Friday, September 14, 2018

लद्दाख डायरी, लेह और आस पास Ladakh Diary, leh and around

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दो दिन की रोमांचक और थका देने वाली यात्रा के बाद लेह की रात बहुत ही आरामदायक बीती और रात को अच्छी नींद भी आई। सुबह जब हम उठे तो काफी अच्छा महसूस कर रहे थे। हमारे मित्र राहुल जी जिनकी तबियत सरचू में ख़राब हो गई थी वो भी अब ठीक ठाक दिखाई पड़ रहे थे। होटल में गर्म पानी से नहाने के बाद हम सभी लद्दाख के नयनाभिराम दृश्यो को अपनी आँखों और अपने कैमरों में कैद करने को तैयार थे।
होटल के पास में ही एक रेस्टोरेंट में हमने आलू के गर्मागर्म पराँठे खाये और एक ट्रेवल एजेंट की दुकान में पहुँच गए।


हमने ट्रेवल एजेंट से लेह शहर, नुब्रा वैली और पांगोंग झील घूमने के लिए गाड़ी के किराए की बात की। यहाँ मैं आपको बता दूँ की लेह और आस पास घूमने के लिए गाड़ियों का किराया अन्य किसी पर्वतीय स्थल से ज्यादा है। एजेंट ने लेह लोकल घूमने के लिए 2300 रूपये की मांग की जिसमे एक स्कोर्पियो गाड़ी में लेह और आस पास के जगहों को घुमाने के बाद वो हमें होटल पर छोड़ देता। हमने उससे दूसरे विकल्प शेयर्ड टैक्सी के बारे में पूछा तो उसने कहा आप यही बैठ कर इंतज़ार करो जब और कोई आएगा तो आप लोग उसके साथ भाड़ा शेयर कर लेना। अब कोई आएगा या नहीं आएगा, आएगा तो कब तक आएगा इसकी क्या गारंटी थी। फिर हम लोग एक दूसरे ट्रेवल एजेंट के पास गए वहां भी वही स्थिति थी। आखिर में हमने पहले वाले ट्रेवल एजेंट के पास से गाड़ी बुक कर ली। उसने हमारा नुब्रा वैली और पांगोंग लेक जाने के लिए परमिट भी बनवाने की हामी भर ली।

वैसे तो आप ये परमिट आप खुद भी लेह के DC ऑफिस से बनवा सकते है पर जब हम पिछली बार लेह आये थे तो यह परमिट बनवाने में काफी समय लग गया था। इसलिए हमने ये जिम्मेदारी अपने ट्रेवल एजेंट को दे दी। अब जब हम उसकी ही गाड़ीयों में नुब्रा वैली और पांगोंग लेक जाने वाले थे तो उसने सहर्ष हमारा परमिट बनवाना स्वीकार कर लिया वो भी बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के। अब हम निश्चिन्त हो कर लेह शहर में घूमने निकल पड़े।

लेह समुन्द्र तल से  11500 फिट की ऊंचाई पर बसा हुआ है। यहाँ तक पहुँचने के मुश्किल भरे रास्तो से गुजरने के बाद यह शहर रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह प्रतीत होता है। पुराने दौर में लेह, तिब्बत और यारकंद  से भारत आने और जाने वाले यात्रियो के लिए पड़ाव का काम करता था। हम सबसे पहले थिकसे मोनेस्ट्री गए जो लेह से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस  मोनेस्ट्री को लद्दाख की सबसे बड़ी मोनेस्ट्री का रुतबा हासिल है। इस मोनेस्ट्री के अंदर एक रेस्टूरेंट भी है। साथ ही यहाँ एक दुकान भी है जिसमे लद्दाखी सजावटी सामान मिलता है। मोनेस्ट्री के अंदर एक बड़ा सा प्रार्थना चक्र भी है। जब हम मुख्य प्रार्थना हाल को देखने पहुंचे तो पता चला की वो अभी बंद है। कुछ देर तक मोनेस्ट्री में घूम घाम कर हम वापस अपनी गाड़ी में लौट आये और अब हमें लेह से 23 किलोमीटर दूर गुरुद्वारा पत्थर साहब और वहाँ से 5 किलोमीटर दूर  एक अनोखी जगह मैग्नेटिक हिल जाना था।

