Sunday, June 03, 2018

खीरगंगा ट्रेक kheerganga trek भुंतर से बरशेणी


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इतना सब होने के बाद आँखों से नींद गायब हो चुकी थी, तो मैंने बाहर के नजारों का जायजा लेना शुरू किया। पहले चंडीगढ़ से मनाली तक की सड़के डबल लेन थी। अब इन्हे फोर लेन बनाया जा रहा था। सड़क का काम अभी पूरा नहीं हुआ था। कही सड़के फोर लेन थी तो कही टू लेन।
रास्ते में पंडोह डैम पड़ता है, मैं जब जब मनाली गया हूं इस डैम में बहुत पानी हुआ करता था। पर इस बार डैम में पानी बहुत कम था। इसका कारण इस साल हुई कम बारिश और कम बर्फ़बारी का होना होगा।


 सुबह के साढ़े छः बजे हमारी बस भुंतर बस अड्डे के पास रुकी तो हम वही उतर गये। भुंतर में एक एयरपोर्ट है जहाँ पर दिल्ली से फ्लाइट आती है। एयरपोर्ट काफी छोटा है, यहाँ केवल छोटी प्लेने आती जाती है। भुंतर का बस अड्डा मेन हाइवे से हट कर  सौ मीटर की दूरी पर सड़क के नीचे है। वही पर कुछ टैक्सी वाले  चाय पी रहे थे। हमने एक आल्टो टैक्सी वाले से बात की। यहाँ एक और मजेदार घटना हुई। राजन ने टैक्सी वाले से कहा खीरगंगा चलने का कितना लोगे तो टैक्सी वाला अचकचा सा गया। वो हँसने लगा और कहा कि सर जी खीरगंगा तक टैक्सी नहीं जाती। मुझे भी राजन की इस बात पर हंसी आ गयी। दरअसल टैक्सियां या बसे केवल बरशेणी तक ही जाती है। वहाँ से आगे बारह तेरह km पैदल जाना पड़ता है। टैक्सी वाले ने बरशेणी जाने का किराया 1800 रुपया बताया तो हमने तुरंत ही उसे टाटा बाय बाय कहा और बस से जाने का सोच लिया।

बस अड्डे पर बरशेणी जाने वाली बस खड़ी थी तो हम फटाक से बस में चढ़ लिए और अपनी सीटो पर कब्ज़ा जमा लिया। इस समय सुबह के सात बजे थे और हमने कुछ भी खाया पिया नहीं था। बस अड्डे पर चाय की दुकानें थी अभी हम सोच ही रहे थे क़ि चाय पी लें तभी बस चालू हो गई। भुंतर से  बरशेणी की दुरी 45 km है। मुझे लगा की पहाड़ी रास्ता है शायद दो घंटे में पहुँच जाएंगे मैदानी जगहों पर इतनी दूरी तय करने में बसे एक घंटे लगाती है, पर ये मेरी भूल थी। बस में हमने 75-75 रुपयों के टिकट लिये। जो टैक्सी से दस गुना सस्ता था। बस लोकल यात्रिओ और टूरिस्टों से खचाखच भरी हुई थी। हम खुशकिस्मत थे की हमें सीट मिल गई थी वरना करीब पंद्रह बीस लोग खड़े खड़े अपनी यात्रा कर रहे थे।

मैंने बस की खिड़की के बाहर देखा तो प्रकृति का विहँगम स्वरुप देखता ही रह गया। सड़क के एक तरफ पार्वती नदी अपनी हर हर की आवाज के साथ पुरे वेग में बह रही थी तो दूसरी तरफ सीधे खड़े पहाड़ जिन पर देवदार और चीड़ के पेड़ थे जो सूरज की रोशनी को हम तक पहुचने से रोकने का असफल प्रयास कर रहे थे। हवा में इन पेड़ों की गंध घुली हुई थी जिसने हमारी यात्रा की थकावट को मिटा सा दिया। हम पार्वती वैली में चले जा रहे थे। पार्वती वैली काफी संकरी घाटी है और बहुत दुर्गम भी। जिन लोगो को  मनाली जैसी जगहों की भीड़ भाड़ पसंद नहीं है उन लोगों को यहाँ जरूर आना चाहिए। यहाँ का वातावरण बहुत ही शांत और मनोहारी है और नजारो के तो क्या कहने है।

हमने सोचा था कि बस हमें 9 - 9.30 बजे तक बरशेणी छोड़ देगी और हम वहाँ कुछ खा पी कर ट्रेक शुरु कर देंगे। लेकिन बस की चींटी सी चाल ने हमारा सारा प्लान चौपट कर दिया। इतनी धीमी गति की बस में मैं आज तक नहीं बैठा था। कसोल से कुछ km पहले दिल्ली से मनिकरण जाने वाली वॉल्वो बस दिखी जो फ़र्राटे से हमें ओवरटेक करके हमारी आँखों से ओझल हो गई।बस फिर क्या था हमारी खीझ और बढ़ गई। अब मुझे समझ में आया कि हमें दिल्ली से मनाली वाली बस की बजाय दिल्ली से मनिकरण की वोल्बो बस पकड़नी चाहिए थी। दरअसल इसमें हमारी कोई गलती नहीं थी दिल्ली से मनिकरण वाली वोल्बो तीन चार दिन पहले ही शुरू हुई थी जिसका हमें कोई अंदाजा नहीं था। अगर किसी को दिल्ली से कसोल, मनिकरण या बरशेणी जाना हो तो वो आगे से इसी बस को पकड़े दिल्ली से मनाली वाली बस न पकड़ें।

