Thursday, January 17, 2019

केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा2018 भाग 4 KEDARNATH, BADRINATH YATRA 2018 PART 4

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केदारनाथ बेस कैंप तक पहुंचने के बाद गौतम और मैं वही बैठ कर आराम करने लगे। गौतम ने मुझसे कहा कि तुम आगे बढ़ो मैं धीरे धीरे मंदिर तक चला आऊंगा। लेकिन मैंने भी सोच लिया था कि अब चाहे कितनी भी देर हो जाये मंदिर तक तो हम साथ में ही जायेंगे। मैंने वही पास की एक दुकान से  बिस्किट का एक पैकेट लिया और चाय बनवाई। चाय बिस्किट खाके हमारे थके शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया और अब हम आगे बढ़ने को तैयार हो गए थे।  चाय बिस्किट और थोड़े आराम के बाद मैंने समय देखा तो दोपहर के तीन बजने वाले थे और तीन बजे मंदिर के कपाट बंद होने का समय भी था, पुनः शाम को पांच बजे कपाट खुलते।


 अब मुझे लगने लगा की भोले नाथ के दर्शन अब शाम के पांच बजे के बाद ही होंगे और हमें रात केदारनाथ में ही बितानी पड़ेगी। ऐसा होने पर हमारी यात्रा के आगे की योजना पर विपरीत प्रभाव पड़ता और शायद हम भगवान बद्रीनाथ के दर्शनों के लिए नहीं जा पाते। इन सब के बीच मुझे भगवान भोलेनाथ पर पूर्ण विश्वास था कि वो जो करेंगे हमारे लिए अच्छा ही होगा। जहाँ हमने चाय पी वहां से रास्ता अब समतल सा हो गया था, जिस पर हम धीरे धीरे पर निरंतर बढ़ते चले जा रहे थे। इस रास्ते पर दाहिने तरफ एक छोटा सा कुंड भी दिखाई पड़ा जिसका नाम गूगल कुंड था। इस छोटे से कुंड को देख कर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई क्योकि इस कुंड के बारे में आज तक तो मैंने किसी  के भी ब्लॉग में नहीं पढ़ा था। गूगल महाराज में भी सर्च करने पर इस कुंड के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। मेरा आप सभी पाठकों से निवेदन है कि अगर इस कुंड के बारे कोई भी जानकारी किसी को है तो कृपया कमेंट में इसकी जानकारी दे। जहाँ तक मेरा मानना है कि शायद ये कुंड 2013 की आपदा के बाद अस्तित्व में आया होगा।

 रास्ते का अंतिम हिस्सा थोड़ा चढाई भरा था जिसे पार करते ही केदारनाथ जी के मंदिर और पूरी केदार घाटी का विहंगम् दृश्य सामने आ गया और मै भगवान शिव की इस पावन और अलौकिक नगरी को देख कर भाव विभोर हो गया। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि भगवान शिव के जिस धाम के दर्शन के लिए मैं कई महीनो से योजना बना रहा था वो जगह मेरी आँखों के सामने थी। मैं उस समय अपने आप को इस ब्रह्माण्ड का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति समझने लगा था। अपने ह्रदय की बात कहूँ तो उस समय पता नहीं क्यू  मेरे आँखों में आंसू छलक पड़े और मैं वही खड़े हो कर भोले बाबा की स्तुति करने लगा। मेरे मन और ह्रदय में उठ रहे अनेक प्रकार के भावो पर गौतम की आवाज ने विराम लगाया और मुझे आगे बढ़ते रहने  को कहा। गौतम की आवाज ने मुझे केदार घाटी के सम्मोहन से बाहर निकालने का काम किया और हम दोनों फिर से मंदिर की तरफ चलने लगे।

मंदिर चारो तरफ से ऊँचे ऊँचे बर्फ से लदे पहाड़ो से घिरी हुई घाटी में स्थित है घाटी के प्रवेश द्वार पर ही हेलिपैड है जहाँ फाटा से आने वाले हेलीकाप्टर उतरते है। उसके आगे यात्रियो के रहने के लिए कुछ अच्छे होटल और डॉरमेट्री है। जिनके पास ही खाने पीने की कुछ दुकाने भी है। यहाँ से थोड़ा और आगे बढ़ने पर श्री केदारनाथ हाट बाजार है जहाँ दस पंद्रह दुकाने थी जिनमे से अधिकांश यात्रा का ऑफ सीजन होने के कारण बंद थी। हाट बाजार से करीब पांच सौ कदम आगे जाने पर केदारनाथ मंदिर का दर्शन होने लगता है। 2013 की आपदा के बाद मंदिर के आस पास के इलाके का हुलिया एकदम बदल गया है अब मंदिर के चारो तरफ काफी खुली खुली जगह है जो मंदिर के प्रांगण को एक दिव्य और भव्य स्वरुप प्रदान करता है।