गुरुद्वारा पत्थर साहब लेह श्रीनगर हाइवे पर ही है। लेह से वहाँ तक कि सड़के काफी अच्छी बनीं हुई थी। लेह से अट्ठाइस किलोमीटर चलने के बाद ड्राइवर ने गाड़ी को अचानक रोक दिया हमें कुछ समझ में नहीं आया की यहाँ वीराने में क्या है तभी हमारी नजर सड़क के किनारे एक साइन बोर्ड पर पड़ी उस बोर्ड पर मैग्नेटिक हिल लिखा हुआ था। हम लोग गाड़ी से नीचे उतर गए अब हम एक खुले मैदान थे जहाँ चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ दिखाई पड़ रहे थे। हमारे ड्राइवर ने हमें गाड़ी में बैठने को कहा। हमारे गाड़ी में बैठने के बाद ड्राइवर ने गाड़ी को एक ऐसे जगह रोका जहाँ से सड़क की ऊंचाई बढ़ रही थी। हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हमारा ड्राइवर कर क्या रहा है। कुछ देर बाद उसने गाड़ी के इंजन को बंद कर दिया और गियर को न्यूट्रल कर ब्रेक से अपने पांव हटा लिये और हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब हमने देखा की गाड़ी खुद ब खुद ऊंचाई कि तरफ चढती चली जा रही है। करीब दस पंद्रह सेकेण्ड में गाड़ी की स्पीड 20 किलोमीटर /घंटा की हो गई और गाड़ी अभी भी ऊंचाई पर ही चली जा रही थी जबकी गाड़ी का इंजन पूरी तरह से बंद था। कुछ लोग मानते है कि सड़क के सामने के पहाड़ में चुम्बकीय गुण है जो गाड़ीयों को अपनी तरफ खिंचता है। वही कुछ लोग इसे केवल नजर का धोखा मानते है। सच्चाई जो हो पर हमारे लिए यह घटना सचमुच में अनोखी थी।

मैग्नेटिक हिल से कुछ ही दूर लेह श्रीनगर मार्ग पर एक संगम नाम की जगह है जहाँ सिंधु और जंस्कार नदियों का मिलन होता है। संगम जाने का रास्ता हाइवे से थोड़ा नीचे उतर कर जाने पर है, हमने संगम का नजारा ऊपर से ही ले लिया और वापस लेह जाने वाला रास्ता पकड़ लिया। मैग्नेटिक हिल से मात्र 5 किलोमीटर लेह की तरफ बढ़ने पर हम अपने अगले पड़ाव गुरुद्वारा पत्थर साहब के पास पहुँच गए। कहा जाता है कि सिक्खों के प्रथम गुरु नानक देव जी नेपाल, सिक्किम और तिब्बत की यात्रा करके यहाँ पहुँचे थे। उस समय इन पहाड़ो पर एक राक्षस रहता था जो यहाँ के लोगो को बहुत परेशान करता था। गुरु नानक देव जी यहाँ साधना में लीन हो गए। जब राक्षस ने उन्हें साधना में लीन देखा तो उसने पहाड़ पर से एक बहुत बड़ी चट्टान उनके तरफ लुढ़का दी। वो पत्थर गुरु नानक देव की तरफ आते आते मोम का बन गया और गुरुदेव के शरीर के पिछले हिस्से से टकराया जिससे उस पत्थर पर उनके शरीर का निशान उभर आया। इस गुरूद्वारे में वही पत्थर स्थापित है। इसी से इस गुरूद्वारे का नाम गुरुद्वारा पत्थर साहब पड़ गया। इस गुरूद्वारे की देख रेख इंडियन आर्मी करती है। हम भी गुरूद्वारे में गए और आशीर्वाद लिया।

अब हमारी अगली मंजिल स्पितुक गोम्पा थी। यह गोम्पा लेह से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गोम्पा आकार में काफी बड़ा है और यह लगभग सौ लामाओं का निवास स्थान है। मैने पूरे गोम्पा का एक चक्कर लगाया और इसकी छत पर पहुँच गया। यहाँ से चारो तरफ का नजारा बहुत ही अलौकिक था। गोम्पा के चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ बीच में लेह श्रीनगर हाइवे और मोनेस्ट्री के बिलकुल पास में ही लेह एयरपोर्ट का रनवे दिखाई पड़ रहा था। लेह एयरपोर्ट भारत का सबसे ऊंचा कॉमर्शियल हवाई अड्डा है। यहाँ पर उड़ाने केवल सुबह के समय में ही होती है क्योंकि दोपहर में यहाँ बहुत तेज हवा चलने लगती है। यहाँ से दिल्ली और श्रीनगर के लिए उड़ाने उपलब्ध है। पाकिस्तान और चीन की सीमा नजदीक होने के कारण इस एयरपोर्ट का सामरिक महत्व बहुत ही ज्यादा है।

