाग 3
                                 

देवप्रयाग

भागीरथी और अलकनंदा का संगम।

धारी गांव को जाता लोहे का पुल और परियोजना प्रभावित संघर्ष समिति का बैनर।
धारी देवी मंदिर।

रुद्रप्रयाग, मंदकिनी और अलकनंदा का संगम।

कुंड से आगे बढ़ने पर चलती गाड़ी से लिया गया चित्र, फ़ोटो में दाहिने तरफ केदारनाथ की पहाड़ियां बदलो में ढकी नजर आ रही है।

यात्रा पंजीकरण पर्ची।

धारी देवी मंदिर में ग्रुप फोटो।

रुद्रप्रयाग में फोटोगीरी।

देवप्रयाग में होता निर्माण कार्य।








4 comments:

  1. समोसों को आंख से ओझल होते देखना बहुत ही दुखद था....सोनप्रयाग से गौरीकुंड की वो टैक्सी वाली जानकारी बहुत अच्छी है...जय माँ धारी देवी....

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद प्रतिक जी।

    ReplyDelete
  3. बढ़िया विवरण पर आपने समोसा नही खाया हा हा हा,,,,

    ReplyDelete
  4. अत्यन्त सुन्दर यात्रा वृतांत। आपने शब्दों के माध्यम से पूरे यात्रा का सजीव चित्रण कर दिया। पढ़कर ऐसा लगता रहा था मानो मैं स्वयं यात्रा में हूँ। और यात्रा वृतांत में जो आपने किराया, वाहन और भी महत्वपूर्ण सूचनाओं को साझा किया है इससे हमारे भी यात्रा कार्यक्रम में अत्यन्त ही सहायक सिद्ध होगी। धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete