Saturday, June 23, 2018

खीरगंगा ट्रेक kheerganga trek खीरगंगा से दिल्ली की तरफ

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भोले बाबा के दर्शन हो चुके थे और खीरगंगा की सुंदरता को अपनी आँखों में भर के हम वापस बरशेनी की तरफ निकल रहे थे। खीरगंगा से कुछ नीचे उतरते ही एक रास्ता नीचे जाने वाले रास्ते से अलग ऊपर की तरफ जाता दिखाई दिया तो मैंने वहां पर एक चाय की दुकान वाले से पूछा क़ि ये रास्ता कहाँ जाता है।
दुकानदार ने बताया कि ये रास्ता मानतलाई की तरफ जाता है। जो यहाँ से दो दिन की दूरी पर है, और पार्वती नदी का उद्गगम स्थल भी है। राजन को जल्दी थी तो मैंने उससे कहा कि तुम आगे चलो मैं आराम से आता हूं। राजन ने कहा कि वो बरशेनी में मेरा इंतजार करेगा, और वो चला गया। अब मेरे ऊपर समय की कोई पाबन्दी नहीं थी तो मैं मानतलाई वाले रास्ते पर चलने लगा। मैंने सोचा जब इतनी दूर आ ही गए है तो थोड़ा इस रास्ते को भी देख ले। लगभग दो तीन सौ मीटर चलने के बाद मैंने महसूस किया की सुबह के समय मैं ही इस रास्ते पर अकेला हूँ। जंगल का रास्ता था तो मुझे डर भी लगने लगा। मुझे लगने लगा कि अब मुझे वापस चलाना चाहिए तो मैंने वापसी की राह पकड़ ली। वैसे भी मुझे मानतलाई तो जाना ही नहीं था।


कुछ ट्रेकर खीरगंगा के आगे टुंडाभुज, पांडुपुल होते हुए मानतलाई तक जाते है। और कुछ ट्रेकर इससे भी आगे 17500 फुट ऊँचे पिन पार्वती पास को पार करके पिन वैली से होते हुए स्पिति तक चले जाते है। पिन पार्वती पास के एक तरफ पार्वती वैली है जो कुल्लू जिले में आता है। वही दूसरी तरफ पिन वैली है जो लाहुल और स्पिति जिले के अंतर्गत आता है। इसीलिए इस पास का नाम पिन पार्वती पास पड़ गया होगा।  जिस प्रकार से पार्वती वैली में पार्वती नदी बहती है उसी तरह पिन वैली में पिन नदी बहती है। इस ट्रैक को पिन पार्वती पास ट्रेक के नाम से जाना जाता है। इस पूरे ट्रेक को करने में तक़रीबन दस दिन लग जाते है और खीरगंगा के बाद कही कोई रुकने की व्यवस्था भी नहीं है।केवल अपने टेंट और स्लीपिंग बैग का ही सहारा होता है। 'टुंडा भुज' या किस्मत अच्छी हुई तो 'उड़ी टाच' तक कुछ गद्दिओ के डेरे मिल जाते है जो अपनी भेड़ो, बकरियो और गौवंसो को लेकर गर्मियों में यहाँ के चरागाहों तक ले जाते है, और सर्दियों में वापस नीचे उतर जाते है। इस ट्रैक को करने के लिए गाइड, पोर्टर तथा दस दिनों के राशन की भी व्यवस्था करनी होती है। कुल मिला के ये ट्रेक बहुत ही कठिन ट्रेक है।

अब मैं वापस बरशेनी जाने वाले रास्ते पर आ गया था। सुबह का समय होने के कारण रास्ते में कोई भी दिखाई नहीं पड़ रहा था। खीरगंगा से चलते समय मैंने ये निर्णय लिया था कि मैं नकथान गांव वाले रास्ते से नीचे जाऊँगा जिसका रास्ता खीरगंगा से चार km नीचे की तरफ उतरने के बाद जंगल वाले रास्ते से अलग हो जाता है। लेकिन चार km तो जंगल से ही जाना था। सुनसान रास्ता ऊपर से भालुओ के बारे में सोचते ही मेरी हवा टाइट हो गई थी। मैं मन ही मन सोचने लगा मुझे भी राजन के साथ ही चले जाना चाहिए था। खैर अब कुछ नहीं हो सकता था। राजन पता नहीं कितनी दूर निकल गया था अब उसे पकड़ पाना मेरे लिए संभव नहीं था। करीब 2 km अकेले चलने के बाद मैंने गलत रास्ता पकड़ लिया जिससे मैं मेंन रास्ते को छोड़  पार्वती नदी की तरफ चला गया। वहाँ जा कर देखा तो आगे रास्ता ही नहीं था। अब मैं और भी घबरा गया। तभी मैंने ऊपर देखा तो कुछ सामान ढोने वाले पोर्टर दिखाई दिए।

