Sunday, June 10, 2018

खीरगंगा ट्रेक kheerganga trek बरशेणी से खीरगंगा

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दोपहर के बारह बज चुके थे और हम बरशेणी के बस अड्डे पर खड़े हो कर कसोल से लाये हुए केले खा रहे थे और दूर बर्फ से लदी पहाड़ियों को देखते हुए सोच रहे थे कि हमें उन्ही पहाड़ियों में कही बारह तेरह km तक पैदल जाना है, जहाँ हमारी मंजिल खीरगंगा है।

खीरगंगा की ऊँचाई समुन्द्र तल से लगभग 3000 मीटर  है। ये एक प्रकार का बुग्य्याल ही है। पहाड़ो पर 2500 मीटर की ऊँचाई के बाद घास के विशाल मैदानों को बुग्य्याल कहा जाता है। खीरगंगा में एक गर्म पानी का कुंड है, जिसमे बारहो महीने गर्म पानी आता रहता है। इस तरह के कुंड पहाड़ो में कई जगह पाये जाते है। पहाड़ो में गंधक की चट्टानें होती है जब पहाड़ो से आने वाला पानी का कोई सोता इन चट्टानों के संपर्क में आता है तो पानी गर्म हो जाता है।इस पानी में औषधीय गुण पाए जाते है। इस पानी में नहाने से चर्म रोग दूर हो जाते है।

सभी जगहों की अपनी एक कहानी होती है खीरगंगा भी इस मामले में कोई अपवाद नहीं है। इस जगह की भी एक कहानी है। कहते है कि कार्तिकेय जो भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र है, इन्होंने यहाँ कई सौ साल तपस्या की थी। उनके आहार के लिए माता पार्वती ने यहाँ दूध की गंगा बहा दी थी। तब इसे दूधगंगा के नाम से जाना जाता था। कालांतर में परशुराम के श्राप के कारण यहाँ का  दूध  पानी में बदल गया। इस पानी में मलाई जैसा कोई पदार्थ आता रहता है जिससे इसे खीरगंगा के नाम से जाना जाने लगा। यहाँ पर भोलेनाथ का एक मंदिर तथा कार्तिकेय की गुफा भी है।

खीरगंगा में रात को रुकने की भी व्यवस्था है। यहाँ कई प्रकार के टेंट है जहाँ कोई भी रुक सकता है। अगर कोई एक दिन में बरशेणी से खीरगंगा जा कर वापस बरशेणी आना चाहे तो उसे सुबह सुबह ही बरशेणी से खीरगंगा के लिए निकल जाना चाहिए ताकी खीरगंगा से लौटते समय रास्ते में रात न हो जाये। खीरगंगा का रास्ता जंगल से हो कर जाता है। रात में रास्ता भटकने का डर होता है। इसके अलावा हिमालय में 2500 मीटर की ऊँचाई पर भालू मिलते है। खीरगंगा के रास्ते में रात को इन भालुओ से मुलाकात होने का भी खतरा लगा रहता है। इस लिए यहाँ रात में ट्रैकिंग करना बहुत जोखिम भरा हो सकता है।

