Pages

Saturday, July 14, 2018

लद्दाख डायरी Laddakh Diary लद्दाख बुद्ध की भूमि

बचपन में किताबो में पढ़ा था कि तिब्बत को संसार की छत कहा जाता है। तब मन में ये सवाल उठता था कि वो जगह कैसी होगी जिसे संसार की छत होने का गौरव प्राप्त है। अब तिब्बत जाना आसान तो है नहीं क्योंकि वो पड़ोसी देश चीन में स्थित है। पर तिब्बत जैसी ही कुछ भूमि हमारे देश में भी है। जहाँ का रहन सहन, वेशभूषा, खानपान, जलवायु,भाषा, जमीन और पहाड़ इत्यादि सब कुछ तिब्बत जैसा ही है।
बस इस इलाके पर एक काल्पनिक रेखा खींच कर उसे एक तरफ चीन और दूसरी तरफ भारत का नाम दे दिया गया है। चीन की तरफ का इलाका तिब्बत कहलाता है और भारत की तरफ का इलाका लद्दाख। तिब्बत पहले एक स्वतंत्र क्षेत्र था। कालांतर में चीन की विस्तारवादी नीति के कारण उसने तिब्बत को चीन में मिला लिया। 1959 में तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को वहाँ से भाग कर भारत में शरण लेनी पड़ी।

लद्दाख जम्मू और कश्मीर राज्य के अंतर्गत आता है। धार्मिक दृष्टि से जम्मू और कश्मीर को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला जम्मू जो हिन्दू बहुल क्षेत्र है, दूसरा कश्मीर घाटी जिसमे श्रीनगर और आस पास के क्षेत्र आते है जो एक मुस्लिम आबादी वाला इलाका है और तीसरा लद्दाख जहाँ पर बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगो की बहुतायत है। लद्दाखी लोगो का जीवन बहुत ही कठिन है। यहाँ खेती करने योग्य उपजाऊ भूमि का अभाव है तथा साल के छः महीने बर्फ पड़ने के कारण सारे रास्ते बंद हो जाते है। उस समय इन लोगो का शेष विश्व से संपर्क कट सा जाता है। केवल हवाई मार्ग ही एक मात्र एकलौता साधन होता है जिससे इनका बाहरी दुनिया से संपर्क बना रहता है। लद्दाख जाने के लिए दो रास्ते प्रचलित है पहला श्रीनगर लेह हाइवे और दूसरा मनाली लेह मार्ग। श्रीनगर से लेह की दूरी 422  km है और मनाली से लेह की दूरी 479 km है

मैं 2007 में पहली बार मनाली अपने मित्रों के साथ गया था तब हम रोहतांग भी घूमने गए थे। वहाँ पर एक सड़क रोहतांग से भी आगे जाती हुई दिखाई दी पूछने पर पता चला की ये सड़क लेह तक जाती है। लेह, लद्दाख का एक मुख्य नगर है और इसे लद्दाख की राजधानी भी कहा जा सकता है। उस समय हमने ये सोच लिया था कि हम लेह जरूर जायेंगे। लेह जाने का अवसर इस घटना के एक साल बाद ही मिल गया और हम जुलाई 2008 को लेह में थे। लेह पहुंचने के लिए हमने मनाली लेह मार्ग का उपयोग किया था। ये रास्ता श्रीनगर वाले रास्ते से ज्यादा कठिन है पर इस रास्ते में दर्शनीय स्थल ज्यादा है । हम लेह तो पहुँच गए थे पर हमें वहां क्या क्या घूमना है ये हमें पता ही नहीं था ।दो दिन घूम घाम के हम वापस घर चले आये।  वापसी में हमने श्रीनगर लेह हाइवे पर यात्रा की थी। इस मार्ग पर कारगिल और द्रास जैसे नगर पड़ते है। वापस आने के बाद हमें पता चला की हम लेह में बहुत सी जगह घूमे ही नहीं। हम कहाँ घूमे कहाँ नहीं ये बात हमारे लिए बहुत मायने नहीं रखती थी। हम तो इस बात से खुश थे क़ि हम लेह लद्दाख घूम आये। क्योकि उस समय तक बहुत ही कम लोग लद्दाख घूमने जाते थे।

 इस यात्रा के लगभग पांच साल बाद जून 2013 में  मैंने दुबारा लेह जाने का प्लान बनाया और ये सोच लिया था कि इस बार लद्दाख की सभी प्रमुख जगहे घूमनी है । मेरे प्लान में मेरे दो मित्र विनोद जैसवाल जो एक व्यवसायी है और राहुल गुप्ता जो एक डेंटिस्ट है, भी शामिल हो गए। जून 2013 में ही केदारनाथ में बाढ़ आई थी और भयंकर विनाशलीला हुई थी। सैकड़ो लोग मारे गए और हजारों लोग लापता हो गए थे। लोग बाग पहाड़ो पर जाने से कतरा रहे थे। पर मुझे ये पता था कि लेह में बारिश नाममात्र की ही होती है। इसलिये हमनें अपनी यात्रा को जारी रखने का फैसला किया। हम गोरखपुर से दिल्ली पहुचे और वहां से मनाली की बस पकड़ कर अगले दिन मनाली पहुँच गए।