सरकारी आदेश के अनुसार खीरगंगा के सारे टेंट हटने वाले थे, इसिलिये वो खीर गंगा से टेंट वालो का सामान नीचे ले कर जा रहे थे। उन्हें देख कर मेरी जान में जान आ गई और मैं उनकी तरफ भागा। उन लोगो ने अपनी पीठ पर काफी सामान लादा हुआ था, फिर भी वो बहुत तेज गति से चल रहे थे। मुझे उनकी स्पीड के साथ चलने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। सच कहूं तो अगर भालुओ का डर नहीं होता तो मैं उनके साथ  जा ही नहीं पाता। किसी तरह मैं उस जंक्शन तक पहुँच गया जहाँ से नकथान का रास्ता अलग हो रहा था। मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था कि अब यहाँ से जंगल का रास्ता खत्म हो जायेगा। मैंने वही एक ढाबे पर बैठ कर थोड़ी देर आराम किया और लगे हाथ एक ग्लास जूस भी पी लिया। ढाबे पर भी वही चर्चा चल रही थी की सीजन के टाइम पर सरकार का ये फैसला सही नहीं है। अब हम लोग( ढाबे वाले) कहा जायेंगे इत्यादि इत्यादि। मैं चुप चाप उनकी बातों को सुनता रहा। तभी मुझे ऊपर से केरल का एक ग्रुप नीचे उतरता दिखाई दिया। मैं तुरंत ही उनके पीछे पीछे चल पड़ा ढाबे से करीब एक ढेड़ km दूर तक भी जंगल ही जंगल था। अब मैं एक ग्रुप के साथ था तो रास्ता भटकने या भालुओ का भी कोई डर नहीं था। चलते चलते हम पार्वती नदी के किनारे पहुँच गए जहाँ से नदी पार करने के लिए एक लोहे का पुल बना था।

पुल पार करते ही सामने रुद्रनाग का खुला मैदान दिखाई पड़ रहा था। उस मैदान में कुछ आगे बढ़ने पर एक झरना दिखाई दिया जो कल वाले झरने से बहुत छोटा था। झरने को पार करने के लिए भी लोहे का एक छोटा सा पुल था। रुद्रनाग में एक मंदिर और धर्मशाला भी है। मैं मंदिर के प्रांगण में गया पर पता नहीं क्यों मंदिर में ताला लगा हुआ था। मैंने बाहर से ही रुद्रनाग जी को प्रणाम किया और आगे बढ़ गया। रुद्रनाग में भी एक दो टेंटनुमा दुकाने थी। केरल का ग्रुप वहाँ कुछ खाने पीने के लिए बैठ गया। अब मैं फिर अकेला ही बरशेनी की तरफ बढ़ चला। करीब दो km चलने के बाद मुझे दो लड़के दिखाई दिए जो खीरगंगा जा रहे थे। उनसे मुझे राजन के बारे में पता चला की वो आधे घंटे पहले उनसे मिला था, और मोबाइल के नेटवर्क के बारे में पूछ रहा था। इस बात से मुझे बहुत संतोष हुआ की चलो राजन ठीक ठाक था।

कुछ दूर और चलने पर नकथान गांव दिखाई पड़ने लगा था। गांव के बाहर ही एक बहुत अच्छा कैफ़े था। कैफ़े को देखते ही मुझे भूख लग गई तो मैं वहाँ चला गया। कैफ़े में उस समय खाने के लिए पराठे वगैरा उपलब्ध नहीं थे तो मैंने कैफ़े वाले को बनाना शेक बनाने का आर्डर दे दिया और बाहर पड़ी कुर्सियों पर बैठ गया। कैफ़े से खीरगंगा की तरफ देखने पर बड़ा ही मनमोहक नजारा दिखाई पड़ रहा था। ऊपर  बर्फ से लदे पहाड़, उसके नीचे वो जंगल जहाँ से मैं नीचे उतरा था और उसके नीचे पार्वती नदी अपने पूरे वेग से हरहर की आवाज करती हुई बह रही थी। ये नजारा केवल इसी रास्ते से दिखाई पड़ रहा था। कल हम जिस रास्ते से खीरगंगा गए थे उस रास्ते पर इस तरह के दृश्यों का अकाल था। कैफ़े के पास ही सेव के बगीचे और छोटे छोटे सीढ़ीदार खेत दिखाई पड़ रहे थे जिनमें गेंहू की फसल लगी हुई थी। मैदानी इलाको में गेहूं की फसल कब की काट ली गई थी। पर यहाँ मई के महीने में भी ये फसल अभी हरी दिखाई पड़ रही थी।

