दोपहर के बारह बज गए थे। करीब 9 KM की कठिन चढाई चढ़ कर हम आखिर त्रियुंड पहुँच ही गए थे। और वहां पहुँचते ही हमें इसका इनाम मिला। सामने विराट हिमालय की धौलाधार श्रृंखला खड़ी थी। जिसकी चोटियां बर्फ की वजह से चांदी की तरह चमक रही थी।
हमारी किस्मत बहुत अच्छी थी क़ि त्रियुंड का मौसम साफ था। नहीं तो वहां हमेशा धुंध सी छाई रहती है।
अब हमने यहाँ के नजारों का जायजा लेना सुरु किया। त्रियुंड एक धार पर है। अब धार क्या बला है। पहाड़ियां जिनके दोनों तरफ ढाल होती है । और दोनों ढालो के बीच में ऊंचाई पर कुछ समतल जगह दिखती है जो काफी दूर तक चली जाती है। इसे ही पहाड़ की धार कहते है। इसे इंग्लिश में रिज कहते है। जो लोग शिमला घूम चुके है । उन लोगो ने शिमला के रिज पर चहलकदमी की होगी।
त्रियुंड से तीन पहाड़ीयो का नजारा दिखता है। शायद इसी से इसका नाम त्रियुंड त्रि = तीन, उंड = पहाड़ी पड़ गया होगा। त्रियुंड की धार दो km की होगी इसके एक ढाल की तरफ महान हिमालय सीना ताने खड़ा है तो दूसरी तरफ काँगड़ा वैली है। हम बहुत देर तक इधर उधर चहलकदमी करते रहे और फोटो खींचते रहे। मौसम ठंडा और खुशनुमा हो गया था। दोपहर में मौसम की ठंडक को देखते हुए ये साफ़ महसूस हो रहा था कि रात में यहाँ बहुत ठण्ड पड़ने वाली है। यहाँ भोलेनाथ का एक छोटा सा मंदिर भी है। जो यहाँ के वातावरण में ऊर्जा का संचार कर रहा था। हमने भी वहाँ जा कर अपने शीश नवाये। यहाँ हिमांचल सरकार का एक रेस्ट हाउस भी है। चारो तरफ टेंट भी दिखाई दे रहे थे।हमने पता लगाया तो पता चला की दो लोगो के लिए 800 रूपये में रात भर रुकने की व्यवस्था हो जाती है। यहाँ का माहौल देख कर हमें पछतावा हो रहा था कि हम अपने साथ गर्म कपड़े क्यों नही ले आये। अगर हमारे पास गर्म कपड़े होते तो हम पक्का यहाँ रात में रुक जाते। और पहले सूर्यास्त बाद में सूर्योदय का आनंद उठाते।
यहाँ पर महाराष्ट्र से कॉलेज के बच्चो का एक ट्रिप आया हुआ था। वे यहाँ पहुँच कर बड़े उत्साहित दिख रहे थे। कुछ विदेशी सैलानी भी यहाँ पहुचे थे। हम भी त्रियुंड पर एक डेढ़ km का चक्कर लगा चुके थे। सबेरे के खाये परांठे और बिस्किट का पैकेट पूरी तरह हजम हो चुके थे। बड़े जोरो की भूख लग रही थी। यहाँ दो तीन दुकानें थी जो झोपड़ियों की तरह दिख रही थी। हम वहाँ गए तो देखा क़ि वहां पानी की बोतल, कोल्ड ड्रिंक, बिस्किट इत्यादि अनेक खाने पीने की वस्तुएं बिक रही थी। इसके अलावा वहाँ पर मैग्गी, ऑमलेट और चाय भी मिल रहा था। एक प्लेट मैग्गी और दो अंडे के ऑमलेट की कीमत पचास पचास रुपये थीऔर एक कप चाय बीस रूपये की थी। कीमत थोड़ी ज्यादा लगी पर जगह की दुर्गमता को देखते हुए ठीक ही लगी। हमने ऑमलेट का आर्डर दिया और वही पड़े एक तख़्त पर पसर गए। ऑमलेट खा कर और चाय पीते पीते हमने दुकानदार से पूछा तो उसने बताया कि रात को यहाँ खाना भी मिलता है।
पेट पूजा करने के बाद हम रेस्ट हाउस की तरफ बढ़ चले। वहाँ से एक रास्ता आगे जाता हुआ दिखाई दिया। पता करने पर मालूम हुआ कि ये रास्ता इंद्रहर पास की तरफ जाता है। जिसकी ऊंचाई लगभग 4350 मीटर है। वहां जाने के लिए पहले त्रियुंड से लहेश केव जाना पड़ता है। रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन इंद्रहर पास जा कर वापस लहेश केव में रुकना पड़ता है। उसके अगले दिन त्रियुंड होते हुए मैक्लोडगंज जाना होता है। अगर कोई वापस न आना चाहे तो इंद्रहर पास पार करके चम्बा जा सकता है। दरअसल काँगड़ा जिले और चम्बा जिले को ये पहाड़ अलग करता है। पुराने समय में इसी रास्ते से लोग आया जाया करते थे। कुल मिला के ये ट्रेक बहुत कठिन है। और इसे करने के लिए टेंट, स्लीपिंग बैग, खाने पीने का राशन और गाइड की आवश्यकता पड़ती है।
पढ़कर ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं त्रियुण्ड में घूम रही हूँ।चित्र भी काफी अच्छे है।
ReplyDeleteIs blog series ko padhne ke bad 'dharmshala to chamba by trekking' ka man ho raha hai.
ReplyDeleteAgar kuch aisa program banao to ..
I would definitely join you
ठीक है। अगर कभी वहाँ जाने का विचार बनेगा तो आपको जरूर बताऊंगा।
ReplyDeleteशानदार लेख, यात्रा विवरण पढवायेंगे तो हमें बार बार आना ही पडेगा।
ReplyDeleteसंदीप जी आप का कमेंट मेरे ब्लॉग पर आया। मेरे लिए आपार हर्ष का विषय है। आप जैसे धुरंधरों का मार्गदर्शन मिलता रहे यही कामना है। एक बात और है जो मैं आप को बताना चाहता हु की ये ब्लॉग मैंने आपकी एक पोस्ट 'ब्लॉग कैसे बनाये और लेख कैसे लगाये' पढ़ कर ही बनाया है। कोटिशः धन्यवाद आपको।
Deleteआपका ब्लॉग देखकर लग रहा है कि वो लेख लिखना सफल रहा है।
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