Friday, July 20, 2018

लद्दाख डायरी Ladakh Diary मनाली से केलांग

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अगले दिन सुबह पांच बजे हमारे मोबाइल का घड़ियाल हमें जगाते जगाते खुद सो गया पर हम नहीं जगे। जब छः बजने में पंद्रह मिनट रह गए थे तो विनोद ने मुझे झकझोर कर उठाया और कहा 'चले के नाही बा का'। तब मुझे याद आया की हमें छः बजे टेक्सी स्टैंड पर पहुचना था। हम जितनी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी फ्रेश हो गए बारिश के वजह से ठण्ड थी और वैसे भी मुझे नहाने से कोई ज्यादा लगाव नहीं है तो मैंने अपने बालो में पानी लगाया और तैयार हो गया।
समयाभाव के कारण दोनों मित्रो ने भी मेरा अनुसरण किया।  हालाँकी नहाने के मामले में वो मेरे जैसे बिलकुल नहीं है। अब मैं और राहुल अपना अपना बैग ले कर टैक्सी स्टैंड की तरफ भागे और विनोद को होटल वाले का हिसाब करके आने को कहा। ताकि हम टेम्पो ट्रेवलर वाले को रोके रख सके।

 जब हम स्टैंड पर पहुंचे तो ड्राइवर हम लोगो का और एक बंदा जो उसकी एक सवारी था उसका ही इंतजार कर रहा था और देरी की वजह से थोड़ा नाराज भी लग रहा था। क्यों की देर से जाने पर रोहतांग वाले रास्ते पर जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। विनोद उस बंदे से पहले ही आ गया। हम वही स्टैंड पर चाय पी ही रहे थे तभी वो आदमी भी आ गया । हमने चाय ख़त्म की और गाड़ी में बैठ गए। हमारी गाड़ी में कुल नौ लोग थे जिसमें इजराइल के दो कपल एक अकेली महिला जो चीन की थी। एक लोकल था जो लेह में काम करता था बाकी हम तीन जन तो थे ही। सुबह के छः बजे के जगह हमारी यात्रा सात बजे से शुरू हो रही थी। शुरुवात में सड़के काफी अच्छी बनी हुई थी। अब हमारा मुख्य आकर्षण रोहतांग पास था जो मनाली से इक्यावन km की दूरी पर है। रोहतांग पास की ऊँचाई 3980 मीटर है । दस पंद्रह किलोमीटर के बाद ऊँचाई अचानक से बढ़ने लगी और पहाड़ो के मोड़ भी जल्दी जल्दी आने लगे। इससे मेरा जी मिचलाने लगा तो मैंने अपनी आँखे बंद कर ली और सोने का प्रयत्न करने लगा। इससे मुझे बहुत आराम मिला। हम कोठी, गुलाबा होते हुए मढ़ी पहुँच गए थे। जो मनाली से तैतीस km की दूरी पर है।

मढ़ी तक पहुंचते पहुंचते मैं ऊँचाई का अभ्यस्त हो गया था और अब मैं खिड़की के बाहर झांक के सुन्दर नजारों का आनंद लेने लगा। मढ़ी में बहुत सी खाने पीने की दुकानें है। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था तो हमने ड्राइवर को बोल के अपनी गाड़ी रुकवाई और एक दुकान में जा के आलू के परांठे खाये। परांठे खा कर हमने चाय भी पी। चाय पीने के बाद शरीर में फुर्ती सी आ गयी अब हम रोहतांग की तरफ फिर बढ़ चले। मढ़ी के बाद चढाई में तीखापन आ गया था और सड़को को हालात बहुत बुरी हो गई थी। बरसात के कारण रास्ते पर कीचड़ ही कीचड़ दिख रही थी । यहाँ  रास्ते में कुछ पैराग्लाइडिंग कराने वाले भी आते जाते टूरिस्टों से पैराग्लाइडिंग करने के लिए अपना अपना ऑफर दे रहे थे। हमें तो इन सब से कोई मतलब तो था नहीं इसलिए हम आगे बढ़ते रहे। मढ़ी से चलने के करीब एक घंटे बाद हम रोहतांग टॉप पंहुच गए थे।

