Thursday, February 28, 2019

केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा 2018 भाग5 KEDARNATH, BADRINATH YATRA 2018 PART 5

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आज दिनांक 9/10/2018 को सोनप्रयाग में सुबह पांच बजे हम सो के उठे, हमने ड्राइवर को रात में ही बता दिया था कि हम कल बहुत सवेरे ही बद्रीनाथ के लिए निकलेंगे तो वो भी गाड़ी की साफ़ सफाई करके तैयार हो गया था। हम लगभग छः, साढ़े छह बजे सोनप्रयाग से निकल पड़े। हमने अभी तक नाश्ता भी नहीं किया था। सबके सहमति से तय हुआ था कि गुप्तकाशी में थोड़ी देर रुक कर नाश्ता या भोजन ले लिया जाएगा। सोनप्रयाग से गुप्तकाशी तक का रास्ता बहुत ही बुरी दशा में था। हम हिचकोले खाते आगे बढ़ रहे थे, तभी सड़क के किनारे एक हेलिपैड दिखा और उस पर एक हेलीकाप्टर भी खड़ा था। केदारनाथ जाने के लिए फाटा में कई हेलिपैड है, जहाँ से केदारनाथ जाया जा सकता है। ये हेलीपैड उनमे से ही एक था। हमने वहाँ हेलीकाप्टर की कुछ तस्वीरें खींची और आगे बढ़ चले।

 थोड़ी देर बाद हम गुप्तकाशी में थे। गुप्तकाशी में रहने और खाने की अच्छी व्यवस्था है। हम भी एक ढाबे में गए और देखा की गरमा गरम रोटिया सिक रही थी, तो हमने नाश्ता करने का विचार छोड़ सीधा भोजन करने को प्राथमिकता दी। कल हमने पुरे दिन और पूरी रात मिला कर केवल एक प्लेट मैग्गी और कुछ आलू की पकौड़ियां ही खाई थी। भूख के मारे पेट में चूहे ट्रैकिंग कर रहे थे। ढाबे वाला धीरे धीरे खाना परोस रहा था, अब हमसे और इंतजार नहीं किया जा रहा था, तो हमने उससे जल्दी से खाना परोसने को कहा तब उसके हाथों में थोड़ी फुर्ती आयी और सेकेंडो में खाने की थालियां हमारे सामने थी। हमने भी खूब छक के खाना खाया। खाना भी बहुत स्वादिष्ट था, नहीं भी होता तो भी चलता। भूखे पेट सब कुछ अच्छा लगता है।

 इसी बीच मेरी नजर ढाबे के दिवाल पर लगे एक पोस्टर की तरफ पड़ी जिसमे एक लड़की के बारे में लिखा था कि वो 2013 के हादसे में खो गई थी और अगर किसी को उसके बारे में कोई भी जानकारी हो तो उसके घरवालों को बताया जाये। उस पोस्टर में घरवालो का नंबर भी दिया गया था। इस पोस्टर को देख कर मुझे यह लगा की भले ही 2013 की विनाशलीला को गुजरे कई साल हो गए है पर उसमे जो लोग ग़ुम हो गए थे उनको उनके घरवाले आज भी ढूंढ़ रहे है। मैंने मन ही मन सोचा वाह रे भोले बाबा तेरी भी लीला बड़ी ही विचित्र है किसी से रुष्ठ होते हो तो उसका विनाश कोई रोक नहीं सकता और प्रसन्न होते हो तो उसका कल्याण हो कर ही रहता है।