थोड़ी देर में मेरे हाथ में बनाना शेक का ग्लॉस था और मैं शेक पीते पीते प्रकिति की सुन्दर रचनाओं का आनंद लेता रहा। मैंने कैफ़े वाले से पूछा कि क्या उसका कैफ़े भी हट जायेगा तो उसने बताया कि ये उसकी निजी जमीन है और उसके कैफ़े पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। शेक बहुत ही बढ़िया बना था और कैफ़े वाले ने उसके लिए मुझसे साठ रूपये लिए। यहाँ से मैंने राजन को फ़ोन करने की कोशिश की पर नेटवर्क अभी भी नहीं आ रहा था। इस छोटे से ब्रेक के बाद मैंने अपना बैग उठाया और आगे चल पड़ा। कैफ़े से दो सौ कदम दूर ही नकथान गांव था। छोटा सा गांव जिसमे लकड़ी के घरों की संख्या ज्यादे थी। कुछ घर पक्के भी थे। कुछ घरों को कैफ़े का रूप दिया गया था तो कुछ में होमस्टे की भी सुविधा भी थी। यहाँ से गुजरते हुए मन में ख्याल आया की इन लोगो का जीवन कितना कठिन होता होगा हर चीज के लिए इन्हे बरशेनी जाना पड़ता होगा वो भी पैदल। हम लोग यहाँ एक बार जाने में ही थक जाते है। नकथान से बरशेनी  करीब चार km रह जाता है। अब धुप तेज लगने लगी थी और रास्ते में कोई छाया भी नहीं दिखाई पड़ रही थी। एक km और चलने के बाद मैंने मोबाइल का नेटवर्क देखा तो नेटवर्क आ रहा था। मैंने राजन को तुरंत फ़ोन किया तो पता चला कि वो बरशेनी पहुँच गया है और मेरा इंतजार कर रहा है। उसके बाद मैंने अपने घर पर फ़ोन लगाया और घर के हाल चाल लिये और बरशेनी की तरफ बढ़ चला। ये रास्ता जंगल वाले रास्ते से काफी आसान था। सीधा रास्ता भटकने का कोई डर नहीं, बहुत उबड़ खाबड़ भी नहीं था। रास्ते में केवल छांव की कमी महसूस हो रही थी। धुप सीधे सर पर पड़ रही थी करीब एक घंटे के बाद मैं भी बरशेनी में राजन के साथ बैठ कर बस का इंतजार कर रहा था।

