Saturday, June 16, 2018

खीरगंगा ट्रेक kheerganga trek खीरगंगा का सौंदर्य

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जब तक हम खीरगंगा पहुँचे शाम के चार बजने वाले थे। खीरगंगा के चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ है और बीच में घास का ढालदार मैदान है। इसी मैदान के सबसे ऊपरी छोर पर पार्वती कुंड है जिसमे गर्म पानी के सोते से आने वाला पानी इकठ्ठा होता रहता है। इसी कुंड के ऊपर भागवान भोलेनाथ का एक छोटा पर सुन्दर सा मंदिर है।
कुण्ड के बगल में ही एक धर्मशाला है। जो लकड़ी का बना हुआ है। खीरगंगा की ढाल को कही कही समतल करके टेंट वालो ने अपने अपने टेंट लगा रखे है। मेरे हिसाब से करीब करीब साठ सत्तर टेंट वाले तो रहे ही होंगे।

 हम खीरगंगा पहुँच तो गए थे पर हमें रात में रुकने के लिए किसी टेंट वाले से बात करनी थी। ताकी हम रात को यहाँ रुक सके। हमने सोचा की कुंड के जितना नजदीक हो सके हम वही टेंट लेंगे। हम जहाँ खड़े थे वहाँ से कुंड लगभग एक km दूर था। हम ऊपर की ओर चलने लगे तभी बीच रास्ते में ही हमें एक टेंट दिखाई दिया जिसका नाम शिव सागर कैफ़े था और उसके बाहर बहुत सी कुर्सियॉ और मेज  रक्खी हुई दिख रही थी। हम वहां आराम करने के लिए बैठ गए तभी उस टेंट साम्राज्य की मालकिन आ गई और उसने हमसे टेंट किराये पर लेने के बारे में पूछा। सच कहूं तो हम काफी थक गए थे और टेंटवाली के पूछने पर हमारा कुंड के पास टेंट लेने का विचार जाता रहा। हमने उससे टेंट का किराया पूछा तो उसने हमें चार पांच छोटे टेंट जिन में दो या तीन लोग सो सकते है दिखाया और उसका किराया पाँच सौ रूपये प्रति टेंट बताया।

 हम एक टेंट लेने के लिए तैयार थे कि मेरी नजर लकड़ियों से बने एक हाल पर गई जो चारो ओर से मोटी प्लास्टिक की चादरों से ढका हुआ था। मैं उसके अंदर गया और देखा की उस हॉल की लंबाई करीब पच्चीस तीस फुट, चौड़ाई लगभग बारह तेरह फुट और ऊँचाई करीबन दस फुट की थी। चारो तरफ गद्दे करीने से बिछाये हुए थे। हॉल के बीच में एक अंगीठी लगी हुई थी जिसके धुंए को एक लोहे के पाइप से बहार निकलने का इंतजाम था। मुझे ये हॉल उस छोटे से टेंट से कई गुना अच्छा लगा। मैंने हॉल से बाहर निकल कर टेंटवाली आंटी से हॉल में रुकने का किराया पूछा तो उसने कहा एक आदमी का ढेड़ सौ रुपये। हमने तुरंत यह प्रस्ताव मान लिया और अपना सामान लेकर हॉल में पहुँच कर एक एक गद्दे पर अपना कब्जा जमा लिया।

हमने अपने पसीने से भीगे हुए कपड़े निकाल कर सूखे कपड़े पहन लिए। राजन  की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी तो मैंने उसे बुखार और दर्द की एक गोली दी और आराम करने को कहा।  राजन ने दवाई खाई और सो गया। मुझे नींद बिल्कुल भी नहीं आ रही थी तो मैंने अपने मोबाइल को निकल कर देखा नेटवर्क का आभाव दिखाई पड़ रहा था। यहाँ पर केवल bsnl का ही नेटवर्क है वो भी कभी कभी पकड़ता है। मैंने अपने फ़ोन का जीपीएस आन करके यहाँ की ऊँचाई देखी जो 2731 मीटर दिखा रहा था। वैसे खीरगंगा की ऊँचाई 3000 मीटर के करीब है जो इसकी अधिकतम ऊँचाई को बतलाता है। मेरे विचार से इतनी ऊंचाई पार्वती कुंड के आस पास होनी चाहिए।