भोजन करते करते मुझे केदारनाथ के चमत्कार की एक कथा याद पड़ गई जो मैंने किसी से सुनीं थी, उस कथा को मैं यहाँ संक्षेप बताने का प्रयास कर रहा हूँ। एक बार भोले बाबा का  एक सच्चा भक्त केदारनाथ धाम के दर्शनों के लिए अपने घर से चला, उस समय मोटर गाड़िया नहीं चलती थी तो वो पैदल ही बाबा से भेंट करने की इच्छा अपने ह्रदय में ले के चल दिया। उसे अपने घर से केदारनाथ तक पहुंचने में कई महीने लग गए और जिस दिन वो मंदिर तक पहुंचा उसी दिन मंदिर के कपाट आगामी छः महीनो के लिए बंद हो चुके थे, और मंदिर के सभी पुजारी और महंत केदारनाथ से  नीचे उतर रहे थे। उस व्यक्ति ने पुजारीयो से बहुत विनती की और उनके हाथ पाव जोड़े की उसको कपाट खोल के भोलेनाथ के दर्शन करवा दें। उसने पुजारीयो को बताया कि वो कई महीनो से भोले बाबा के दर्शनों की इच्छा ले के पैदल सफर करता हुआ यहाँ तक पहुंचा है और उसके लिए पुनः यहाँ आना संभव नहीं होगा, पर पुजारीयो ने उसकी एक नहीं सुनी और वो उसे गिड़गिड़ाता छोड़ नीचे की तरफ प्रस्थान कर गए। वो व्यक्ति बड़ा ही दुखी हो के मंदिर की सीढियो पर बैठ कर रोने लगा और अपने भाग्य को कोसने लगा की मंदिर तक पहुंच कर भी उसे भोलेनाथ के दर्शन नहीं हुए। तभी वहाँ एक चरवाहा उसके पास आया और उससे उसके रोने का कारण पूछने लगा। रोते हुए आदमी ने उसे अपनी पूरी कहानी सुना दी।

उसकी कहानी सुनने के बाद उस चरवाहे ने उससे कहा कि पुजारीओं में से कुछ उसके जान पहचान के भी है और वह उन पुजारीयो से  विनती करके उन्हें कल मंदिर तक ले आएगा और उसे भोलेनाथ के दर्शन अवश्य करवाएगा। तब तक तुम यही रुको और रात में यही सो जाना और जब तुम सुबह जागोगे तो भगवान केदारनाथ के दर्शन अवश्य करोगे, ऐसा कह कर वो व्यक्ति चला गया। इन सब बातों से भोलेनाथ के दर्शनों के लिए आये हुआ यात्री को बड़ा संबल मिला और वो खाना वगैरा बना खा के वही पास के एक चबूतरे पर सो गया। सुबह जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा की पुजारीयो और अनेक भक्तो का हुजूम मंदिर की तरफ बढ़ा चला आ रहा है और मंदिर के कपाट खोले जा रहे हैं। वो जल्दी से मंदिर के कपाट की तरफ भागा और पुजारीयो को उसके लिए मंदिर के कपाट खोलने के लिए आभार प्रकट करने लगा। मंदिर के पुजारियो ने उसे बड़े आश्चर्य से देखा और कहा कि तुम तो वही व्यक्ति हो न जो छः महीने पहले यहाँ आये था। दरअसल वो यात्री भोलेनाथ की कृपा से छः महीने तक बर्फ़बारी के बीच  भूख, प्यास और ठण्ड से विरक्त सोता रहा था। और छः महीने बाद जब भोलेनाथ के कपाट पुनः खुले तब उसकी नींद खुली और वो चरवाहा जो उस यात्री से मिला था वो साक्षात् शिव ही थे। अब ये सिर्फ एक कहानी है अथवा इसमे कुछ सत्य है ये तो भोलेनाथ ही जाने।

पेट पूजा होने के बाद अब हमारी गाड़ी बद्रीविशाल के दर्शनों के लिए बढ़ चली। कुंड तक तो रास्ता वही था जिस रास्ते हम आये थे पर कुंड से हमने बद्रीनाथ जाने के लिए ऊखीमठ, चोपता, गोपेश्वर मार्ग से होते हुए जाना था। कुंड से ऊखीमठ आठ किलोमीटर और ऊखीमठ से चोपता इक्कतीस किलोमीटर दूर है।। हमारी गाड़ी का ड्राइवर हमें ऊखीमठ स्थित भोलेनाथ नाथ के मंदिर  पर ले गया। जब सर्दियों में केदारनाथ धाम  बर्फ से ढक जाता है और मंदिर के कपाट आगामी छः महीनो के लिए बंद हो जाता है तब भोलेनाथ की पूजा ऊखीमठ स्थित इसी मंदिर में होती है। हम मंदिर के अंदर नहीं गए और बाहर से भोलेनाथ को नमन कर चोपता की तरफ बढ़ चले।

