Wednesday, May 16, 2018

त्रियुंड ट्रेक TRIUND TREK मैक्लोडगंज से त्रिउंड

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हमने रात में सोते समय ये निश्चित किया था कि हम सुबह पाँच बजे उठ जायेंगे और छः बजे होटल से बाहर निकल जाएंगे। लेकिन सोने के बाद सब भूल जाता है। हम लोग करीब छः बजे सोकर उठे और तैयार हो कर होटल से बाहर निकलने में करीब एक घंटे और लग गए। बाहर निकल कर कल जहाँ हमने परांठे खाए थे वही फिर पहुच गए वहां हमने दो दो परांठे खाये और चाय पी।


अब मैं आप को बता दूँ की ये त्रियुंड है क्या। त्रियुंड एक पहाड़ी का नाम है जो मैक्लोडगंज से करीब ग्यारह बारह km की दूरी पर है। जिसकी ऊंचाई तक़रीबन 2900 मीटर है। ये हिमांचल का एक मशहूर ट्रैकिंग पॉइंट है। जहाँ सप्ताहांत की छुट्टियां ट्रैकिंग करते हुए बिताई जा सकती है। त्रियुंड पर हिमांचल सरकार का एक रेस्ट हाउस भी है। जिसकी बुकिंग धर्मशाला से होती है। इसके अलावा वहां किराये पर टेंट भी मिल जाते हैं जिसमे आराम से रात गुजारी जा सकती है। ऊपर में खाने पीने की भी भी व्यवस्था है। मैक्लोडगंज से दो km की दूरी पर धर्मकोट गांव है। शहर की भीड़ से दूर ये गांव विदेशी टूरिस्टों में बहुत लोकप्रिय है। धर्मकोट से एक km दूर गल्लू देवी का मंदिर है। मंदिर तक तो रास्ता आसान है पर असली ट्रैकिंग इसके बाद सुरु होती है।

मैक्लोडगंज से त्रिउंड जाने के तीन रूट है
1. मैक्लोडगंज से धर्मकोट होते हुए।
2. भागसूनाग से भाग्सू गांव होते हुए।
3. डल लेक से धर्मकोट, धर्मकोट से त्रिउंड।

पहला वाला रास्ता ज्यादा प्रचलित है। और रास्ता भूलने की गुंजाइश कम है। बाकी के रास्ते कम प्रचलित हैं और लोगो का इन रास्तो से आना जाना कम है।
हमने जहाँ परांठे खाये थे वही टैक्सी स्टैंड भी था। हमने सोचा जहाँ तक टैक्सी जा सकती है वहाँ तक टैक्सी से चलेंगे इसी लिए हमने एक टैक्सी वाले से बात की उसने ऊपर गल्लू देवी मंदिर तक छोड़ने के 400 रूपये मांगे। जो हमें ज्यादा लगे तो हमने उससे 200  में छोड़ने को कहा पर वो पट्ठा 400 से कम में जाने को तैयार ही नहीं हुआ। हम भी जिद्दी ठहरे हमने सोच लिया पैदल ही चलते है। आधा km ही चले होंगे की सामने से एक टैक्सी आती दिखाई दी। हमने उसे रोका और गल्लू देवी मंदिर जाने के लिये कहा उसने 350 रूपये मांगे मोल भाव करने पर वो 300 रूपये में मान गया। हमने भी अपनी 200 रूपये की जिद को नीचे खाई में फेका और टैक्सी में बैठ गए।

कहने को तो घर्मकोट दो km ही था। पर सीधी खड़ी चढाई है।वहां से गल्लू देवी मंदिर तक जाने में लगता था कि गाड़ी के साथ साथ हमारे भी अस्थिपंजर ढीले हो जायेंगे। कहीं कहीं सड़क का कोई टुकड़ा दिख जाता था। जिससे ये लगता था कि यहाँ तक कभी सड़क बनाई गई होगी।

गल्लू देवी मंदिर के पास भी छोटे मोटे लाज थे। जहाँ रुका जा सकता है। वही एक दुकान से हमने रास्ते के लिए बिस्कुट का एक बड़ा पैक, पानी की दो बोतले और थम्स अप की एक बोतल ले ली। यहाँ मैं आपको बता दूँ क़ि इस जगह पर एक पुलिस चेक पोस्ट है। जिसमे आने जाने वालों की एंट्री होती है। सुबह के करीब आठ बज रहे थे पर वो चेक पोस्ट बंद थी। इसलिए हम बगैर किसी एंट्री के आगे बढ़ गए। अब तक का रास्ता ठीक ठाक था पर चेक पोस्ट से आगे बढ़ने पर सीधी खड़ी चढाई और बौल्डरो (बड़े पत्थर) के रास्ते ने हमारा स्वागत किया, और 200 मीटर चलने के बाद ही हमारी सांसे और दिल की तेज होती धड़कनो ने बता दिया कि इसके आगे हमारे पैरो की  10वी की बोर्ड परीक्षा से भी ज्यादा कठिन परीक्षा होने वाली है।