स्पितुक गोम्पा में कुछ समय बिताने के बाद हम अपने अगले पड़ाव हाल ऑफ़ फेम जा पहंचे जो कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के सम्मान में सेना द्वारा बनाया हुआ एक वॉर मेमोरियल है। इस मेमोरियल में पाकिस्तानी सेना के अनेक हथियार प्रदर्शन हेतु रखे गए है जिन्हें कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने जब्त कर लिया था।इसके अलावा लेह लद्दाख के रहन सहन, इतिहास और उनकी संस्कृति को प्रदशित करती एक आर्ट गैलरी भी है। मेमोरियल के ऊपरी मंजिल पर सियाचिन ग्लेशियर से सम्बंधित पोशाक, जूते, हथियार, खाने की वस्तुएं इत्यादि की जानकारी देने वाला एक सेक्शन भी है। मेमोरियल में हमारे एक डेढ़ कब बीत गए ये हमें पता ही नहीं चला।

हॉल ऑफ़ फेम वॉर मेमोरियल घूमने के बाद, थोड़ी ही देर में हम दिन के आखिरी पड़ाव 'द्रुक व्हाइट लोटस स्कूल' के प्रांगण में थे। ये स्कूल आमिर खान अभिनीत हिंदी फिल्म 'थ्री इडियट' के कारण बहुत ही प्रसिद्ध हो चूका है। लेह आने वाले सैलानी एक बार इस स्कूल को देखने जरूर जाते है। लेह से इस स्कूल की दूरी लगभग 16 किलोमीटर है। यह स्कूल लेह के दूर दराज के गरीब बच्चो को मुफ्त और अच्छी शिक्षा पाने का अवसर प्रदान करता है। यहाँ बच्चो को रहने और खाने की निःशुल्क व्यवस्था भी है। स्कूल काफी बड़े स्थान में फैला हुआ है। यहाँ स्कूल देखने आने वाले सैलानियों को पहले एक हॉल में ले जाया जाता है और उन्हें स्कूल के बारे में बताया जाता है। उसके बाद उन्हें स्कूल में कहाँ कहाँ घूमना है और क्या क्या नियम फॉलो करना है उसके बारे में बताया जाता है। स्कूल में ही एक कैफ़े है जिसका नाम 'थ्री इडियट' फिल्म से ही लिया गया है। स्कूल अपने उपयोग की बिजली यहाँ लगे सोलर सिस्टम से स्वयं ही उत्पादित कर लेता है। लेह में साल में तीन सौ से ज्यादा दिन अच्छी खासी धुप होती है जिसका उपयोग यह स्कूल अच्छी तरह से कर रहा है।

दिन भर लेह घुमाने के बाद  ड्राइवर ने हमें ट्रेवल एजेंट के पास छोड़ दिया। ट्रैवेल एजेंट ने हमें बताया कि आप लोगो का परमिट बन गया है,और आप लोग अगले दिन खारदुंगला पास और नुब्रा वैली घूमने के लिए  जा सकते हैं। उसने हमसे सबेरे जल्दी तैयार रहने के लिए कहा और बताया कि सुबह 6 बजे उसकी गाड़ी हमारे होटल पर पहुँच जायेगी। शाम के सात बज चुके थे और हम अपने होटल पर थोड़ी देर आराम करके रात का भोजन करने के लिए मार्केट में आ गए । भोजन करने के बाद थोड़ी देर तक मार्किट में घूमते रहे और फिर अपने होटल में चले आये। सुबह जल्दी उठने की सोच हम सोने की तैयारी करने लगे।
                                  (क्रमशः)

                               लेह भ्रमण शुरू
थिकसे गोम्पा।

थिकसे गोम्पा का प्रवेश द्वार।

थिकसे गोम्पा स्थित दवाई की दुकान।

थिकसे गोम्पा का एक दृश्य

रास्ते का एक दृश्य

द्रुक वाइट लोटस स्कूल का रैंचो कैफ़े।

आल इज वेल।

थ्री इडियट फिल्म में दिखाई गई मशहूर दिवाल।

द्रुक व्हाइट स्कूल।

रास्ते में एक नयनाभिराम दृश्य

हॉल ऑफ़ फेम वॉर मेमोरियल।

मेमोरियल में लद्दाखी परिधान।

जय हिंद।

सियाचिन में पहने जाने वाले वस्त्र।

एक और।

सेना का झंडा।

पाकिस्तानी हथियार।

संगम।

मैग्नेटिक हिल पर राहुल जी।

लेह का हवाई अड्डा यह चित्र स्पितुक गोम्पा से लिया गया है।

गुरुद्वारा पत्थर साहब, बगल में वही पत्थर जिस पर गुरु नानक देव की पीठ का निशान है।

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