ऊखीमठ से चोपता तक का रास्ता घने जंगल से हो के गुजरता है। चोपता घुम्मकड़ो की दुनियां का बहुत ही मशहूर ठिकाना है जहाँ से पंच केदारों में से एक तुंगनाथ जी जाने के लिए ट्रेकिंग की शुरुआत होती है। तुंगनाथ पूरी दुनिया में भगवान शिव के सबसे ऊंचाई वाली जगह पर स्थित मंदिर के कारण भी जाना जाता है। तुंगनाथ से कुछ ऊपर जाने पर चंद्रशिला चोटी है, जहाँ से दूर तक पसरी हिमालय की बर्फीली चोटियो का दीदार किया जा सकता है। चोपता पहुँच कर मुझे लगा की काश एक दिन का समय हमारे पास और होता तो लगे हाथ तुंगनाथ और चंद्रशिला का ट्रैक भी कर लेते पर हमें हर हाल में आज बद्रीनाथ पहुचना ही था तो हमने गाड़ी में से ही चोपता को अलविदा कहा और गोपेश्वर की तरफ बढ़ चले।

रास्ते में सगर और मंडल गांव भी मिले जहाँ से पंच केदारों में से सबसे दुर्गम माने जाने वाले केदार रुद्रनाथ जी के लिए ट्रैकिंग की शुरुआत होती है। चोपता से गोपेश्वर की दुरी सैंतीस किलोमीटर की है। गोपेश्वर चमोली जिले के अंतरगत आता है और काफी बड़ा नगर होने के साथ ही जिला मुख्यालय भी है। गोपेश्वर के बाद हमारी अगली मंजिल चमोली थी जो  गोपेश्वर से छः किलोमीटर दूर है। चमोली से बाहर निकल कर हम जोशीमठ वाले मार्ग पर चल रहे थे की एक ढाबे को देख कर हमने गाड़ी रुकवाई और वहाँ गरमा गरम पकौडियॉ खाई और चाय पी गई। चमोली से जोशीमठ पचपन  किलोमीटर दूर है और हमारा अगला लक्ष्य भी वही था। चमोली से जोशीमठ तक हम लगातार ऊँचाई पर चले जा रहे थे। रास्ते में एक दो जगह भूस्खलन भी हुआ था। और सड़क पर मलबा बिखरा पड़ा था। जेसीबी मशीनों द्वारा मलबा हटाने के बाद ही हम आगे बढ़ पाये।

 जोशीमठ से तेरह किलोमीटर पहले एक पावर प्रोजेक्ट ने हमारा ध्यान आकर्षित किया। बाद में पता चला की यह तपोवन विष्णुगाड हाइड्रोपावर प्लांट है जिसमे 540mw बिजली बनाने की क्षमता है। यहाँ से ऊंचाई में काफी इजाफा होने लगता है और मौसम के मिजाज में भी बदलाव साफ दिखाई पड़ने लगता है। जोशीमठ की तरफ बढ़ते हुए सड़क के किनारे वृद्ध बद्री मंदिर जाने का रास्ता दिखाई दिया पर समयाभाव के कारण हम वहाँ नहीं जा सके। सर्पीले रास्तो से होते हुए और बारिश की महीन रिमझिम फुहारों के बीच हम कब जोशीमठ पहुँच गए हमें पता ही नहीं चला।

जोशीमठ की ऊंचाई समुद्र तल से 1875 मीटर की है। जोशीमठ स्कीइंग की दुनिया  में  प्रसिद्ध औली जाने का के लिए एक प्रवेश द्वार की भांति है। जोशीमठ से औली जाने के लिए सड़क मार्ग के अलावा रोप वे की भी सुविधा है। औली जिसकी ऊंचाई 2500 मीटर से लेकर 3050 मीटर की है, सर्दियो में स्कीइंग करने वाले लोगो से गुलजार रहता है। यहाँ के पहाड़ो के ढाल स्कीइंग के लिए सर्वथा उपयुक्त है। औली की इन्ही खासियत के कारण केवल अपने देश से ही नहीं वरन विदेशो से भी काफी लोग यहाँ स्कीइंग करने आते है।

मन तो बहुत था कि इतनी दूर आये है तो औली भी घूमते चले पर हम अपने समय चक्र से ऐसे बंधे थे की हमें आज शाम तक बद्रीनाथ पहुचना ही था, तो हमने औली को दूर से टाटा बॉय बॉय किया और पुनः अपने पूर्व निर्धारित मार्ग पर चलना शुरू कर दिया। 
                                 
अन्य यात्रायें :-

 फाटा में हेलिपैड

गुप्तकाशी

गुप्तकाशी की सड़के।

ज़ूम करने पर बोर्ड के पीछे दिखता केदारनाथ पर्वत।

अलकनंदा नदी

ढाबे के पीछे से गुजरती अलकनंदा।

चारधाम परियोजना का कार्य जोर शोर से चलता हुआ।

विष्णुगाड परियोजना के लिए जाती सड़क।