बरशेणी के आस पास तीन गांव है जिनके नाम कालगा, पुलगा और तोश है। जो  इजराइली सैलानियो में काफी प्रसिद्ध हैं। ये यहाँ रुक के ग्रामीण जीवन का अनुभव करते है। इनके अलावा ये गांव अब देसी सैलानियो को भी आकर्षित कर रहे है। बरशेनी में ही पार्वती नदी पर बांध बना कर बिजली बनाने की परियोजना स्थापित की गयी है। इसी बांध के दाहिने तरफ कालगा गांव है। खीरगंगा जाने के दो रास्ते है। पहला रास्ता कालगा गांव से हो कर जाता है, जो आगे जा कर जंगल में मिल जाता है और सारा रास्ता जंगल से होते हुए खीरगंगा तक जाता है। इस रास्ते खीरगंगा  की दूरी लगभग 12 km है। दूसरा रास्ता बांध के बाएं तरफ से जाता है। इसी रास्ते पे कुछ दूर चलने के बाद एक रास्ता ऊपर को जाता है जो तोश गांव की तरफ चला जाता है, और एक रास्ता नीचे की तरफ जाता है जहाँ से खीरगंगा की चढ़ाई शुरु होती है। ये रास्ता अपेक्षाकृत आसान है, और रास्ते में पड़ने वाले एक गांव नकथान से हो कर जाता है। नाकथान पार्वती घाटी का आखिरी गांव है। नाकथान से तीन km के बाद रुद्रनाग नाम की एक जगह से ये रास्ता उसी जंगल वाले रास्ते में मिल जाता है। जहाँ से खीरगंगा की दूरी चार km रह जाती है। इस रास्ते खीर गंगा की दूरी दस km है।

हमने बरशेणी में एक एक पानी की बोतले खरीदी और खीरगंगा की तरफ बढ़ चले। सोचा था कि हम रुद्रनाग वाले आसान रास्ते से खीरगंगा जायेंगे लेकिन रास्ते में उस खटारा बस की वजह से हुई देरी के कारण हम जल्दीबाजी में थे और इसी जल्दबाजी के वजह से हमने बांध के पास किसी से रास्ते के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की और हम जंगल वाले रास्ते पे बढ़ चले। हमें अब तक ये आभास तक नहीं हुआ था कि हम जंगल वाले रास्ते से जा रहे है।  डैम को पार करने के बाद अचानक से सीधी खड़ी चढ़ाई ने हमारा स्वागत किया। करीब पचास साठ सीढ़िया चढ़ने के बाद और आधे km की चढ़ाई चढ़ने के बाद हम काफी ऊँचाई पर पहुँच गए थे। यहाँ से हमें डैम और बरशेणी का पूरा नजारा दिखाई दे रहा था। शुरुआत में ही इतनी खड़ी चढाई ने हमारे कस बल ढीले कर दिए थे। पानी के दो दो घुट पी कर हम आगे बढ़ चले। कुछ दूर चलने के बाद हमें एक खुली जगह मिली जहां की मखमली घास पर हम लेट गए। करीब दस मिनट के ब्रेक के बाद हम फिर से तरोताजा हो गए थे। करीब एक ढेड़ घंटे चलने के बाद हम एक मैदान में  पहुंच गए थे। मैदान एक ढाल के रूप में स्थित था। ऊपर देवदार के पेड़ एक कतार में खड़े थे और उन पर अनेको प्रकार की लताएं लिपटी हुई थी। नीचे देखने पर करीब दो सौ फीट नीचे पार्वती नदी अपने पूरी रफ़्तार से बह रही थी। पानी में इतना वेग था कि पूरे रास्ते नदी की आवाज आती रही थी। इसी जगह से खीरगंगा जाने का दूसरा रास्ता भी साफ साफ दिखाई दे रहा था जो नदी के दूसरे छोर पर था। एक हलकी सी झलक नाकथान गांव की भी मिली तब जा के मुझे बोध हुआ की हम नाकथान गांव वाले रास्ते से नहीं जा रहे है वरन जंगल वाले रास्ते पर है। अब कुछ नहीं हो सकता था क्योंकि हम काफी दूर आ गए थे।

कहते है जो होता है वो अच्छा ही होता है और उसके पीछे कोई नेक कारण भी होता है। हम जंगल वाले रास्ते पर थे जो लंबा तो था पर मई के दोपहर की खड़ी धुप में झुलसने से हमें बचा रहा था । ऊँचे ऊँचे देवदार के पेड़ों से धुप बहुत ही कम मात्रा में हम तक पहुँच पा रही थी। पेड़ो की वजह से वातावरण में शीतलता थी। वही दूसरे रास्ते पर रुद्रनाग तक सीधी धुप पड़ रही थी और रास्ते में दूर दूर तक कोई छाया भी नहीं दिख रही थी। अब हम खुश थे की भूल से ही सही हमने जंगल वाला रास्ता पकड़ कर अच्छा किया।