मंदिर की तरफ जाते समय मुझे मंदिर के एक पंडे ने रुकने को कहा और पूछा की मैं कहा से आया हूँ। मैंने जब उससे कहा कि मैं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से आया हूँ तो उसने मेरे गृहनगर और आस पास के अन्य छोटे बड़ी जगहों के नाम बताते हुये पूछा की इन जगहों में से मैं कहा का हूँ। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ की वो पंडा मेरे गृहनगर के बारे में इतना कुछ कैसे जानता है। जब मैंने उसे अपने गृहनगर के बारे में बताया तो उसने मेरे नगर के कुछ जाने माने व्यक्तियो के नाम भी बता दिए। अब तो मैं एकदम सन्न रह गया कि वो इतना सब कैसे जानता है। बाद में मुझे पता चला की ये पण्डे लोग पोथियां मेंटेन करते है, बहुत से श्राद्धलु यहाँ आ के अपना नाम, पता, कुल, गोत्र इत्यादि इन पंडो के पास लिखवाते है ताकी भविष्य में इनके परिवार का कोई यहाँ आये तो उसे जानकारी हो जाये की उनके पूर्वजो में कौन कौन यहाँ आया था। इस प्रकार की व्यवस्था कुछ प्रमुख तीर्थो में बहुत पुराने समय से चली आ रही है।

मैंने बहुत सी जगहों के बारे में सुन रखा था कि ये पंडे अपने ग्राहकों को फ़ांस कर अनाप शनाप पैसे ऐंठते है तो मैं उसे नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ने लगा। उस पंडे को भी लगा की मैं उसे भाव नहीं दे रहा हूँ तो वो भी नए ग्राहक की तलाश में निकल गया। मैं जहाँ खड़ा था वहा से मंदिर के कपाट साफ दिखाई पड़ रहे थे और वो बंद थे। बंद कपाट देख कर मन में थोड़ी सी निराशा हुई पर इसे ही भोलेनाथ की मर्जी मानकर आगे बढ़ता चला गया, इसी बीच गौतम भी धीरे धीरे मेरे पीछे आ रहा था। अब मैं मंदिर के एक दम करीब पहुँच गया था और मेरी नजरें तिवारी जी, राजीव जी और अजय जी को ढूंढ़ रही थी। तभी वो लोग मुझे मंदिर के पिछले दरवाजे से निकलते दिखाई पड़े। इसका मतलब था कि उन लोगो ने दर्शन कर लिए थे। मैं उन लोगों के पास पहुँचा तो तिवारी जी ने कहा कि इसी रास्ते जल्दी से अंदर चले जाओ अभी अंदर थोड़े बहुत श्रद्धालु है और दर्शन कर रहे है।

 जैसे ही मैंने ये बात सुनी मैंने अपना बैग और जूते वही पटक कर मंदिर के अंदर दौड़ लगा दी। अंदर पहुंचते ही मुझे एक पुजारी जी मिले और मेरी हड़बड़ाहट को देख कर मुझे शांत रहने को कहा उन्होंने बताया कि अब आप मंदिर में हो और आप को भोलेनाथ के दर्शन अवश्य होंगे। उनकी बातों को सुनकर मन की व्यकुलता शांत हो गई और मैं धीरे धीरे शिवलिंग की तरफ बढ़ाने लगा। केदारनाथ बाबा का शिवलिंग बहुमुखी है और उस पर घी का लेपन हुआ था। जब मैं शिवलिंग के पास पहुंचा तो वहाँ चारो तरफ श्रद्धालुओं की भीड़ लगी थी। मैंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की और भीड़ धीरे धीरे छटने लगी। थोड़ी ही देर में सारे श्रद्धालु चले गए और मंदिर का गर्भगृह एक दम खाली हो गया अब वहा केवल मैं और वो पुजारी जी ही थे। पुजारी जी ने बहुत अच्छे ढंग से भोलेनाथ जी की पूजा करवाई। उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कोई vip हूँ और मुझे अकेले और आराम से भोलेनाथ के दर्शन और पूजन का अवसर मिल रहा है।

कहते है ना जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है, ना मैं देर से पहुँचता ना ही मुझे इतने आराम और इत्मीनान से भगवान भोलेनाथ के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता। मैं मन ही मन अपने भाग्य पर इतराता हुआ मंदिर के अंदर विराजमान अनेक देवी देवताओ की मूर्तियो के दर्शन करके और उनका आशीर्वाद लेते हुए मंदिर के बाहर निकल गया। बाहर आकर मैंने अपने बैग से पैसे लिए और पुजारी जी के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा। थोड़ी ही देर में पुजारी जी भी बाहर आये तो मैंने उन्हें दक्षिणा प्रदान की और उनका आशीर्वाद लिया।