यहाँ का नजारा देख कर यात्रा की सारी थकान दूर हो गई थी। यहाँ  पचासों गाड़ियॉ खड़ी दिख रही थी जिसमे में बैठ कर टूरिस्ट आये हुए थे। और रोहतांग के बर्फ में मस्ती कर रहे थे। यहाँ मै आप सब को बता दू कि रोहतांग लाहुल स्पिति के प्रवेश द्वार के साथ साथ व्यास नदी का उद्गम स्थल भी है। रोहतांग जितना खूबसूरत लगता है उतना ही खतरनाक भी है। रोहतांग आने जाने का रास्ता खतरों से भरा पड़ा है। ख़राब सड़के, गहरी खाईयां, रास्ते पर बहते पहाड़ी नाले, अनिश्चित मौसम ये सब मिल कर इस रास्ते को धरती के कुछ गिने चुने खतरनाक रास्तो में से एक बनाते है और साल दर साल अनेक आदमियो की बलि लेते रहते है। शायद इन खतरों के वजह से ही इसका नाम रोहतांग पड़ गया होगा। रोहतांग शब्द का मतलब है 'लाशों का ढेर'।

चूँकि हम सब को लेह जाना था और  रास्ता बहुत ही लंबा और कठिन था तो ड्राइवर ने रोहतांग में बहुत ही कम समय के लिए गाड़ी रोकी। थोड़ी देर में हम रोहतांग के दूसरी तरफ पहुँच गए यहाँ से ग्राम्फू तक तीखी ढलान है। ग्राम्फू रोहतांग से उन्नीस किलोमीटर दूर है और इसकी ऊंचाई 3200 मीटर है। ग्राम्फू कि तरफ उतरते समय नजारा बिलकुल बदल गया था जहाँ रोहतांग से मनाली की तरफ बदली थी और बारिश हो रही थी। वही ग्राम्फू की तरफ चिलचिलाती धूप से हमारा सामना हो रहा था। ऐसा लाहुल के रेंन शैडो अर्थात वृष्टि छाया क्षेत्र में होने के कारण हो रहा था। रेंन शैडो वे जगहे होती है जहाँ बारिश बहुत कम या नाम मात्र की होती है।  उदाहरण के लिए जहाँ एक तरफ मुम्बई में बहुत बारिश होती है वही बगल में पूना में बहुत कम बारिश होती है क्योकि पूना एक रेन शैडो क्षेत्र में आता है।

कच्ची पक्की सड़को पे हिचकोले खाते और अचानक से आती गहरी खाइयों पे भगवान को याद करते करते हम आगे बढ़ रहे थे। लेकिन एक डर ये भी लग रहा था कि हम भगवान को  इतना याद कर रहे है अगर  भगवान ने हमें  याद कर लिया तो क्या होगा। कुछ देर बाद हम ग्राम्फू पहुंच गए। ग्राम्फू से रास्ता दो भागों में बट जाता है एक केलांग की तरफ से होते हुए लेह जाता है और दूसरा बाटल, कुंजुम पास होते हुए स्पिति वैली की तरफ निकल जाता है। मैं इस लेह यात्रा से कुछ साल पहले इसी मार्ग से स्पिति वैली क़ी यात्रा करके वापस मनाली पहुंचा था। जिसके बारे में मैं अपने आगामी यात्रा ब्लॉग में बताऊंगा।

ग्राम्फू से छः किलोमीटर आगे चंद्रा नदी से सटे हुए कोकसर गांव आता है। यहाँ एक चेक पोस्ट बना है जिसमे विदेशी यात्रियो के पासपोर्ट एवं वीजा इत्यादि चेक किये जाते है और उनकी एंट्री की जाती है। हमारे वाहन में भी पांच विदेशी यात्री थे तो जब तक उन लोगो ने अपनी एंट्री करवाई तब तक हम लोगो ने समय का सदुपयोग करते हुए वही एक चाय की दुकान पर चाय पी ली। रोहतांग से यहाँ तक केवल उतराई ही उतराई है पर पहाड़ो से आता हुआ पानी कई जगह सड़कों पर नाले के रूप में बहता रहता है जिससे सड़क पर भयंकर कीचड़ सी बनी रहती है और इसमें कई गाड़िया फंस भी जाती है। कोकसर के चार पांच किलोमीटर आगे टेलिंग नाम की जगह आती है जहाँ रोहतांग सुरंग का दूसरा मुहाना है। कहने का मतलब  यह है की जब यह सुरंग बन जायेगी तो अगर हम यहाँ से सुरंग में घुसेंगे तो हम सीधे मनाली के पास धुंधी नामक जगह पर निकलेंगे।