रविवार का दिन होने के कारण अच्छी खासी संख्या में ट्रेकर रास्तों के बीच बीच में मिलते जा रहे थे। जिससे हमें ये इत्मीनान था कि हम सही रास्ते पर चल रहे थे। एक जगह तीन चार लड़को का ग्रुप खाना खा रहा था। शायद ये लोग नीचे से खाना पैक करवा के लाये होंगे । उन्हें खाते देख मुझे भी भूख लग गई। आखिर हमलोगों ने दस साढ़े दस बजे केवल एक एक पराठा ही तो खाया था। पर हमारे पास खाने के लिए केवल एक पैकेट बिस्कुट ही था तो हमने पहले उसे अपने पेट के हवाले किया जिससे हमारे शरीर में कुछ जान आ गयी।

हम जंगल में अनेक प्रकार की वनस्पतियो को देखते हुए चले जा रहे थे। रास्ता कही भी समतल नहीं था उबड़ खाबड़ पथरीला रास्ता था। कही कही तो हम रास्ते से दस फुट तक नीचे उतरते फिर उतना ही ऊपर चढ़ते। रास्ते में बड़े बड़े बोल्डर पड़े थे जिन पर चढ़ना उतरना पड़ रहा था। जहाँ रास्ता थोड़ा समतल लगता वहाँ पेड़ो की मोटी मोटी जड़े आपस में गुथ कर रास्ते  पर स्पीड ब्रेकर का काम कर रही थी। कही कही रास्ता था ही नहीं तो वहाँ पेड़ो की मोटी टहनियों को डाल कर रास्ता बनाया गया था। जिस पर चलते हुए सावधानी हटी दुर्घटना घटी वाली फीलिंग आ रही थी। क्योंकि नीचे दो सौ फुट से ज्यादा गहरी खाई नजर आने लगती थी। रास्ते में एक पचास साठ फुट ऊँचे देवदार के पेड़ में किसी ने आग लगा दी थी। क्या पता ये आग किसी ने लगाई थी या किसी की लापरवाही से लग गई थी। पेड़ से भयानक धुंआ उठ रहा था। ऐसा लग रहा की जल्दी ही अगर किसी ने इसे बुझाया नहीं तो जंगल के अनेक पेड़ इसकी चपेट में आ जाने वाले थे। ये पेड़ एकदम रास्ते पर था तो हम ठिठक कर रुक गए। हम सोचने लगे की अगर हम इस रास्ते पर जायेंगे और कही उसी समय ये विशालकाय पेड़ गिर गया तो। ये ख्याल आते ही हम रास्ते से थोड़ा हटकर ऊपर पहाड़ी पर चढ़ गए और किसी तरह पेड़ो को पकड़ पकड़ कर सुरक्षित जगह पर पहुचे। पेड़ से निकल रहे धुएं और आग की गर्मी के वजह से हमें साँस लेने में भी कठिनाई का अनुभव हो रहा था। जैसे तैसे हम पेड़ से काफी दूर अपने सही रास्ते पर आ गए।

अब तक हमने सात आठ km की दूरी तय कर ली थी। अचानक से एक पेड़ पर लगे बोर्ड ने हमें सिहरा के रख दिया। यह बोर्ड एक ट्रेकर की याद में लगाया गया था। जो यही कही रास्ता भटक कर खाई में गिर गया था और बाद में उसकी लाश बहुत बुरी दशा में मिली थी। हम थोड़ी देर गुमसुम से चलते रहे। पहाड़ जितने सुन्दर दिखते है उतने ही कठोर भी होते है, जितने रमणीय दिखते है उतने ही जानलेवा भी है। ये बात बोर्ड पढ़ कर हम समझ चुके थे। अब रास्तो पर चलने की हमारी सावधानी में दस गुना का इजाफा हो चुका था।