टेंट मिलने और थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं हॉल के बाहर निकल कर आस पास का जायजा लेने लगा। चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़, उनपर देवदार के पेड़ और पेड़ो के बहुत ऊपर बर्फ ढकी चोटियाँ। एक पहाड़ में से एक छोटा सा झरना भी दिखाई दे रहा था। कुल मिला के नज़ारे ऐसे थे की बारह km की चढ़ाई के बाद यहाँ पहुँचने का मुझे इनाम मिला हो। मैं बाहर पड़ी कुर्सियों पर बैठ गया और टेंट के किचेन में एक चाय का आर्डर दे दिया। थोड़ी देर में चाय आ गई। चाय बहुत ही अच्छी बनी थी। उस ठन्डे माहौल में गर्म चाय पी कर मजा आ गया। तभी टेंट साम्राज्य की मालिकिन आ गई और उसने बताया कि आप लोग बहुत लकी हो, की आप लोग आज आ गए हैं। कल से ये सारे टेंट कोर्ट के आदेश पर हटने वाले है।

मैंने ये सुन रखा था कि हिमांचल में सरकार अवैध कब्जे हटवा रही है पर यहाँ क्यों? पूछने पर ऑन्टी ने बताया कि टेंटो की वजह से यहाँ बहुत गन्दगी फैल रही है और बहुत से टेंटवाले स्थानीय आदमियों से साँठ गांठ कर के यहाँ के पेड़ काट कर नीचे भेज देते है। इस लिए हम लोगो को इस जगह को खाली करने का आदेश मिला है। मैंने मन ही मन सोचा कि प्रकृति की जिस अनुपम छठा को देखने के लिए लोग इतनी दूर से यहाँ आते है। जब वो खूबसूरती ही नहीं रहेगी तो कोई यहाँ क्यों आएगा। टेंट नगरी देखने तो बिलकुल नहीं। प्रकृति ने टेंटवालो को आजीविका का एक साधन दिया तो वे प्रकृति का अहसान मानने की जगह उसका ही दोहन करने में जुट गए। खैर जो होता है वो अच्छा ही होता है। जो होगा वो भी अच्छा ही होगा। अब खीरगंगा आने वाले ट्रेकरों को अपना खुद का टेंट नीचे से ढो कर लाना पड़ेगा या सुबह जल्दी से यात्रा शुरू कर शाम तक वापस बरशेणी पहुचाना पड़ेगा। यहाँ एक ही धर्मशाला है जिसमे चार पांच कमरे ही है, जो इतने सारे ट्रेकरों के बीच में ऊंट के मुँह में जीरा के सामान है।

 दिन ढलने वाला था तो मैं पहाड़ की ओट में छिपते हुए सूरज देवता की फोटो खींचने लगा। सूरज के ढलते ही ठण्ड बढ़ गई। रात के खाने के लिए एक एक परांठा और एक एक प्लेट मैग्गी के लिए हमने ऑन्टी को आर्डर दे दिया। रात होने तक हमारे शिव सागर कैफ़े में कई और ट्रेकर आ गए थे। ऑन्टी ने टेंट के बाहर खुली जगह में बॉन फायर का इंतजाम किया था। शिव सागर कैफ़े के सारे यात्री आग ताप रहे थे। हम भी आग के पास बैठ कर ठंडी में गर्मी का अहसास करने लगे। रात के नौ बजे हमने खाना खा लिया खाना बहुत ही अच्छा था।

 मेरे पास जैकेट थी तो मैं बाहर खुले में  जा कर रात में खीरगंगा का नजारा लेने लगा। राजन को ठण्ड लग रही थी तो उसने हॉल के बाहर निकलना ठीक नहीं समझा। रात में खीरगंगा का अलग ही रूप दिख रहा था चारो तरफ टेंटो से आती हुई जगमग जगमग बल्बो की रोशनी बहुत ही लुभावनी लग रही थी। आधे घंटे तक टहलने के बाद मैं भी हॉल में आ गया। राजन ने मुझे बताया कि उसे एक बहुत जरूरी फ़ोन करना है हमारे फ़ोन में नेटवर्क नहीं था तो हमने ऑन्टी से पूछा पर उनके फ़ोन में भी नेटवर्क नहीं था। राजन ने कहा कि उसे सुबह दस बजे के पहले ही वो फ़ोन करना है।मैंने उसे कहा कि तुम सबेरे छः बजे उठ कर पार्वती  कुंड में  नहा कर बरशेणी की तरफ निकल जाना नाकथान गांव में नेटवर्क मिल जायेगा तो फोन कर लेना। मेरा मन था कि इस ठंडी में मैं आठ बजे के बाद आराम से उठूंगा। इस लिए मैंने राजन को बोल दिया की तुम सबेरे छः बजे चले जाना।