अब तक सभी लोगो ने दर्शन कर लिए थे तो अब बारी थी फोटो खिंचवाने की सभी लोग अपने अपने हिसाब से फोटो खींचने खिंचाने में व्यस्त हो गए। फोटो खेचू कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद मैंने मंदिर के चारो तरफ के नजारो को देखना शुरू किया। मंदिर के पीछे केदारनाथ पर्वत सीना ताने खड़ा था पर वातावरण में धुंध होने के कारण वो पूरी तरह दिखाई नहीं पड़ रहा था। इसी पर्वत की गोंद से मन्दाकिनी नदी केदारघाटी में आती हुई नजर आ रही थी। ये वही नदी है जिसने 2013 की विनाशलीला में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मंदिर से कुछ दूर  चारो तरफ बहुत ही मजबूत और चौड़ी दिवार  खड़ी कर दी गई है ताकि भविष्य में इस प्रकार के प्रकोप की तीव्रता कम की जा सके।

 मंदिर के ठीक पीछे एक बड़ी सी शिला पड़ी हुई थी जिसका भी पूजन अर्चन हो रहा था। ये वही शिला है जिसके कारण मन्दाकिनी का वेग दो भागों में बट गया और मंदिर को कम क्षति पहुंची। इस शिला को भीम शिला कहते है। मंदिर के ठीक पीछे एक छोटा सा कुंड है जिसे अमृत कुंड कहते है। इसी कुंड के पानी को भक्त अपने ऊपर छिड़कते है । कहा जाता है कि इस पानी में रोगों को हरने की शक्ति है।  2013 की आपदा के पहले केदारनाथ में पांच दिव्य  कुंड थे। पर वो सब उस आपदा की भेंट चढ़ गए। और तबसे ये कुंड कही मलबे में खो गए है। इनमे से मात्र दो कुंड अमृत और उदक कुंड ही मिल पाए है, अन्य तीन कुंड हंस कुंड, रेतस कुंड और हवन कुंड का पता अभी तक नहीं मिला है।

भगवान भोले नाथ के दिव्य दर्शनों के बाद हमारी टोली वापस गौरीकुंड जाने को तैयार थी। शाम के लगभग चार बज रहे थे। अब हमने भारी मन से भोलेनाथ से विदाई की अनुमति ली और गौरीकुंड की तरफ बढ़ चले। मंदिर से लगभग एक किलोमीटर आगे जाने पर अचानक से मौसम में परिवर्तन हो गया। ढेर सारे बादलो ने समूची केदारघाटी और गौरीकुंड जाने वाले मार्ग  पर अपना कब्जा जमा लिया। लगने लगा की खूब भयंकर बारिश होगी, पर भोले नाथ अपने भक्तों को कष्ट नहीं देना चाहते थे तो बादल जैसे आये थे वैसे ही चले भी गए। बादलो के छट जाने से मौसम एकदम साफ हो गया। मैंने आस पास के पहाड़ो पर देखा तो पाया कि वहां ताज़ी बर्फ गिरी हुई थी। गनीमत थी की ये बर्फ केवल पहाड़ो की चोटियो के आस पास ही पड़ी थी नीचे नहीं। मैंने पीछे मुड़ कर केदारनाथ पर्वत को देखा डूबते सूरज की रोशनी की वजह से पर्वत पर पड़ी बर्फ सुनहरे रंग की दिखाई पड़ रही थी। अद्भुद और अलौकिक दृश्य था मेरी आँखों के सामने जो जीवन पर्यंत याद रहेगा।

शाम का आभास होने मात्र से ही वातावरण में ठंडक बढ़ गई थी। सुबह से ही खाने के नाम पर एक प्लेट मैग्गी खाई थी जिसके कारण भूख भी लग आई। रास्ते में एक चाय की दुकान में हम जा पहुंचे। वहाँ हमने आलू की पकौड़ी और चाय का ऑर्डर दे दिया। थोड़ी देर में गरमा गरम आलू की पकौड़ियां और चाय हमारे सामने थी। सभी सुबह से भूखे थे तो सारा नास्ता खत्म होने में दो मिनट भी नहीं लगे। चाय नास्ते के बाद समय शाम के 5 बजे का हो रहा था। इस लिए हमने तेजी से नीचे उतरना शुरू कर दिया। लिंचौली पहुचते पहुंचते अँधेरा घना होने लगा। इसी बीच कुछ यात्री ऊपर केदारनाथ की तरफ भी जाते दिखाई पड़े।