बोर्ड पढ़ने के कुछ ही दूर बाद हमारे लटके हुए चेहरों पर एक विशालकाय झरने को देख कर ख़ुशी लौट आयी। ये झरना बहुत ही उचाई से गिर रहा था करीब  सौ फीट तो होगा ही और उसमें से आने वाली हाहाकारी आवाज ऐसी थी की हमें आपस में बात करने के लिए चिल्लाना पड़ रहा था। झरने के पास ही एक टेंटनुमा दुकान थी। जहाँ मैग्गी, पानी की बोतल बिस्कुट, चिप्स और कोल्ड ड्रिंक मिल रही थी। हमने फ्रूटी की एक बोतल ली और झरने के पास बैठ कर कुदरत की बनाई इस नायाब चीज को देखते हुए उस बोतल को खाली करने का प्रयास करने लगे। झरने से इतना पानी आ रहा था की  पानी के उस पार जाने के लिए लकड़ी का एक पुल बना हुआ था। 

फ्रूटी पी कर हमारे अंदर जोश सा आ गया और हम बाकी का बचा रास्ता नापने को तैयार हो गए। इस रास्ते में धुप से तो हमारा बचाव हो रहा था पर सिवाय पेड़ो के और कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। तो हमने ये निश्चय कर लिया की इस रास्ते से जा तो रहे है पर वापस दूसरे रास्ते से ही लौटेंगे। कुछ दूर आगे बढ़ने पर हमें टेंट वाली दुकानों का एक समूह सा दिखाई दिया। पूछने पर पता चला की ये जगह दोनो रास्तो का जंक्शन है। इसी जगह से रुद्रनाग के लिए रास्ता अलग होता है। अगर हम दूसरे रास्ते से आते तो हम यही पहुचते यहाँ से दोनों रास्ते एक हो जाते है। यहाँ से खीरगंगा लगभग चार km ही रह जाता है पर चढ़ाई में तीखापन आ जाता है। अब तक हम आठ नौ km  चल चुके थे और हमारी हालात खराब होने लगी थी। हम कही थोड़ी देर बैठते तो  घना जंगल और भालुओ के बारे में सोचते ही हम फिर चलने लगते थे। भालुओ का डर ही था कि बारह km की दूरी हमने चार घंटे में तय कर ली थी। आखिर के एक km बहुत ही खड़ी चढ़ाई वाले थे जिसने हमारा बचा खुचा दम भी निकल कर रख दिया। हम चलते जा रहे थे तभी राजन ने कहा वो देखो मैंने ऊपर देखा तो नीले रंग का एक टेंट नजर आया। मैं खुशी से उछल पड़ा क्योंकि सामने खीरगंगा जो नजर आ रहा था।
आगे:- खीरगंगा ट्रेक kheerganga trek खीरगंगा का सौंदर्य
                                                           
पहाड़ की चोटी पर बर्फ 

डैम के पास लगा सूचना पट्ट

बांध के ऊपर सीढ़िया चढ़ने के बाद नीचे डैम और बरशेणी

राजन जी

घास के मैदान में आराम करते हुए

एक लकड़ी का पुल जो चलने पर हिलता था

इसे रास्ता कहेंगे या कुछ और
जंगल में चलते हुए

 

ऊपर से गिरी हुई एक चट्टान जो पेड़ में अटक गई है

रस्ते भर मिलने वाले छोटे छोटे नाले

पेड़ जिसमे आग लगी थी

सावधानी हटी दुर्घटना घटी

बोर्ड जिसने हमें डरा दिया

मेरी फोटो

खतरनाक रास्ता

भयानक हाड़ तोड़ चढाई

झरने के पास वाला पुल

राजन जी

बड़ा वाला झरना

एक और खतरनाक मोड़

रास्ते पर गिरा देवदार का एक पेड़

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