अब हमें टंडी जाना था जहाँ पर लाहुल वैली का एक मात्र पेट्रोल पंप है। कोकसर से टंडी की दूरी करीब तैतीस किलोमीटर की है। ये पूरा रास्ता चंद्रा नदी के साथ साथ जाता है। हम लोगो को जहाँ रोहतांग में ठण्ड लग रही थी वही अब वातावरण में गर्मी का अहसास होने लगा था हम रोहतांग के बाद लगातार उतराई पर थे टंडी तक पहुंचते पहुंचते हम चार हजार मीटर की ऊंचाई से ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर पंहुच गए थे। मनाली के बाद और लेह से पहले, टंडी के अलावा कोई और पेट्रोल पंप नहीं है। इसका अर्थ ये हुआ कि टंडी के बाद अगला पेट्रोल पंप तीन सौ पैंसठ किलोमीटर बाद ही मिलेगा। पेट्रोल पंप के सामने कुछ पेड़ थे हम वहाँ चले गए  और थोड़ी देर वही पेड़ो की छाव में अपने शरीर की अकड़न को ठीक करने का प्रयास करने लगे। यहाँ राहुल जो इस यात्रा को पहली बार कर रहा था। काफी थका हुआ महसूस करने लगा और मुझसे कहने लगा की अरे यार कहा लेके जा रहे हो ये भी कोई रास्ता है। इतना ख़राब रास्ता तो मैंने कभी नहीं देखा है। और वास्तव में बेचारे राहुल की तबियत सरचू पहुँचनें के बाद ख़राब ही हो गई। जबकि मुझे और विनोद को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। विनोद की भी ये दूसरी लेह यात्रा थी। पहली यात्रा हम दोनों और एक अन्य मित्र संजय जैसवाल ने मिल कर की थी। 

टंडी में चंद्रा नदी एक और नदी भागा  से मिलती है। चंद्रा नदी का उद्गम चंद्रताल है जो स्पिति वैली में है वही भागा नदी का उद्गम सूरज ताल है जो लाहुल में है। ये दोनो नदियाँ मिल कर एक नाम पर अपनी सहमति बना लेती है और इनका नाम चंद्रभागा हो जाता है। जब चंद्रभागा नदी हिमांचल से हो के जम्मू कश्मीर में प्रवेश करती है तब इसका नाम एक बार और परिवर्तित होता है और ये चेनाब के नाम से जानी जाने लगती है। हमारे गाड़ी के ड्राइवर ने गाड़ी की टंकी फुल करवाली और एक बड़े से जर्किन में करीब बीस पचीस लीटर डीजल और रख लिया ताकि गाड़ी के तेल ख़त्म होने कि परिस्थिति में इसका उपयोग किया जा सके। गाड़ी को उसकी पेट भर खुराक मिलने के बाद वो भी आगे जाने को पूरी तरह तैयार हो गई । अब हम टंडी से चलने के आधे घंटे बाद लाहुल के जिला मुख्यालय और इस क्षेत्र के सबसे बड़े नगर केलांग में थे जिसकी दूरी टंडी से मात्र नौ या दस किलोमीटर हैै। 
                               
आगे:- लद्दाख डायरी केलांग से सरचू

'रोहतांग' गूगल बाबा के सौजन्य से

मनाली में टेम्पो ट्रेवलर के पास राहुल जी

यात्रा की शुरुवात और दूर दीखता रोहतांग

खतरनाक रास्ता

सड़क पर बर्फ और कीचड़

रोहतांग के दूसरी तरफ ग्राम्फू के आस पास 

ग्राम्फू और कोकसर के बीच में कहीं।

ज़ूम करने पर चंद्रा नदी दिखाई देती हुई।

कोकसर में कामरिंग ढाबा

चाय का आनंद उठाते हुए मै और विनोद जी

कोकसर से आगे जाने पर सुन्दर नजारा।

एक और सुन्दर दृश्य

अजीब सा पहाड़ है ना।

टंडी का पेट्रोल पंप

1 comment:

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