यहाँ एक गड़बड़ी हो गई राजन जहाँ बैठा था वहाँ से बरशेनी का बस अड्डा दो सौ मीटर दूर था। और थकान के मारे मैं भी वही बैठ गया। हमें लगा बस यही से जायेगी। करीब एक घंटे तक बैठे रहने के बाद भी जब कोई बस नहीं आई तो हम वहाँ से आगे बढ़े जहाँ हमें एक बस दिखाई दी जो भुंतर जा रही थी। हमें भुंतर तक न जा के केवल कसोल तक ही जाना था। वापसी में राजन ने कसोल से दिल्ली के लिए वोल्बो में बुकिंग कर रक्खी थी। हम बस के पास दौड़ते हुए गए तो देखा की बस यात्रियो से खचाखच भरी हुई थी। अब दूसरी बस का इंतजार करने के अलावा कोई और चारा नहीं था। अगली बस ढेड़ घंटे में आने वाली थी। बस अड्डे के पास अनेक खाने पीने की दुकानें थी हमें भी भूख लग गई थी तो हमने सोचा की चलो कुछ खा लेते है। तभी मेरा ध्यान वहाँ के टेक्सी यूनियन के ऑफिस पर गया। मैं वहाँ गया और पता लगा कि आल्टो से कसोल जाने का किराया आठ सौ रूपये है और सूमो या बलेरो जैसी बड़ी गाड़ी से जाने का किराया बारह सौ रूपये है। हम केवल दो लोग थे। टेक्सी से जाना हमारे लिये काफी महंगा प्रतीत हो रहा था। हम इसी उधेड़बुन में थे की टैक्सी से जाये की नहीं तभी मुझे तीन ट्रेकर वही बस का इंतजार करते दिखाई पड़े। मैं उनके पास गया और उनसे टैक्सी में चलने के लिए बात करने लगा भाग्यवश वे तैयार भी हो गए। अब हमने एक बोलेरो किराये पर कर ली और कसोल की तरफ निकल पड़े। रास्ते में एक बार फिर मनिकरण पड़ा पर इस बार भी वहां जाना संभव नहीं हुआ। हम चालीस मिनट में कसोल में थे। शाम के तीन बज रहे थे और हमारी बस साढ़े पांच बजे की थी। कसोल में जहाँ कल हमने पराठे खाये थे वही फिर पहुँच गए और एक एक परांठे खाये। परांठे खा कर हम कसोल से पांच मिनट की दूरी पर पार्वती नदी पर बने लोहे के पुल को पार करके नदी के किनारे जा पहुँचे। जहाँ नदी के किनारे बड़े बड़े पत्थर पड़े हुए थे। और उनके ऊपर पेड़ो की छांव भी थी। हम उन्ही पत्थरो पर बैठ कर पार्वती नदी को निहारने लगे। शाम का समय हो गया था ठंडी ठंडी हवा भी चल रही थी और सामने पार्वती नदी अपने पुरे वेग से बहती चली जा रही थी। वास्तव में ये जगह बहुत ही खूबसूरत और मन मोहक थी।

अचानक राजन को कुछ याद आया उसने मोबाइल निकल के देखा तो कहने लगा बड़ी गड़बड़ी हो गई है। मैंने पूछा क्या हुआ तो उसने बताया कि जल्दी जल्दी में उसने आज की बजाय एक दिन पहले की टिकट काट ली थी। और वो बस कल ही कसोल से दिल्ली चली गई थी। मुझे राजन पर थोड़ा गुस्सा भी आया की वो इतना लापरवाह कैसे हो सकता है। खैर अब जो होना था वो तो हो चूका था। हम भागे भागे एक ट्रेवल एजेंट के पास पहुचे और आज की दूसरी टिकट निकलवाई। संयोग अच्छा था कि हमें बस में जगह मिल गई आधे घंटे में हमारी बस आ गई और हम बस में बैठ गए। बस करीब साढ़े छः बजे से कसोल से निकल गई थोड़ी देर तक मैं खिड़की से बाहर का नजारा लेता रहा। अँधेरा होने पर थकान कि वजह से मुझे नींद आने लगी और मैं सो गया। सुबह को हम दिल्ली में थे। और शाम को मैं ट्रेन पकड़कर अगले दिन गोरखपुर पहुँच गया।
                                  (समाप्त)
अन्य यात्राएं:-


खीरगंगा की टेंट नगरी

मानतलाई की तरफ जाता रास्ता

रास्ते के पास मै



जंगल का रास्ता

कैफ़े जहाँ मैंने जूस पिया था।

जंक्शन जहाँ से नकथान का रास्ता अलग होता है


पार्वती नदी पर बना लोहे का पुल

रुद्रनाग का मैदान

रुद्रनाग झरना

रूद्रनाग से खीरगंगा की तरफ का नजारा

रुद्रनाग तीर्थ

रुद्रनाग में धर्मशाला


नकथान गाँव के पास कोकून कैफ़े

कैफ़े में बनाना शेक पीते हुए

कैफ़े के नीचे सेव के बगीचे और गेंहू के खेत

कैफ़े से दिखता खूबसूरत नजारा और नकथान गाँव की पहली झलक

नकथान गांव का एक बच्चा

नकथान गांव का एक पुराना घर

गांव से दिखता नजारा

एक और सुन्दर दृश्य

बरशेनी में पार्वती नदी और तोश नाले का संगम

बरशेनी से दिखती बर्फीली चोटियाँ

बरशेनी का बस अड्डा कम टैक्सी स्टैंड

शाम को कसोल के छालाल में पार्वती नदी के किनारे

पार्वती नदी के किनारे फुर्सत के पल






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