मनाली तक़रीबन की 2050 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है। ये हिमांचल के कुल्लू जिले के अंतर्गत आता है। दिल्ली से इसकी दुरी करीब 540 km है। कश्मीर घाटी का माहौल आतंकवाद की भेंट चढ़ने के कारण सैलानियो में यह जगह काफी प्रसिद्ध हो गई है। रोहतांग दर्रा यहाँ का प्रमुख आकर्षण है। इस दर्रे के उस पार लाहुल स्पिति जिले का लाहुल क्षेत्र शुरू हो जाता है जिसका मुख्यालय केलांग है। केलांग को मनाली से जोड़ने के लिए एक सुरंग भी बन रही है जिसकी लंबाई आठ km की है। ये सुरंग सोलंग वैली के पास धुंधी नमक जगह से शुरू हो कर केलांग के पास खत्म होती है। इस सुरंग के बन जाने पर जाड़ो में भी जब रोहतांग दर्रा बर्फ की वजह से बंद हो जाता है तब भी कुल्लू घाटी का संपर्क लाहुल घाटी से बना रहेगा।


मनाली पहुचने के बाद हम उसी होटल पर रुके जहाँ हम अपनी पिछली दो यात्राओ पर रुके थे। नहा धोकर फ्रेश होने के बाद हम लेह जाने के लिए साधन की तलाश में माल रोड के पास बने टैक्सी स्टैंड के पास पहुँच गए। क्यों की लेह जाने वाली सभी गाड़ियाँ सुबह में ही निकल जाती है तो हम अगले दिन जाने के लिए बस की बुकिंग करवाना चाहते थे। ताकि अगले दिन हमारा लेह जाना निश्चित हो जाये।मनाली से लेह जाने के लिए अनेक साधन उपलब्ध है जिनमे टैक्सी, टेम्पो ट्रेवलर और बस प्रमुख है। कुछ साहसी लोग ये यात्रा बाइक से भी करते है। टैक्सी से जाना हमारे बजट से बाहर था। तो हमारे पास दो विकल्प ही बचते थे बस या टेम्पो ट्रेवलेर। बस के बारे में पूछने पर पता चला की रास्ते में अभी बर्फ ज्यादा है इसीलिए अभी बसे लेह नहीं जा रही है। अब हमने एक टेम्पो ट्रेवलर वाले से बात की तो उसने एक आदमी का सोलह सौ रूपये किराया बताया। हम तैयार हो गए। उसने कल सुबह छः बजे हमें टेक्सी स्टैंड पर आने को कहा। हमने उसका मोबाइल नंबर ले लिया और आज का पूरा  दिन मनाली  में घूमने का विचार बना लिया।

हम मनाली में पहले हिडिम्बा देवी मंदिर गए, हिडिम्बा देवी को मनाली की कुलदेवी का स्थान प्राप्त है। हिडिम्बा राक्षसी कुल की थी जिनका विवाह भीम से हुआ था। इन दोनों का एक पुत्र भी था जिसका नाम घटोत्कच था । हिडिम्बा देवी के मंदिर से कुछ दूरी पर घटोत्कच का भी मंदिर है । इसके बाद हम वशिष्ठ गांव जहाँ गर्म पानी का कुंड भी है, सोलन घाटी इत्यादि जगह गए और खूब आंनद लिया। शाम को हम वापस मनाली पहुचे और माल रोड पर थोड़ी देर घूमते रहे। माल रोड सैलानियो से अटा पड़ा था। रात होने पर हमने वही पर खाना खाया और अपने होटल में वापिस आ गए और  अगले दिन लेह जाने के बारे में बातें करते करते सो गए।

आगे:- लद्दाख डायरी मनाली से केलांग

प्रकृति की एक सुन्दर रचना।

हिडिम्बा मंदिर

हिडिम्बा मंदिर की लकड़ी की बनी दिवाल और मैं।

हिडिम्बा मंदिर के पास देवदार की छावँ।

कहा चढ़ गए हो विनोद जी।

हिडिम्बा मंदिर के सामने।

लद्दाख बुद्ध की भूमि।

6 comments:

  1. वाह जब कोई नही जाता था 2008 में तब आप लेह जाकर आये...यह सच है उस वक़्त कम ही लोगो को लेह पता था....बढ़िया पोस्ट बढ़िया यात्रा...

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद प्रतिक जी।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर पोस्ट

    ReplyDelete
  4. धन्यवाद् अशोक जी

    ReplyDelete