 बस को कसोल तक पहुँचने में साढ़े दस बज गए थे। और हमारा भूख के मारे बुरा हाल हो रहा था। तभी मैंने राजन से कहा इस बस को यही कसोल में छोड़ देते है। उसके आगे की बाद में देखी जायेगी। राजन भी तैयार हो गया तो हम कसोल में ही उतर गये। बस से उतरने के बाद मैंने बस को एक जोरदार लात मारी आखिरकार उसने हमारी टाइमिंग जो बिगाड़ दी थी।

कसोल पार्वती घाटी में बसा एक छोटा सा शांत क़स्बा है। भुंतर से यहाँ तक की दूरी लगभग तीस km है। यहाँ से मनिकरण सात आठ km दूर है और बरशेणी लगभग अठारह km दूर है। कसोल को मिनी इजराइल के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर तरफ इजराइली टूरिस्ट दिखाई देते है। यहाँ तक की रेस्टोरेन्ट और होटलों में इजराइली भाषा हिब्रू में छपे मेनू कार्ड और होटलों के बाहर हिब्रू मे लिखे बोर्ड दिखाई देते है। ये पार्वती वैली में महीनो तक घूमते रहते है और अपनी छुट्टियाँ बिताते है। कसोल में रुकने के लिए  हर तरह के होटलो के साथ साथ कैंप साइट्स भी हैं जहाँ कोई भी पार्वती नदी के किनारे टेंट में रहने का अलग अनुभव कर सकता है। बहुत से सैलानी कसोल को अपना बेस कैंप बना कर आस पास के अनेक ट्रैकिंग की जगहों पर ट्रेक करते रहते है।

कसोल के आसपास में  ट्रैकिंग की अनेक जगहें है जिनमे छलाल, रसोल, मलाणा आदि प्रमुख हैं। मलाणा गाँव के लोग अपने आप को सिकंदर के वंशज मानते है और ये लोग बाहरी लोगो से ज्यादा मेल मिलाप नहीं रखते है। ये अपने को शुद्ध आर्य समझते हैं। मलाणा गाँव में घूमते समय अगर किसी बाहरी व्यक्ति ने इनके घरो,मंदिरो और लोगो को छू दिया तो ये लोग उस व्यक्ति पर जुर्माना लगा देते है। भुंतर से कसोल आते समय रास्ते में जरी नाम की एक जगह पड़ती है। वही से आठ km की ट्रैकिंग करके मलाणा पंहुचा जा सकता है। हमारे पास समय कम था नहीं तो हम भी एक बार मलाणा जाने की सोच सकते थे।

बस से उतरते ही हमें एक पराठों की दुकान दिखाई दी। हमारी भूख ने खुद ब खुद हमें उस दुकान की तरफ खिंच लिया। हमने एक एक परांठे खाये पराठों का स्वाद लाजवाब था और साइज में भी ठीक ठाक थे। फिर हमने चाय पी। सौ रूपये में दोनों लोगो का पेट भर गया था और हम आगे यात्रा करने को तैयार थे। यहाँ एक गड़बड़ी हुई जब मैंने राजन से पूछा की तुम जैकेट तो लाये हो ना, तो उसने कहा नहीं। मुझे उस पर थोड़ा गुस्सा आया की रात को ठण्ड लगेगी तो वो क्या पहनेगा खैर हमने कसोल से एक इनर खरीद लिया। यहाँ जैकेटे भी मिल रही थी पर उनकी क्वालिटी के हिसाब से दाम काफी ज्यादा लग रहा था। अब तक साढ़े ग्यारह बज चुके थे हम अपने शेड्यूल से तीन घंटा पीछे चल रहे थे।

अब हमें जल्दी से बरशेणी पहुचना था, इसलिए हम बस का इंतजार करने लगे इसी बीच मैंने छः केले खरीद लिये और अपने पास रख लिये। थोड़ी देर बाद बस आयी बस पूरी तरह  यात्रियों से भरी हुई थी। हम बस में खड़े खड़े ही आगे की यात्रा करने लगे। मनिकरण तक हम बस में खड़े ही रहे मनिकरण में बहुत से यात्री बस से उतर गए जिससे हमें बैठने की जगह मिल गई। मनिकरण में एक गुरुद्वारा है जिसके वजह से यहाँ सिख श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते रहते है।यहाँ एक गर्म पानी का कुंड भी है। कहते है कि इस कुंड में चावल डाल देने से चावल पक जाता है। इसमें नहाने की भी सुविधा है। मेरा बहुत मन था कि मैं भी मनिकरण हो आऊ पर मैंने सोचा की अभी देर हो रही है वापसी में जाऊंगा। मनिकरण से आगे बढ़ने पर हमें बर्फ से लदी पहाड़ की चोटियाँ दिखाई देने लगी। अचानक से नजारा बदल गया था। पार्वती नदी अब कम चौड़ाई में बह रही थी पर पानी में वेग बहुत था। आधे घंटे बाद हम बरशेणी के बस अड्डे पर थे।
आगे:- खीरगंगा ट्रेक kheerganga trek बरशेणी से खीरगंगा

कसोल में इजराइली बाइक चलाते हूये

कसोल में बस के इंन्तजार में

राजन जी भी बस में चढ़ने को तैयार

मनिकरण में सीट मिलने के बाद

बरशेणी में टहलते हुए

बर्फ लदे पहाड़ ज़ूम करके देखे

पार्वती घाटी

पार्वती घाटी का एक और नज़ारा

यहाँ से ट्रेक शुरु होगा

बरशेणी का बस अड्डा कम टैक्सी स्टैंड


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