रास्ते में जगह जगह लाइट की भी व्यवस्था थी पर वो पर्याप्त नहीं थी। हमने अपने मोबाइल फ़ोन निकाल लिए और उसकी रोशनी में आगे बढ़ते चले गए। जिस मार्ग पर दिन की रोशनी में भी चलना कठिन था उस मार्ग पर हम रात में चल रहे थे। काफी सावधानी से एक एक कदम बढ़ाते हम भीमबली पहुंच गए। भीमबली पहुँचने तक रात के सात बज गए थे तो हमने सोचा की यही कही रात का खाना खा लेते है। पर यात्रा का ऑफ सीजन होने के कारण इस समय कोई भी दुकान खुली नहीं थी। पुरे मार्ग पर सन्नाटा पसरा हुआ था। वापसी के समय पुरे मार्ग में हम पांच लोग और सात लोगो का एक दक्षिण भारतीय दल ही था, जो नीचे उतर रहा था।

भीमबली के आगे हमारे पैरो ने भी जवाब देना शुरू कर दिया। सुबह से अब तक हमने करीब पचीस किलोमीटर की दुरी तय कर ली थी और अब गौरीकुंड पहुँचने के लिए सात  किलोमीटर की दुरी तय करनी बाकी था। सभी लोग थक गए थे और एक एक कदम बढ़ाना बहुत ही कष्टप्रद हो रहा था। किसी तरह मन को समझाते की बस एक किलोमीटर और उसके बाद एक किलोमीटर और । इसी बीच अजय जी और तिवारी जी हमसे आगे निकल गए । मैं, गौतम और राजीव जी एक साथ चल रहे थे। आखिरी के दो किलोमीटर हमारे लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं थे। किसी तरह रुकते रुकाते रात के नौ बजे हम गौरीकुंड पहुँच गए।

अब समस्या थी की इस समय सोनप्रयाग कैसे जाया जाए। गौरीकुंड में केवल एक ही जीप खड़ी थी और उसका ड्राइवर उसी में सो रहा था। हमने उसे जगाया और सोनप्रयाग जाने को कहा। इसी बीच दक्षिण भारतीय दल भी आ पहुंचा। सारे लोग जीप में बैठ गए और पंद्रह बीस मिनट बाद हम सोनप्रयाग में थे। अब हमें बड़े जोरो की भूख लगी हुई थी पर न तो गौरीकुंड नाही सोनप्रयाग में कोई दुकान खुली थी। एक दो जगह हमने ढाबे वालो का दरवाजा भी पीटा पर खाना हमें कही नहीं मिला। हम अपने रूम में आ गए। मैंने अपना बैग टटोला तो बिस्किट का एक छोटा पैकेट निकला सभी ने एक एक बिस्किट खाई और सोने की तैयारी करने लगे। वैसे तो मुझे भूखे पेट नींद नहीं आती है पर दिनभर की बत्तीस किलोमीटर की चढाई उतराई से शरीर इतना थक गया था कि बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई।

आगे:- केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा 2018 भाग 5
                               
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हम पांच।

घाटी में उतरती बादलो की फ़ौज।

केदारनाथ का हेलिपैड।

शाम को सुनहरा केदारनाथ पर्वत।

गौतम जी बाबा के दरबार में।

दर्शन के बाद ग्रुप सेल्फी।

केदारनाथ हाट बाजार।

2013 की विनाशलीला के सबूत।

मंदिर की तरफ जाती सीढ़िया और दूर दिखता मंदिर।

मंदिर का विहंगम दृश्य।

हेलिपैड के बगल में रुकने के लिए होटल।

जय श्री केदारनाथ।

नमो नमो शंकरा।

भीम शिला

हेलिपैड के बगल में रेस्टुरेंट।

केदारघाटी का विहंगम दृश्य।

गूगल कुंड

केदारनाथ पर्वत

8 comments:

  1. वाह क्या नाम रखा है गूगल कुंड...आप केदारनाथ दर्शन करके रो पड़े वाह रे भक्ति....अच्छा हुआ दक्षिण भारतीय दल आ गया फिर से बिस्कुट काम आया...हर हर महादेव..

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  2. ये यात्रा किस महीने में की थी

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    1. यात्रा की तिथि यात्रा के शुरुआती भाग में दी गई है। वैसे ये यात्रा अक्टूबर 2018 में की गई थी।

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  3. केदारनाथ में रुकने की व्यवस्था नही है क्या?

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  4. विवेक जी केदारनाथ में रुकने और खाने पीने की बहुत अच्छी व्यवस्था है। हम लोगो को अगले दिन बद्रीनाथ जाना था इसलिए वहां रात को रुकना नहीं हो पाया।

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  5. हमारे पिताजी और माताजी की उम्र करीब 80 के आसपास है। दर्शन कर पायंगे या नही। क्या सुबिधा और ब्यवस्था सब ठीक है। अपने निजी वाहन से या वहाँ के टैक्सी अच्छा रहेगा।

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