करीब एक km चलने के बाद रास्ता देवदार और ओक के घने पेडों के बीच से हो कर गुजरने लगा। रास्ते में और कोई दिखाई भी नहीं पड़ रहा था। मन में एक सिहरन सी हुई की कही हम रास्ता भटक तो नहीं गए है, पर थोड़ी दूर चलने के बाद त्रियुंड की तरफ से कुछ ट्रेकर आते दिखाई दिए तो हमारी जान में जान आई। अगर  देखा जाये तो पूरा ट्रेक अच्छी तरह से नजर आता है। समझदारी से चला जाये तो कही भटकने का डर नहीं है।मेरी व्यक्तिगत राय में गाइड की कोई जरूरत नहीं है।  हम थोड़ी थोड़ी देर में कही बैठ जाते और बिस्किट खाते और पानी पीते। रास्ता कहीं कहीं बहुत ही पतला है और जरा सी असावधानी जानलेवा हो सकती है। अगर कोई ट्रेकर परिवार के साथ आना चाहता है तो कृपा करके छोटे बच्चो को साथ में न लाये।

यहाँ एक मजेदार घटना घटी। हम पसीने से लथपथ थके हरे चले जा रहे थे, तभी रास्ते में एक छोटी सी दुकान मिली जहाँ हमने फ्रूटी पी। हमने दुकानदार से पुछा त्रियुंड यहाँ से कितनी दूर है तो वो हँसने लगा । उसने बताया अभी तो आप लोग 25 परसेंट भी नहीं आये है। उसकी हँसी ने हमारा दिल बैठा दिया था। 

कुल मिला के रास्ता बहुत ही सुन्दर दृश्यों से भरा था। रास्ते के एक तरफ ऊँचे पहाड़ तो दूसरी तरफ मैक्लोडगंज दिखाई दे रहा था। आधे रास्ते के बाद नीचे धर्मशाला भी दिखाई देने लगा।एक जगह तो ऐसी भी आई कि ऊपर से नीचे देखने पर धर्मशाला का वो स्टेडियम भी दिखाई देने लगा। जिसे देखने की मेरी बहुत इच्छा थी। त्रियुंड से दो km पहले एक कैफ़े है जिसका नाम मैजिक व्यू है। हम लोग वहां थोड़ी देर बैठे रहे। वास्तव में यहाँ से जो व्यू दिखाई दे रहा था वो एक मैजिक ही था। अब तक ऊपर से आने वाले बहुत से ट्रेकर दिखाई देने लगे थे। जो रात में वहां रुके थे।

यहाँ मैं राजन की तारीफ करना चाहता हूँ जो मुझसे आगे आगे चल रहा था। कभी कभी मुझे उसपर गुस्सा आता की मुझे छोड़ कर कहां भागा जा रहा है। पर उसी के तेज चलने की वजह से मैं भी तेज तेज चल पा रहा था। पूरा रास्ता पत्थरो से अटा पड़ा है कही एक मीटर भी समतल जगह नहीं है। आखिरी के एक km सीधी खड़ी चढाई वाले है। जिसे मैं अपने शब्दो में हाड़ तोड़ चढ़ाई कहना ज्यादा पसंद करूँगा। इस आखिरी चरण की चढ़ाई चढ़ने में मेरी हालात खराब होने लगी। 10 कदम चलने के बाद मैं रुक जाता था थोड़ी साँस लेता फिर 10 कदम बढ़ाता। खैर किसी तरह हमने ये बाधा भी पार कर ली और त्रियुंड पर अपने कदम रख दिए।
आगे:- त्रियुंड ट्रेक triund trek त्रियुंड के नज़ारे और घर वापसी
मैजिक व्यू पर पथिक
पथरीला रास्ता

टैक्सी स्टैंड के पास


नयी दुनियां नयी राहें

इसे रास्ता कहेंगे या....

ऊपर से मैक्लोडगंज दिखता हुआ

मैजिक व्यू कैफ़े, फोटो को ज़ूम करने पर धर्मशाला का स्टेडियम दिखाई देता है।

ज़ूम करके देखना पथिक आराम करता हुआ मिलेगा

राजन जी आगे आगे जाते हुए

मैजिक व्यू कैफ़े पर राजन जी

त्रिउंड पर पहला कदम



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