सुबह साढ़े छः बजे जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की राजन वहां नहीं है वो नहाने के लिए कुंड की तरफ चला गया था। मुझे भी नींद नहीं आ रही थी तो मैं भी उठ गया और फ्रेश होने चला गया। फ्रेश हो कर मैं भी नहाने के लिए कुंड की तरफ निकाला ही था कि राजन नहा कर वापस आता दिखाई दिया। मैंने उससे मेरे साथ कुंड तक चलने को कहा तो वो मान गया। सुबह का समय था और खीरगंगा में सन्नटा पसरा हुआ था। हम कुंड तक पहुचे राजन तो स्नान कर चुका था तो वो एक तरफ बैठ गया। कुंड में पुरुषों के स्नान की व्यवस्था के अलावा  महिलाओं के नहाने की भी व्यवस्था है जो चारो ओर से  ढकी हुई जगह में है। कुंड में स्नान से पहले कुंड के बाहर लगी टोटियों से आ रहे पानी से नहाना आवश्यक है। साबुन वगैरा वही लगाना होता है। कुंड में साबुन लगा के नहाना मना है।


मैंने भी अपने कपड़े उतारे शरीर में एक ठण्ड की लहर सी दौड़ गई। मैं कुंड के बाहर लगी टोटियो से नहा कर कुंड में घुसा पर पानी इतना गर्म था कि पहले केवल घुटनो तक फिर कमर तक पानी में गया। लग रहा था कि डुबकी लगा ने पर शरीर की खाल उतार जायेगी। थोड़ी देर में शरीर इतने गर्म पानी का अभ्यस्त हो गया तब जा के मैंने भोलेनाथ का नाम लेके डुबकी लगाई। अब मुझे मजा आने लगा था। पर राजन को जल्दी थी तो मुझे बाहर निकलना पड़ा। वैसे भी यहाँ ज्यादा देर पानी में नहीं रहना चाहिए क्योंकि यह पानी गंधक मिला होता है और गंधक की गैस में ज्यादा देर रहने पर किसी को भी पहले चक्कर फिर बेहोशी आ सकती है।


 मैंने जल्दी से कपड़े पहने और ऊपर स्थित भोलेनाथ के मंदिर में पहुँच गया।  खीरगंगा का नजारा , सोमवार का दिन, गर्म पानी में स्नान और अब भोले नाथ के दरबार में हाजिरी, लगा जीवन धन्य हो गया। मंदिर बहुत ही छोटा सा था जिसमे शिवलिंग की स्थापना की गई थी। मंदिर के ऊपर पहाड़ो से गर्म पानी आ रहा था जिसे कुंड की ओर पाइप से भेजा गया था। मंदिर के प्रांगण से पूरे खीरगंगा का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ रहा था। मंदिर से कुछ दूर ऊपर जाने पर कार्तिकेय की गुफा है जहाँ कार्तिकेय ने तपस्या की थी। सूर्य देवता भी निकल चुके थे और उनकी किरणे सामने पहाड़ की चोटी पर पड़ रही थी। पहाड़ पर पड़ी बर्फ सूरज की किरणों से सोने की भांति चमक रही थी। मैं यहाँ कुछ देर बैठना चाहता था पर राजन की जल्दबाजी की वजह से यहाँ से जाना पड़ रहा था। हम अपने टेंट में पहुँचे और देखा की शाम को आये ट्रेकर अभी भी सो रहे थे। उनमें से एक दो जगे हुए भी थे। हमने किचेन से चाय और बिस्किट ली और चाय बिस्किट खाते खाते ऑन्टी से अपना रहने और खाने का हिसाब करवा लिया। करीब साढ़े सात बजे हम अपना सामान अपनी पीठ पे लाद कर खीरगंगा से वापस जाने को तैयार थे।
   आगे:- खीरगंगा ट्रेक kheerganga trek खीरगंगा से दिल्ली की तरफ

शिव सागर कैफ़े

नीले रंग के छोटे टेंट और किचेन

किचेन के अंदर

बाहर पड़ी कुर्सियाँ

डूबता सूरज

कैफ़े से दिखती बर्फ लदी चोटियाँ

जीपीएस डाटा

पहाड़ो में सूरज जो अब डूब गया है

शाम को बॉन फायर

राजन जी

सूरज की पहली किरण

हॉल के अंदर का दृश्य

कुंड में 

 एक फोटो और

कपड़े पहनने के बाद

राजन जी को ठण्ड लगती हुई

 बोर्ड के बाई तरफ कुंड और मंदिर दाये तरफ धर्मशाला

कुंड और मंदिर जाने का रास्ता

कुंड के ऊपर यहाँ नहाना मना है

भोले बाबा का मंदिर

मंदिर के अंदर का दृश्य

खीरगंगा तीर्थ का महत्त्व

सुबह होने को है और पहाड़ो पर चमकती बर्फ












2 comments:

  1. अच्छा वर्णन । कोशिश करें कि चित्र थोड़े बड़े आकार में दिखें और कम से कम व्यक्तिगत हों।

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    1. आप के सुझावो पर आगे से ध्यान दिया जायेगा।

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